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2 मार्च : अंग्रेजों के साथ गद्दारों का भी संहार करती हुई आज ही बलिदान हो गईं थी वीरांगना रानी तलाश कुंवरि... लेकिन दुर्भाग्यवश देश में इनके बजाय मनाई गई अत्याचारी टीपू और निजाम की जयंती

आज शौर्य की उस महान प्रतीक रानी के बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उनको बारंबार नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प भी दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Mar 2 2024 8:46AM
ये भारत की तथाकथित सेकुलर राजनीति भले ही कुछ करवाये अन्यथा वीर वीरांगनाओं ने अपना कर्तव्य निभा ही दिया था. नारियों के लिए जिस देश मे आदर्श बना कर टेरेसा को प्रस्तुत किया जाता रहा उसमें वीरांगना रानी तलाश कुंवरि जी का नाम भी शामिल हो सकता था लेकिन चाटुकार इतिहासकार व नकली कलमकारों ने जो कुछ किया उसकी क्षमा शायद ही समय के पास हो. वहीं, आज शौर्य की उस महान प्रतीक रानी के बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उनको बारंबार नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प भी दोहराता है.

महान सेनानी बस्ती जिले की अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुवंरि जी थी. जिन्होंने अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी. उन्होने अपने इलाको में लोगों में अंग्रेजो के खिलाफ ऐसी मुहिम चलायी थी कि रानी की बलिदान के बाद कई महीने युद्ध जारी रही. लेकिन अपना सर्वस्व बलिदान कर देनेवाली रानी का इतिहास लिखे बिना ही रह गया. पर आज भी रानी अमोढ़ा के नाम से वे लोकजीवन में विद्यमान हैं और अंग्रेजों की तोपों से खंडहर में तव्दील उनका महल और किला बरबस ही उनकी याद दिलाता रहता है.
 
रानी अमोढ़ा की लोकप्रियता और वीरता का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि उन्होने 10 महीने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी. रानी की बलिदान के बाद भी स्थानीय ग्रामीणों ने उस समय तक युद्ध जारी रखी जब सारी जगह शोले बुझ चुके थे. रानी को घाघरा नदी के तटीय या माझा इलाके में इतना बड़ा जनसमर्थन हासिल था कि यहां की बगावत से निपटने के लिए फरवरी 1858 में अंग्रेजों को नौसेना ब्रिगेड की तैनाती भी करनी पड़ी थी.

स्थानीय ग्रामीणों ने अंग्रेजी नौसेना तथा गोरखाओं के छक्के काफी दिनो तक छुड़ाए. आसपास के जिलों गोंड़ा और फैजाबाद में भी क्रांति की ज्वाला दहक रही थी और नदी के तटीय इलाको में घाटों की पहरेदारी तथा चौकसी के नाते अंग्रेजों का आना जाना असंभव हो गया था. गोरखपुर-लखनऊ राजमार्ग पर बस्ती-फैजाबाद के मध्य बसे छावनी कसबे से महज एक किलोमीटर दूरी पर स्थित बस्ती जिले की अमोढ़ा रियासत एक जमाने में राजपूतों की काफी संपन्न रियासत हुआ करती थी.

1857 के महान संग्राम में बस्ती जिले में केवल नगर तथा अमोढ़ा के राजाओं ने ही अंग्रेजों के खिलाफ अपना सर्वस्व बलिदान दिया ,जबकि बाकी रियासतें अंग्रेजों की मदद कर रही थीं. पर जिले के हर हिस्से में किसान तथा आम लोग अपने संगठन के बदौलत अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे. अमोढ़ा तो कालांतर में बागियों का मजबूत केंद्र ही बन गया था,जहां बड़ी संख्या में तराई के बागी भी पहुंचे थे.

अमोढ़ा की रानी ने इसी जनसमर्थन के बूते अंग्रेजो को लोहे के चने चबवा दी थी. रानी अमोढा 1853 में राजगद्दी पर बैंठीं और उनका शासन 2 मार्च 1858 तक रहा. रानी अमोढ़ा भी झांसी की रानी की तरह निसंतान थीं. अंग्रेजों ने उनके शासन के दौरान कई तरह की दिक्कतें खड़ी करने की कोशिश की ,पर स्वाभिमानी रानी ने हर मोरचे का मुकाबला किया. रानी ने 1857 की क्रांति की खबर मिलने के बाद अपने भरोसेमंद लोगों के साथ बैठके की और फैसला किया कि अंग्रेजों को भारत से खदेडऩे में स्थानीय किसानो और लोगों की मदद से जी जान से जुट जाना चाहिए.

 
नेपाली सेना की मदद से 5 जनवरी 1858 को जब गोरखपुर पर अंग्रजो ने अपना कब्जा कर लिया तो उनका ध्यान बस्ती के दो सबसे बागी इलाको की ओर गया. इसमें अमोढ़ा भी एक था. अंग्रेजी सेनाओं ने रोक्राफ्ट के नेतृत्व में अमोढ़ा की ओर कूच किया पर दूसरी तरफ गोरखपुर से पराजय के बाद बागी नेता और सिपाही भी राप्ती पार कर बस्ती जिले की सीमा में पहुंचे.

उन्होने उस समय के क्रांति के केन्द्र बने अमोढ़ा के ओर कूच किया. इससे बागियों की संख्या बढ़ गयी. लेकिन अंग्रेजों की लम्बी फिर भी रानी अमोढ़ा के नेतृत्व में अंग्रेजी फौजों को बागियों ने कड़ी चुनौती दी और अंग्रेजी सेना को करारी शिकस्त मिली. पर इस युद्ध में 500 भारतीय सैनिक वीरगती हो गए थे. इसके बाद हालात की गंभीरता को देखते हुए बड़ी संख्या में अंग्रेजी फौज और तोपें जब अमोढ़ा के लिए रवाना की गयी तो हरकारों के माध्यम से बागियों को यह खबर मिल गयी.
 
2 मार्च 1858 को रानी ने खुद अपनी कटार से अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी. आज शौर्य की उस महान प्रतीक रानी के बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उनको बारंबार नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प भी दोहराता है.. साथ ही हिंदुओं के हत्यारे टीपू सुल्तान की जयंती मनाती उस राजनीति से सवाल करता है कि देश की नारी शक्ति रूपी इस अमूल्य धरोहर की जयंती या बलिदान दिवस उनको क्यों नही है याद ..

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