यही कारण है कि इस देश को आज तक दुनिया की कोई भी ताकत गुलाम नहीं बना पाई. जब भी इस राष्ट्र की अस्मिता पर, एकता पर, अखंडता पर आंच आई, यहां के निवासी स्वतः ही अपने राष्ट्र के स्वाभिमान तथा अखंडता को बचाने के लिए उठ खड़े हुए हैं. एक बार पुनः यही हो रहा है जब इस देश के लोगों ने चीन के राष्ट्रपति सही जिनपिंग तथा उनकी विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हम बात कर रहे हैं भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल की, जहाँ के लोग चीनी राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर उतर आये हैं.
एकसमय हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल ने पिछले कुछ समय से वामपंथ की बयार में बहना शुरू कर दिया है तथा चीन से उसकी निकटता बढ़ रही है, जिसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं. विस्तारवादी नीति के लिए विख्यात चीन नेपाल में अवैध रूप से जमीन कब्जा करने में लगा हुआ है. नेपाल में बढ़ते चीनी दखल और उसकी विस्तारवादी नीति का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है. बीते सोमवार को कई जिलों में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले जलाए. प्रदर्शनकारियों ने ‘चीन वापस जाओ’ के नारे लगाए और नेपाल की हड़पी 36 हेक्टेयर जमीन वापस करने की मांग की.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल के सपतारी, बरदिया और कपिलवस्तु जिलों में सोमवार को चीन विरोधी प्रदर्शन हुए. इस दौरान लोगों के हाथ में चीन विरोधी पोस्टर और बैनर थे. वे चीन के खिलाफ नारे लगा रहे थे। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के पुतले भी जलाए. नेपाल की जमीन कब्जा करने को लेकर चीन के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा है. सर्वे डिपार्टमेंट की हालिया रिपोर्ट के बाद नेपाल में चीन विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं जिसमें कहा गया है कि चीन ने सीमावर्ती इलाकों में नेपाल की 36 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है. मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नेपाल अपनी सैकड़ों हेक्टेयर भूमि चीन के हाथों खो देगा.