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23 अप्रैल : अंग्रेजो के खिलाफ एक और बागवत हिन्दुस्थानी सैनिको की हुई थी आज पेशावर में जब वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी के आदेश पर राष्ट्रभक्त सैनिको ने रख दिए थे हथियार

आज भारत के उस महावीर के द्वारा के नेतृत्व में किये गये पेशावर काण्ड की स्मृति दिवस पर सुदर्शन परिवार वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी को शत-शत नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है

Sumant Kashyap
  • Apr 23 2024 8:42AM

इतिहास के वो नाम जिनको जान बूझ कर गुमनाम किया गया है, उन नामो में से एक नाम है वीर चंद्र सिंह गढ़वाली  जी का जिनके द्वारा किया गया पेशावर में शौर्य का प्रदर्शन आदि भी अंग्रेजो को याद है. अफ़सोस की बात है कि कुछ परिवारों की चाटुकारिता में फंसे नकली कलमकारों ने भारत के लोगों को ये इतिहास जानने नहीं दिया और मजहबी उन्माद में चूर पाकिस्तान के पेशावर वालों ने भी इस पवित्र शौर्यशाली जगह को कोई तवज्जो नहीं दी.

ये सच्ची कहानी उस आज़ादी के लिए अपना योगदान देने वाले उस गुमनाम वीर की है जो अंग्रेजी सेना का सैनिक होते हुए भी अंग्रेजो के आदेश का एन मौके पर उल्लंघन करते हुए अंगेजो के अन्दर एक और मंगल पाण्डेय जी पैदा होने की सिरहन उभार गया था. 

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी का जन्म ग्राम रौणसेरा, (जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) में 25 दिसम्बर, 1891 को हुआ था. वह बचपन से ही बहुत हृष्ट-पुष्ट था. ऐसे लोगों को वहां ‘भड़’ कहा जाता है. उनका विवाह काफी पहले ही गया था. उन दिनों प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो जाने के कारण सेना में भर्ती चल रही थी. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की इच्छा भी सेना में जाने की थी; पर घर वाले इसके लिए तैयार नहीं थे. अतः चंद्र सिंह गढ़वाली जी घर से भागकर लैंसडाउन छावनी पहुंचे और सेना में भर्ती हो गए. उस समय वे केवल 15 वर्ष के थे. इसके बाद राइफलमैन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी ने फ्रान्स, मैसोपोटामिया, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, खैबर तथा अन्य अनेक स्थानों पर युद्ध में भाग लिया था. अब उन्हें पदोन्नत कर हवलदार बना दिया गया.

1930 में गढ़वाल राइफल्स को पेशावर भेजा गया. वहां नमक कानून के विरोध में आन्दोलन चल रहा था. चंद्र सिंह गढ़वाली जी ने अपने साथियों के साथ यह निश्चय किया कि वे निहत्थे सत्याग्रहियो को हटाने में तो सहयोग करेंगे; पर गोली नहीं चलायेंगे. सबने उसके नेतृत्व में काम करने का निश्चय किया.  23 अप्रैल, 1930 को सत्याग्रह के समय पेशावर में बड़ी संख्या में लोग जमा थे. तिरंगा झंडा फहरा रहा था. बड़े-बड़े कड़ाहों में लोग नमक बना रहे थे. एक अंग्रेज अधिकारी ने अपनी मोटरसाइकिल उस भीड़ में घुसा दी.

इससे अनेक सत्याग्रही और दर्शक घायल हो गए. सब ओर उत्तेजना फैल गई. लोगों ने गुस्से में आकर मोटरसाइकिल में आग लगा दी. गुस्से में पुलिस कप्तान ने आदेश दिया – गढ़वाली थ्री राउंड फायर पर उधर से हवलदार मेजर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी की आवाज आयी – गढ़वाली सीज फायर. सिपाहियों ने अपनी राइफलें नीचे रख दीं. पुलिस कप्तान बौखला गया; पर अब कुछ नहीं हो सकता था. 

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी ने कप्तान को कहा कि आप चाहे हमें गोली मार दें; पर हम अपने निहत्थे देशवासियो पर गोली नहीं चलायेंगे. तुरन्त ही गढ़वाली पल्टन को बैरक में भेजकर उनसे हथियार ले लिये गये. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली  जी को गिरफ्तार कर 11 वर्ष के लिए जेल में ठूंस दिया गया. उनकी सारी सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई. जेल से छूटकर वे खामोश नहीं बैठे और उन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्रयास जारी रखे .. 

अफ़सोस की बात है कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो उनको मिलना था और आख़िरकार आज़ादी के नकली ठेकेदारों के जयजयकार के बीच इस वीर बलिदानी ने एक अक्तूबर, 1979 को अंतिम सांस ली ..हैरानी की बात ये रही कि उनकी रिहाई के लिए भी उस स्तर पर प्रयास नहीं किये गये जबकि उन्होंने अहिंसक लोगों पर हिंसा रोकी थी . 

आज भारत के उस महावीर के द्वारा  के नेतृत्व में किये गये पेशावर काण्ड की स्मृति दिवस पर सुदर्शन परिवार वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी को शत-शत नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.साथ ही सवाल करता है आज़ादी के तमाम तथाकथित ठेकेदारों और नकली कलमकारों से कि उन्होंने ऐसे वीर बलिदानी की यशगाथा को समाज को क्यों नहीं जानने दिया.

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