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13 सितंबर: बलिदान दिवस क्रांतिवीर जतीन्द्रनाथ दास जी... अंग्रेजों ने पागलखाने के डॉक्टर को बुला कर नसों में लगाए इंजेक्शन पर जुबान पर गूंजता रहा "वन्देमातरम"

ऐसे वीर बलिदानियों की गौरवगाथा को समय समय पर जनमानस के सामने लाते रहने के अपने संकल्प को भी दोहराता है. वीर जतिन जी अमर रहें

Sumant Kashyap
  • Sep 13 2024 7:28AM

किसने कहा की मिली थी आज़ादी हमे बिना खड्ग बिना ढाल, कैसे मान लें की क्रांतिकारी वो अपने रक्त का कतरा कतरा लुटा गए इन भारत भूमि के लिए उनके प्रयास निरर्थक थे. क्या उन्होंने ठेकेदारी नहीं ली इस महान आज़ादी की यही उनका दोष है ? क्या उनके परिवार ने सत्ता सुख भोगने की इच्छा नहीं रखी यही गलती हुई उन्हें या उन्होंने प्रचार नहीं करवाया अपना ये कमी रह गयी. उन्ही लाखों ज्ञात और अज्ञात वीर बलिदानियों में से एक थे आज अर्थात १३ सितम्बर को बलिदान हुए क्रांतिवीर जतिन नाथ दास जी.

इस वीर बलिदानी का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता में हुआ था. उन्हें जतिन दास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे. लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया था. स्वतंत्रता से पहले अनशन या भूख हड़ताल से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं. जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है. वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए. जतिंद्र बाबू ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था. नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में कैद किया गया था.

वहाँ वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन दास ने अनशन का त्याग किया था. जब उनसे भारत के अन्य भागों में क्रांतिकारियों द्वारा संपर्क किया गया तो पहले तो उन्होने मना कर दिया फिर वह सरदार भगत सिंह के समझाने पर उनके संगठन लिए बम बनाने और क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने पर सहमत हुए. 14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद किया गया था.

लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी, भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की, भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था. जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी, रसोई क्षेत्र और भोजन पर चूहे और तिलचट्टों का कब्जा रहता था, कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था, जबकि एक ही जेल में किन्ही वजह से बंद अंग्रेज कैदियों की हालत विपरीत थी. क़ैद मे होते हुये भी उनको सब सुख सुविधा दी गई थी.

जेल में जतिन दास और उनके साथियों की भूख हड़ताल अवैध नजरबंदियों के खिलाफ प्रतिरोध में एक महत्वपूर्ण कदम था. यह यादगार भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को शुरू हुई और 63 दिनों तक चली. जेल अधिकारीयों ने जबरन जतिन दास और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खिलाने की कोशिश की, उन्हें मारा पीटा गया और उन्हें पीने के पानी के सिवाय कुछ भी नहीं दिया गया वो भी तब जब इस भूख हड़ताल को तोड़ने के उन के सारे प्रयास विफल हो गए. जतिन दास ने पिछले 63 दिनों से कुछ नहीं खाया था ऊपर से बार बार जबरन खिलाने पिलाने की अनेकों कोशिशों के कारण वो और कमज़ोर हो गए थे.

फिर पूरी सोची समझी साजिश के तहत एक पागलखाने का डाक्टर बुला कर इनकी नसों में जबरन दवा डाली गई जिसका सीधा सम्बन्ध था इस वीर बलिदानी को धीरे धीरे मौत देना और आखिर में वो सब साजिश सफल रही. इन सब का नतीजा यह हुआ कि भारत माँ के यह वीर सपूत 13 सितंबर 1929 को सदा के लिए अमर हो गए पर अंग्रेजों के खिलाफ उनकी 63 दिन लंबी भूख हड़ताल आखरी दम तक अटूट रही.

उनके पार्थिव शरीर को रेल द्वारा लाहौर से कोलकाता के लिए ले जाया गया. हजारों लोगों इस सच्चे शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रास्ते के स्टेशनो की तरफ दौड़ पड़े. बताते है कि उनके अंतिम संस्कार के समय कोलकाता में दो मील लंबा जुलूस अंतिम संस्कार स्थल तक उनके पार्थिव शरीर के साथ साथ,'जतिन दास अमर रहे'. 'इंकलाब ज़िंदाबाद' , के नारे लगते हुये चला. उस वीर योद्धा, अमर बलिदानी के बलिदान दिवस पर आज अर्थात 13 सितम्बर पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन करता है और ऐसे वीर बलिदानियों की गौरवगाथा को समय समय पर जनमानस के सामने लाते रहने के अपने संकल्प को भी दोहराता है. वीर जतिन जी अमर रहें

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