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बाट माप विभाग द्वारा अधिकृत एजेंसी की फर्जी धन उगाही से दुकानदारों में रोष

जमानियां। सरकार भले ही उपभोक्ता के हितों के लिए उन्हें जागरूक करने का दम भरती हो, लेकिन हकीकत यह है कि प्रशासनिक हीलाहवाली के चलते आज भी उपभोक्ता अपने आप को ठगा हुआ ही महसूस कर रहा है

अमरेन्द्र प्रताप सिंह
  • May 4 2024 4:02PM
जिसे जिम्मेदारों को देखने की भी फुरसत नहीं है। बाट माप विभाग की ओर से एजेंसी को अधिकृत किया गया है जो क्षेत्र के दुकानों में प्रयोग होने वाले बांट‚ काटा आदि की जांच कर मुहर लगाएंगे। लेकिन धरातल पर महज खानापूर्ति की जा रही है। नगर के गुमटी‚ फुटपाथ पर सब्जी आदि बेच रहे दुकानदारों से बाट‚ कांटा आदि जांच और दुरुस्त करने के नाम पर धन उगाही की जा रही है। दरअसल इन प्राइवेट एजेंसी को विभाग की ओर से दुकानदारों को प्रताड़ित करने के लिए अधिकृत किया गया है। जो मनमाना पैसा वसूल रहे है। एजेंसी का कार्य दुकानों पर जा कर बाट की जांच करना है और उसके माप को सही करना है। जिसके एवज में धनराशि वसूली है। लेकिन बिना बांट को दुरूस्त किए ही ये एजेंसी दुकानदारों से मोटी रकम वसूल रहे है। नगर के तहसील के पास फुटपाथ पर सब्जी बेच रहे दुकानदार से करीब 700 से 1100 रुपये तक वसूला जा रहा है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूर दराज के इलाकों में एजेंसी किस प्रकार कार्य करती होगी। एजेंसी द्वारा वसूला गया शुल्क भी विभाग में प्रतिदिन जमा नहीं किया जाता। मनमाने ढंग से अपनी सहुलियत के हिसाब से जमा किया जाता है। इसमें बाट माप विभाग को भी कोई आपत्ति नहीं है। इस संबंध में कनिष्ठ सहायक ज्योति पाण्डेय ने बताया कि एजेंसी द्वारा अवैध वसूली की बात संज्ञान में आई है। जिसे उच्चाधिकारी को अवगत कराया जाएगा। वही उन्होंने एजेंसी द्वारा प्रतिदिन वसूली गई धनराशि जमा करने की बात से इनकार किया और बताया कि दो तीन दिन में एजेंसी अधिक धनराशि होने पर जमा करती है। इसका रजिस्टर के बारे में भी स्पष्ट जानकारी नहीं दे पाई। उन्होंने बताया कि बाट माप अधिकारी गाजीपुर रमेश प्रसाद को जमानियां अटेज किया गया है। जिस कारण से वे कभी कभी आते है। उनके वार्ता करने का प्रयास किया गया लेकिन उनका फोन नहीं उठा। वही एजेंसी द्वारा दुकानदारों को दी जाने वाली रसीद कितना सही है। इसपर भी सवालिया निशान उठ रहा है। दुकानदार से डारा कर दिया 200 रुपये सब्जी विक्रेता से एजेंसी संचालक डरा धमका कर 200 रुपये वसूल कर चलते बने। तहसील और कोतवाली के पास जब एजेंसी संचालक ऐसा कर रहे है तो दुर दराज के इलाकों में आलम क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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