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15 मई : जन्मदिवस क्रांतिवीर सुखदेव जी...क्रूर सांडर्स का वध किया और "मेरा रंग दे बसंती चोला" गाते हुए झूल गए फांसी पर

आज वीरता की उस अमर गौरव गाथा सुखदेव जी को उनके जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है

Sumant Kashyap
  • May 15 2024 8:17AM

ये होता है वो असल बलिदान और त्याग जो राष्ट्र और ईश्वर को समर्पित कर दिया जाता है. इसका ढोल पीट पीट कर वोट नही बटोरे, इसका हवाला दे कर गद्दी नही मांगी और न ही कभी इतिहास की किताबों में जबरन छपवाने की जिद या जद्दोजहद की. असल मे सत्यता कभी शब्दों की मोहताज नही होती वरना आज देश इतने नकली आडम्बरो में भी न समझ पाता कि किसने अंग्रेजों संग गुलछर्रे उड़ाए और किस ने देश के लिए प्राण दिए. उन अमर बलिदानियों में से एक है क्रांतिवीर सुखदेव जी जिनका आज अर्थात 15 मई को जन्मदिवस है .

आप ने बहुत से क्रांतिकारी और देशभक्त का नाम सुना होगा और आपने ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का नाम सुना होगा जिसने अपना जीवन देश की सेवा में लगाया था. ऐसे ही सुखदेव जी भी थे. भारत को आजाद स्वाधीनता कराने के लिए अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. ऐसे ही देशभक्त बलिदानियों में से एक थे. सुखदेव थापर जी, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिए समर्पित कर दिया. सुखदेव जी  क्रांतिकारी भगत सिंह जी के बचपन के मित्र थे. दोनों साथ बड़े हुए, साथ में पढ़े और अपने देश को स्वाधीनता कराने की जंग में एक साथ भारत मां के लिए अमरता को प्राप्त हो गए.

सुखदेव जी का जन्म 15 मई, 1907 को गोपरा, लुधियाना में हुआ था. उनके पिता का नाम रामलाल थापर जी था जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर में रहते थे. इनकी माता रल्ला देवी जी धार्मिक विचारों की महिला थी. दुर्भाग्य से जब सुखदेव जी तीन वर्ष के थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया था. इनका लालन-पालन इनके ताऊ लाला अचिन्त राम जी ने किया था. वे समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में अग्रसर रहते थे. इसका प्रभाव बालक सुखदेव जी पर भी पड़ा था. 

बाद में सुखदेव जी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए थे. वे एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे|इसके बाद सुखदेव जी ने दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की|इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था.

सांडर्स की हत्या के मामले को ‘लाहौर षड्यंत्र’ के रूप में जाना गया. इस मामले में राजगुरु जी, सुखदेव जी और भगत सिंह जी को मौत की सजा सुनाई गई थी. 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और देश के युवाओं के मन में आजादी पाने की नई ललक पैदा कर गए. बलिदान के समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल थी. आज वीरता की उस अमर गौरव गाथा सुखदेव जी को उनके जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है ..

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