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16 मई : आज से ही शुरू हो गई थी कमलेश तिवारी की हत्या की उल्टी गिनती, वो कमलेश तिवारी जिन्हें नाम दिया गया था "गुस्ताख़ - ए - नबी"...

आखिर कौन सा रास्ता था वह जानिए विस्तार से..

Sumant Kashyap
  • May 16 2024 10:08AM

यदि आपने किसी टीवी डिबेट में आर्य समाजी संतो वह यति नरसिंहानंद जी जैसे धर्म आचार्यों को किसी अल तकिया के बारे में कहते और उसके बारे में सामने वाले से बहस करते देखा होगा तो आज उस अल तकिया को समझने का सबसे अच्छा दिन उन्हें धर्म आचार्यों के मुताबिक होगा. हिंदुओं के बड़े नाम कमलेश तिवारी को जिस बेरहमी से मौत के घाट उनके घर में ही उतार दिया गया था उस निर्मम हत्या की नींव और बुनियाद ताज ही बाकायदा डाल दी गई थी और उठा लिया गया था पहला कदम जो आखिरकार कमलेश तिवारी की निर्मम हत्या के रूप में समाप्त हुआ है.

सरकारी मशीनरी का फेल होना कमलेश तिवारी की सुरक्षा को हटाना जैसे मुद्दे तो इस मामले में प्रमुख कारक रहे लेकिन साथ ही जुड़ा था वह मजहबी चरमपंथ जो रक्त रंजित प्रतिशोध में विश्वास करता है. हत्यारों की सीधी कोई भी दुश्मनी कमलेश तिवारी से नहीं थी यहां तक कि हत्यारे जीवन में इससे पहले कभी कमलेश तिवारी से मिले भी नहीं थे. वह पहली मुलाकात थी जो अंत में आखिरी भी साबित हुई. इस हत्या में कई बड़े मौलाना मौलवी वाह वकील तक शामिल मिले जिससे साफ जाहिर हुआ कि आतंकवाद व नरसंहार का अशिक्षा गरीबी इत्यादि से कोई संबंध नहीं है.

इस हत्या में जो मार्ग अपनाया गया उस पर अल तकिया शब्द से टीवी पर आए दिन बहस होती रहती है. सत्य के मार्ग का पूरा वर्णन एक बार ओवैसी ने अपने मंच से भी किया था और इशारों इशारों में बताया था किस प्रकार इस्लाम के इतिहास में  एक व्यक्ति को दोस्ती करके  मौत के घाट उतारा गया था.  इस पूरे प्रकरण की साजिश  के तार भले ही देश के विभिन्न कोने से जुड़े हो लेकिन इसे अमलीजामा उस गुजरात में पहनाया जा रहा था जहां की एक वर्ग को सन 2002 से अब तक वामपंथी वर्ग वाह तथाकथित सेकुलर शक्तियां मासूम बेचारा उपेक्षित इत्यादि शब्द से संबोधित करती आ रही है.

जिस तरह से कमलेश तिवारी की ह्त्या करने के लिए मजहबी उन्मादियों ने न सिर्फ प्लान बनाया बल्कि उसको अंजाम तक पहुंचाते हुए कमलेश तिवारी की जान ले ली, वो काफी हैरान करने वाला है. हम कह सकते हैं कि लव जिहाद, लैंड जिहाद या अन्य तमाम की तरह ये डिजिटल जिहाद है जिसने कमलेश तिवारी की ह्त्या की गई. पुलिस सूत्रों के मुताबिक कमलेश तिवारी की हत्या खूब-सोची समझी रणनीति के तहत लम्बी योजना बनाकर की गई. जिहादियों ने इसके लिए सोशल मीडिया फेसबुक का सहारा लिया था. हिंदू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी की जिन्दगी में सब कुछ सही चल रहा था. फिर एक दिन उन्हें रोहित सोलंकी नाम के किसी व्यक्ति ने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड की. रोहित सोलंकी नाम की इस फेसबुक आईडी से हिंदूवादी पोस्ट की जाती थीं, अतः कमलेश तिवारी ने ये फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली. यही वो समय था जब कमलेश तिवारी डिजिटल जिहाद में फंस गए.

दरअसल ये रोहित सोलंकी कोई और नहीं बल्कि आतंकी अशफाक था.. वो अशफाक जिसने कमलेश तिवारी के ऑफिस में आकार उनकी ह्त्या की थी. फेसबुक आईडी के जरिए रोहित बने अशफाक ने कमलेश तिवारी से संपर्क साधा तथा कमलेश तिवारी उसके फेसबुक फ्रेंड बन गए थे. अशफाक अपने छ्द्मनाम रोहित से ही कमलेश से चैट किया करता था. फेसबुक पर बातचीत के दौरान ही उसने कमलेश से मुलाकात का वक्त मांगा था. इससे साफ है कि हिंदू समाज पार्टी के संस्थापक कमलेश की हत्या की प्लानिंग बीते कई महीनों से चल रही थी.

रोहित सोलंकी के नाम से बनी आईडी से पता चलता है कि कमलेश तिवारी की हत्या का प्रथम चरण अर्थात व फेसबुक ID आज ही के दिन अर्थात 16 मई को अशफाक ने बनाया था. यही नहीं पूरी चालाकी के साथ उसने इस आईडी पर अपनी कोई फोटो या पहचान जाहिर नहीं की थी. फेसबुक आईडी से यह पता चलता है कि वह सूरत में ही रहता था. इसके अलावा अशफाक ने इस फेसबुक आईडी की प्रोफाइल पिक के तौर पर हिंदू समाज पार्टी का बैनर ही लगा रखा था, जिसकी टैगलाइन थी, ‘एक कदम हिंदुत्व की ओर’. इसी को  देखते हुए कमलेश तिवारी ने फेसबुक रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की और इसी डिजिटल जिहाद को आगे बढाते हुए इस्लामिक जिहादियों ने क्रूरतम कमलेश तिवारी की जान ले ली.

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