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कुम्भ मेले पर विदेशी यात्रियों की ऐतिहासिक प्रतिक्रिया (13)

कुम्भ मेला—विश्व दृष्टि से भारतीयता का अद्वितीय स्वरूप

Dr. Suresh Chavhanke
  • Jan 26 2025 12:13PM

कुम्भ मेले पर विदेशी यात्रियों की प्रतिक्रियाएँ: एक ऐतिहासिक और आधुनिक परिप्रेक्ष्य 

प्रस्तावना: कुम्भ मेला—विदेशी दृष्टिकोण से भारत का दार्शनिक और सांस्कृतिक चमत्कार

कुम्भ मेला, भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की व्यापकता का प्रतीक, शताब्दियों से विदेशी यात्रियों, लेखकों, और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता रहा है। यह आयोजन केवल भारतीयों के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर उन लोगों के लिए भी एक चमत्कार है, जिन्होंने इसे देखा, समझा, और अपनी कलम से इसे अमर कर दिया।

• प्राचीन भारत के यात्री इसे एक आध्यात्मिक धरोहर के रूप में देखते थे।

• आधुनिक शोधकर्ता और लेखक इसे मानवता, सह-अस्तित्व, और अनुशासन का सबसे बड़ा उदाहरण मानते हैं।

1. प्राचीन विदेशी यात्रियों की कुम्भ मेला पर प्रतिक्रियाएँ

1.1 ह्वेनसांग (7वीं शताब्दी): सबसे पुराना विवरण

• चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में प्रयागराज (उस समय का कौशाम्बी) के संगम पर आयोजित मेले का उल्लेख किया।

• उन्होंने इसे “महान धार्मिक उत्सव” कहा, जहाँ हजारों साधु-संत और तीर्थयात्रीसंगम में स्नान करने आते थे।

• ह्वेनसांग ने विशेष रूप से भारतीय समाज की धार्मिकता, अनुशासन, और समर्पण की प्रशंसा की।

• उन्होंने लिखा:

“यह भारत की आस्था और समाज के संगठित होने का अद्वितीय उदाहरण है।”

1.2 मार्को पोलो (13वीं शताब्दी)

• इतालवी यात्री मार्को पोलो ने भारतीय धार्मिक आयोजनों के बारे में लिखा है, जिनमें संभवतः कुम्भ मेले जैसे बड़े आयोजन शामिल थे।

• उन्होंने भारतीयों के धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्रा के प्रति उनकी गहरी आस्था की सराहना की।

2. मध्यकालीन और औपनिवेशिक युग में यात्रियों की टिप्पणियाँ

2.1 फ्रांसीसी यात्री फ्रैंकोइस बर्नियर (17वीं शताब्दी)

• फ्रैंकोइस बर्नियर, एक फ्रांसीसी यात्री और मुग़ल दरबार में चिकित्सक, ने भारतीय तीर्थ यात्राओं और कुम्भ मेले का उल्लेख किया।

• उन्होंने इसे “विश्व का सबसे बड़ा जनसमूह” बताया, जहाँ लाखों लोग एकत्रित होते थे।

• उनके अनुसार, यह आयोजन न केवल धार्मिकता, बल्कि भारतीय समाज की सहनशीलता और अनुशासन का प्रतीक था।

2.2 ब्रिटिश पर्यवेक्षकों की टिप्पणियाँ

• ब्रिटिश काल के दौरान कई अधिकारियों और पत्रकारों ने कुम्भ मेले को एक सामाजिक और प्रशासनिक चमत्कार के रूप में देखा।

• 19वीं शताब्दी में, जॉन स्ट्रीची ने इसे “भारतीय समाज की जड़ों में धर्म के गहरे प्रभाव का प्रतीक” कहा।

3. आधुनिक युग में विदेशी लेखकों और पर्यटकों की प्रशंसा

3.1 मार्क ट्वेन (1895): कुम्भ मेला पर अद्भुत शब्द

• अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने 1895 में कुम्भ मेले का दौरा किया।

• उन्होंने लिखा:

“यह ऐसा दृश्य है जिसे केवल भारत ही प्रस्तुत कर सकता है। लाखों लोगों का शांतिपूर्ण और अनुशासित समागम, जो किसी अन्य देश में असंभव है।”

• ट्वेन ने भारतीय समाज की धार्मिकता और आत्म-अनुशासन की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

3.2 नेशनल ज्योग्राफिक (20वीं सदी)

• नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका ने कुम्भ मेले पर कई बार लेख प्रकाशित किए।

• उन्होंने इसे “मानवता का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम” कहा।

• उनकी तस्वीरों और रिपोर्टों ने कुम्भ मेले को वैश्विक पहचान दिलाई।

4. 21वीं सदी में विदेशी पर्यटकों और मीडिया की नजर में कुम्भ मेला

4.1 न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी

• न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी जैसे भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय मीडिया हाउस ने कुम्भ मेले को “अविश्वसनीय भारत” का सबसे बड़ा उदाहरण कहा।

• 2019 के प्रयागराज कुम्भ में, बीबीसी ने इसे “सह-अस्तित्व और सामूहिकता का सबसे बड़ा उदाहरण” बताया।

4.2 आधुनिक विदेशी यात्री और उनके अनुभव

• ऑस्ट्रेलियाई योग शिक्षिका मार्था स्टोनर ने कहा:

“कुम्भ मेला ने मुझे सिखाया कि भारतीय दर्शन कितना गहन और व्यापक है। यहाँ जीवन का हर पहलू धर्म और साधना से जुड़ा है।”

• अमेरिकी लेखक एलिजाबेथ गिल्बर्ट ने लिखा:

“कुम्भ मेला में आत्मा की खोज, प्रकृति के साथ सामंजस्य, और मानवता का सार झलकता है।”

4.3 2019 प्रयागराज कुम्भ में विदेशी भागीदारी

• 2019 के कुम्भ में लगभग 10 लाख विदेशी पर्यटक शामिल हुए।

• उन्होंने संगम स्नान, योग शिविर, और साधु-संतों के प्रवचन का अनुभव लिया।

5. कुम्भ मेले पर शोध और अध्ययन

5.1 समाजशास्त्रीय और धार्मिक अध्ययन

• कई समाजशास्त्रियों और धर्मशास्त्रियों ने कुम्भ मेले पर शोध किया है।

• डॉ. क्रिस्टोफर जॉन्सन (यूके):

• उन्होंने कुम्भ मेले को “धार्मिकता और सामाजिक संगठितता का सर्वोत्तम उदाहरण” कहा।

5.2 वैश्विक विश्वविद्यालयों में अध्ययन

• हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों ने कुम्भ मेले पर विशेष पाठ्यक्रम तैयार किए हैं।

• “कुम्भ: मानवता और धर्म का संगम” जैसे शोध विषयों पर कार्य हो रहा है।

डॉ सुरेश चव्हाणके 

(चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)

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