सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

घर आ गया परदेसी

यह जो देश है तेरा, स्वदेश है तेरा; तुझे ही पुकारे"जो की"स्वदेस"मूवी से है

Pramod Kumar Buravalli
  • Jun 2 2023 10:24AM

आज से ठीक एक साल पहले की बात है जब मैंने भारत माता की दिव्य धरती पर पैर रखा था।भूमि को छूने का वह पल अवर्णनीय है और भावनाएँ आज भी अनिर्वचनीय हैं।जब कभी-कभी मैं बैठकर ह्यूस्टन के उन दिनों और रातों के बारे में सोचता हूं तो मेरा हृदय बहुत तेजी से धड़कने लगता है, जब मैं बस अचानक से सब कुछ छोड़कर भारत वापस  जाने के लिए अगली फ्लाइट पकड़ लेना चाहता था।

मुझे स्वयं को रोकना पड़ता था, क्योंकि बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ था और मैं एक व्यवस्थित रूप से वापसी करना और बयान देना चाहता था।उन आवेशित और आवेगी क्षणों के दौरान मेरा एक मात्र सांत्वना गीत था "यह जो देश है तेरा, स्वदेश है तेरा; तुझे ही पुकारे"जो की"स्वदेस"मूवी से है।अंततः हम अमेरिका में 21 साल बाद वापसआने के लिए स्वतंत्र हो गए थे, हालाँकि COVID19 ने हमें 2020 और 2021 में लॉकडाउन और उड़ान रद्द होने के कारण वापस ने से रोक दिया था|

 मेरे  पास समान संख्या में ना करने वाले और समर्थक (अमेरिका और भारत दोनों में) थे, जिनके पास भारत में हमारे स्थानांतरण के बारे में कहने के लिए कुछ न कुछ अवश्य था।मना करनेवालों ने विचार किया कि हम कैसे अपने आप को भारत में"समायोजित"करेंगे और क्या हम शहरी अव्यवस्था और भ्रष्टाचार में रह पाएंगे। कुछ लोगों ने अवांछित सलाह दिया कि भारत में अमेरिकी जीवन कैसे जिया जाए, क्या मुझे स्थानांतरित करने की "गलती" करनी चाहिए।दूसरी ओर समर्थक आशावादी थे और निर्णय से बहुत उत्साहित भी थे।

कुछ लोगों ने हमारे स्थानांतरण को आसान बनाने के लिए हर संभव तरीके से हमारी सहायता करने की कोशिश की।मैंने उन सभी के सामूहिक विचारों और सुझावों को उनकी योग्यता के आधार पर लिया।लेकिन स्थानांतरण करने का अंतिम निर्णय बहुत पहले ही ले लिया था और घोषणा 2020 में किया| मैंने 2014 में ही अपना मन बना लिया था । ईमानदारी से बताता हूँ  की 2001 में पहली बार कदम रखने के बाद सेही वास्तव में मेरा कभी भी अमेरिका में वापस रहने का इरादा नहीं था|

 क्योंकि जिस देश में मैं गया था, वह देश उस देश जैसा बिल्कुल नहीं था जिसे मैं छोड़कर गया था !!!वैसे भी मेरी प्राथमिकताएं और महत्वाकांक्षाएं अधिकांश लोगों से अलग और बिल्कुल विपरीत थीं, जो कि अमेरिका में शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों से जाकर रह रहे थे| मैं वास्तव में अमेरिकी लोगों का अध्ययन और निरीक्षण करना चाहता था। मैं जानना चाहता था कि किस चीज ने उन्हें वह देश बनाया जिससे दुनिया ईर्ष्या करती थी। किस चीज ने उन्हें एंग्लो सैक्सन पैक का नेता बना दिया...

2001 में आते ही मुझे उन्हें कार्य करते हुए देखने का मौका मिला।मेरे आगमन के बस एक महीना में हीआतंकवादियों ने 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हमला कर दिया था।

एक सोया हुआ दानव जाग उठा और दो दशक से भी अधिक समय तक आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध छेड़ा और फिर एक कपटी पाकिस्तान के हाथों शर्मनाक हार का रोना रोया।जिहादियों को अकेले छोड़िए तो मैंने लोगों की एक दौड़ को एकमात्र महाशक्ति होने से उखड़ते हुए देखा,रूस या चीन जो महाशक्ति समझे जाते थे वो COVID, का जवाब नहीं दे सके |वे अपने यशस्वी पूर्वजों की तुलना में फीके थे, जिन्होंने पहाड़ी पर एक चमकीला शहर बसाया था। मैंने 2001 में अमेरिका की धरती पर पैर रखने सेबहुत पहले ही 90 के दशक में उनका पूरा इतिहास पढ़ लिया था,

 लेकिन मैंने जो पाया वह एक विशाल सेना और विशाल अर्थव्यवस्था होने के बावजूद गहरे विभाजन और दरारों वाला देश था।वे नस्ल की दरारों, बड़े पैमाने पर गोलीबारी, बढ़ते कर्ज और आय की असमानताओं को दूर नहीं कर पाए।अमेरिका लगातार गिरावट की ओर था। इसलिए नहीं कि वे ऐसा करना चाहते थे या इसलिए कि वे बहुत आत्मसंतुष्ट थे,

 बल्कि वे शीर्ष पर बहुत अहंकारी हो गए थे।आम लोग हर जगह एक ही जैसे थे और आज भी हैं-वे लोग मेहनती, व्यस्त और "सुख की खोज" में लगे हुए हैं लेकिन "अभिजात वर्ग" और सर्वव्यापी“DEEP STATE”(एक समूह जो गुप्त रूप से राज्य को प्रभावित करने में सक्षम है)ने सारी शक्ति, धन और प्रभाव जमा कर रखा है। शीर्ष पर बैठे 10% लोग लगभग सब कुछ मीडिया, वित्त, प्रौद्योगिकी और "सरकार"को नियंत्रित करते हैं| सब कुछ "नियंत्रण" से ही जुड़ा था। जनता को नियंत्रित करो और उनके अंदर यह सोच विकसित करो और वो ऐसा सोचेंकि “गैर-अमेरिक जरूरतमंद, कम खुश और भ्रष्ट होते हैं, हम पृथ्वी पर सबसे अच्छी जगह पर रह रहे हैं।”

वहीं दूसरी ओर;भारत सभ्यता की नींद से उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन एक अंतर था।पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी का नेतृत्व प्राप्त करना सौभाग्य की बात थीजो चाहते थे कि जिहादियों, उपनिवेशवादियों और कम्युनिस्टों द्वारा लगभग 1000 वर्षों तक बिना रुके औपनिवेशीकरण के बाद सभ्यतागत राज्य की वापसी हो।मैं दुविधा में था... क्या मुझे देखते रहना चाहिए और एक ऐसे राज्य में घुल-मिलजाना चाहिए जो की अत्यंत गिरावट में था या मुझे एक पुनरुत्थान वाले भारत में वापस आना चाहिए, जिसकी जनता गहरे उपनिवेशवाद की बेड़ियों को दूर धकेल रही थीमेरी चेतना मुझे "घर वापसी"करने के लिए कह रही थी और मुझे खुशी है कि मैंने इसे सुना......

 प्रमोद कुमार बुरावल्ली

0 Comments

संबंधि‍त ख़बरें

अभी अभी