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शौक थी बम फोड़ने की, सजा है अंतिम साँस भी जेल मे लेने की; जयपुर बम ब्लास्ट केस में 17 साल बाद हुआ न्याय... सैफुर्रहमान, सैफ, सरवर और शाहबाज के जिहाद की सीमा समाप्त

Jaipur Bomb Blast Case: जयपुर को दहलाने वाले अब तिल-तिल कर सड़ेंगे जेल में, कोर्ट ने नहीं दी रहम की कोई गुंजाइश, सुनाई उम्रकैद की सज़ा।

Ravi Rohan
  • Apr 8 2025 3:31PM

राजस्थान की विशेष अदालत ने 17 साल पुराने जयपुर बम धमाकों से जुड़े जिंदा बम मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चार खूंखार आतंकियों को मंगलवार (8 अप्रैल 2025) को उम्रभर के लिए सलाखों के पीछे भेज दिया है। सजा पाए आतंकियों के नाम सैफुर्रहमान, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आजमी और शाहबाज अहमद हैं। अब ये दरिंदे अपनी आखिरी सांस तक जेल की काल कोठरी में सड़ेंगे। रामचंद्र मंदिर, चांदपोल के पास बरामद हुए जिंदा बम के मामले में अदालत ने न्याय का परचम लहराया। 

आतंक के सौदागर: चारों दोषी करार

विशेष अदालत के जज रमेश कुमार जोशी ने दोषियों — सैफुर्रहमान, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आजमी और शाहबाज अहमद — पर कानून का शिकंजा कसते हुए सख्त सजा सुनाई। इन चारों को IPC की चार धाराओं, विस्फोटक अधिनियम की तीन धाराओं और यूएपीए की दो धाराओं के तहत दोषी पाया गया। अदालत ने एक भी रियायत देने से इनकार कर दिया।

बरी होने के बाद भी कानून का फंदा कस गया

गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से तीन आतंकियों को पहले जयपुर सीरियल ब्लास्ट केस में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर उन्हें रिहा कर दिया था। हालांकि, सरकार की अपील अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। वहीं, जिंदा बम मामले में ठोस गवाहियां और सबूतों की बदौलत इन्हें उम्रकैद मिली। अभियोजन पक्ष ने कोई कसर नहीं छोड़ी!

कोर्ट में पहुंचे आरोपी, मौके पर ही भेजे गए सलाखों के पीछे

फैसले के दिन सरवर आजमी और शाहबाज अहमद, जो अब तक जमानत पर थे, कोर्ट में पेश हुए तो उन्हें सजा सुनाते ही मौके पर ही हिरासत में ले लिया गया। जबकि सैफुर्रहमान और मोहम्मद सैफ पहले से ही जेल में बंद थे। अब चारों के लिए जेल ही उनकी ज़िंदगी का आखिरी ठिकाना बन गई है।

112 गवाह, 17 साल की कड़ी लड़ाई

राजस्थान एटीएस ने 2019 में इन आतंकियों को दोबारा गिरफ्त में लेकर जिंदा बम केस में पूरक चार्जशीट दाखिल की थी। कुल 112 गवाहों के बयानों ने केस को मजबूती दी, जिनमें पत्रकार प्रशांत टंडन, पूर्व एडीजी अरविंद कुमार और साइकिल ठीक करने वाले दिनेश महावर जैसे अहम गवाह शामिल थे। ये गवाह बने इंसाफ की सबसे बड़ी ताकत।

आतंकियों की चालें नाकाम

दोषियों के वकील ने अदालत में दलील दी कि मंदिर के सामने साइकिल किसने रखी, इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है। साथ ही, उन्होंने तर्क दिया कि दोनों केसों में तथ्य समान हैं, फिर भी पहले हाईकोर्ट ने राहत दी थी। लेकिन अदालत ने अभियोजन की दलीलों को ठोस मानते हुए हर दलील को खारिज कर दिया और किसी भी तरह की राहत से इनकार कर दिया।

2008 के खूनी खेल का न्यायपूर्ण अंत

13 मई 2008 को जयपुर में 8 धमाकों ने 71 निर्दोष जिंदगियों को लील लिया था और सैकड़ों घायल हुए थे। भीड़-भाड़ वाले बाजारों और मंदिरों को निशाना बनाया गया था। उसी दिन चांदपोल में नौवां बम मिला, जिसे समय रहते निष्क्रिय कर दिया गया। आज, इतने वर्षों बाद न्याय ने अपने परचम को बुलंद किया है, और आतंकी साजिशों में लिप्त इन गुनहगारों को सजा दिलाकर देश को राहत दी है।

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