वर्ष 1998 में भारत ने पोखरण में 11 मई से 13 मई तक सफलतापूर्वक पांच परमाणु परीक्षण किए थे। दरअसल चीन और पाकिस्तान जैसे अपने पडोसी देशों से सुरक्षा के लिए भारत ने न्यूक्लियर स्टेट बनने की जरूरत महसूस की थी। इस परमाणु परीक्षण के दिन वैज्ञानिकों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता..
राजस्थान के जैसलमेर जिले में थार रेगिस्तान में स्थित पोखरण एक प्राचीन विरासत का शहर रहा है। इसके चारों ओर पांच बड़ी लवणीय चट्टानें हैं. पोखरण का शाब्दिक अर्थ है पांच मृगमरीचिकाओं का स्थान. यह स्थल पहली बार सुर्खियों में तब आया, जब भारत ने यहां श्रृंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए।
इसके बाद वर्ष 1999 से 11 मई का दिन नेशनल टेक्नोलॉजी डे के तौर पर मनाया जाने लगा जो भारत के वैज्ञानिक कौशल और तकनीकी उपलब्धियों को दर्शाता है. 11 मई 1998 के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जैसे ही तीन न्यूक्लियर परीक्षण सफल होने की घोषणा की तो अमेरिका सहित पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी.
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस दिन को गौरवशाली बताते हुए ११ मई को भारत के इतिहास का एक बेहद खास दिन बताया था .. मोदी के अनुसार भगवान बुद्ध ने कहा था कि शांति से रहने के लिए आंतरिक शक्ति बहुत जरूरी है और भारत ने भी शांति से रहने के लिए परमाणु शक्ति हासिल की.
उन्होंने कहा था - “भगवान बुद्ध ने दुनिया को दिखा दिया कि अंदरूनी शक्ति या आत्मा की ताकत शांति के लिए जरूरी है. इसी तरह यदि आप एक देश के रूप में मजबूत हैं तो आप दूसरे देशों के साथ शांति से रह सकते हैं.
मई 1998 का महीना परमाणु परीक्षणों के पहलू से ही देश के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि जिस तरह से भारत ने ये परीक्षण किए, उस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा इस दिन की अविस्मरणीयता पर बयान दिया था - “इसने दुनिया को दिखा दिया था कि भारत महान वैज्ञानिकों की भूमि है और मजबूत नेतृत्व से भारत दूरस्थ स्थानों तक पहुंच सकता है और नए कीर्तिमान स्थापित कर सकता है.
इस परमाणु परीक्षण की जगह थी पोकरण या पोखरण. बता दें कि राजस्थान के जैसलमेर से 110 किलोमीटर दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर पोख प्रमुख कस्बा हैं.
भारत ने इस जगह को इसलिए चुना था क्योंकि यहाँ पर मानव बस्ती बहुत दूर थी. वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए रेगिस्तान में बालू के बड़े बड़े कुए खोदे और इनमे परमाणु बम रखे गए और फिर कुओं को बालू से ढंकने में मशीनों का साथ, बेलचा लिए हुए आदमियों ने दिया.
इन कुओं के ऊपर बालू के पहाड़ बन दिए गए जिन पर मोटे मोटे तार निकले हुए थे जिनमे आग लगायी गयी और बहुत जोर का धमाका हुआ.
पाकिस्तान बलूचिस्तान की चगाई पहाड़ियों के पास परमाणु परीक्षण करता है उसके मुकाबले भारत के पास पोखरण में छिपकर सीक्रेट मिशन को पूरा करने के लिए साधन बहुत कम हैं, थोड़ी बहुत कटीली झाड़ियां जो पोखरण में उगी भी हुई हैं उनकी भी लंबाई बस कंधे तक है.
ऐसी दशा में भारत के लिए बिना किसी की नजर में आये परमाणु परीक्षण करना किसी बड़ी चुनौती से कम नही था. पोखरण-2 पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने इसे सफल बनाने के लिये खुद को पूरा समर्पित कर दिया था. अब्दुल कलाम की देखरेख में वैज्ञानिकों की टुकड़ी पोखरण-2 पर कार्य कर रही थी.
दूसरा परमाणु बम बनाने के लिए भी भारत को पहले जैसी मेहनत करनी पड़ी. परमाणु बम हासिल करने और उसके सफल परीक्षण के लिए भारतीय वैज्ञनिकों ने एक लंबा सफ़र तय किया था.
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत को दूसरा परमाणु बम देने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने साल 1990 के बाद ही इस पर काम करना शुरु कर दिया था. अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा विभाग के डायरेक्टर राजगोपाल चिदंबरम संयुक्त रूप से पोखरण-2 को सफल बनाने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे थे.
राजस्थान के पोखरण की आर्मी बेस लैब में अब्दुल कलाम वैज्ञानिकों की टीम के साथ पोखरण-2 पर काम कर रहे थे. काम बहुत मुश्किल था पर नामुमकिन नहीं. सब जानते थे इसमें समय बहुत लगेगा मगर वह तैयार थे. वह किसी भी हालात में इसे पूरा करना चाहते थे.
आखिर में साल 1998 में मई माह में पोखरण-2 को बनाने में वैज्ञानिकों ने सफलता हासिल कर ली. आज उस महान दिवस जिसमे दुनिया ने भारत की सैन्य शक्ति को नमन किया था , उस दिन के सभी ज्ञात अज्ञात महान हस्तियों को सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करता है और उनकी दी गयी शक्ति के लिए आभार व्यक्त करता है .