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कुंभ और गुप्त अखाड़े: कौन हैं वे जो दिखते नहीं, लेकिन मौजूद हैं ?

धर्म योद्धा डॉ सुरेश चव्हाणके जी की #महाकुंभ_लेखमाला लेख क्रमांक 43

Dr. Suresh Chavhanke
  • Feb 22 2025 9:32AM
कुंभ और गुप्त अखाड़े: कौन हैं वे जो दिखते नहीं, लेकिन मौजूद हैं?

महाकुंभ लेखमाला – लेख क्रमांक 43

लेखक:
डॉ. सुरेश चव्हाणके (चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)

प्रस्तावना: कुंभ के गुप्त अखाड़ों का गहरा रहस्य और सनातन की अद्भुत अद्वितीय महान परंपरा। 

कुंभ मेले में साधु-संतों का महासंगम होता है। 13 प्रमुख अखाड़े इस मेले में खुले रूप से भाग लेते हैं, लेकिन क्या यही संन्यासी परंपरा का संपूर्ण स्वरूप है?

क्या कुछ ऐसे अखाड़े भी हैं जो गुप्त रूप से कुंभ में भाग लेते हैं?
क्या ये अखाड़े कभी उजागर नहीं होते, या केवल विशेष अवसरों पर ही प्रकट होते हैं?
क्या इनके पास ऐसी साधनाएँ और रहस्य हैं जो आम जनमानस की समझ से परे हैं?
क्या ब्रिटिश और मुगलों के शासनकाल में इन्हें गुप्त रहने के लिए मजबूर किया गया था? या यह उनकी रणनीति थी ? 

सनातन धर्म की महानता केवल मंदिरों और ग्रंथों तक सीमित नहीं रही, बल्कि साधु-संतों की महान परंपराओं ने इसे जीवंत बनाए रखा। कुंभ मेले में जितने संत हम देख पाते हैं, उससे कई अधिक वे संत हैं, जिनका अस्तित्व केवल गूढ़ ग्रंथों, लोककथाओं, और संत परंपरा में मिलता है।

इस लेख में हम इतिहास, धर्मशास्त्रों, संत परंपराओं, और रहस्यमयी संदर्भों के माध्यम से यह खोजने का प्रयास करेंगे कि कुंभ के गुप्त अखाड़े कौन हैं और क्यों वे दुनिया से छिपे हुए हैं।

1. कुंभ में केवल 13 अखाड़े? या इससे अधिक?

कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और धार्मिक समागम है। यहाँ 13 अधिकृत अखाड़ों की पेशवाई होती है, जिनकी पहचान सार्वजनिक है:
जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अटल, अग्नि, आनंद, आवाहन, दिगंबर, निर्मोही, पंचायती बड़ा उदासीन, नया उदासीन, निर्वाणी अणि, निर्मल अखाड़ा।

लेकिन, क्या कुंभ में आने वाले सभी अखाड़े इतने ही हैं?

लोककथाओं, संत वाणियों, और कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में ऐसे अखाड़ों का उल्लेख मिलता है जो सार्वजनिक रूप से नहीं आते।
कहा जाता है कि ये अखाड़े आम जनता की नजरों से दूर रहकर ही अपनी विशेष साधनाएँ करते हैं।
ये अखाड़े या संप्रदाय विशेष उद्देश्य से कार्य करते हैं, और आम लोगों से स्वयं को छिपाकर रखते हैं।

2. गुप्त अखाड़ों का उल्लेख धर्मशास्त्रों और इतिहास में

स्कंद पुराण और गुप्त साधु संप्रदाय
स्कंद पुराण में ऐसे तपस्वियों का उल्लेख मिलता है जो “अदृश्य सन्यास” में चले जाते हैं।
यह साधु केवल उन्हीं लोगों को दिखते हैं जो साधना के विशेष स्तर तक पहुँचे होते हैं।

अग्नि पुराण में कालमुख संप्रदाय
अग्नि पुराण में कालमुख संप्रदाय का उल्लेख आता है, जो आज लगभग विलुप्त हो चुका है।
लेकिन कहा जाता है कि इसके कुछ साधु आज भी गुप्त साधना में लीन हैं।

ह्वेन त्सांग और अल-बरूनी के उल्लेख
ह्वेन त्सांग (7वीं सदी) और अल-बरूनी (11वीं सदी) ने लिखा कि कुंभ में ऐसे साधु आते थे जो कुछ समय बाद अंतर्धान हो जाते थे।
क्या ये साधु गुप्त अखाड़ों के सदस्य थे?

3. कौन-कौन से अखाड़े गुप्त माने जाते हैं?

ये ऐसे अखाड़े या संप्रदाय हैं जिनकी साधना विशेष होती है:

अवधूत अखाड़ा – रहस्यमयी योगियों का समूह
ये नागा संन्यासियों से अलग होते हैं।
इनकी साधना आम लोगों से बहुत दूर, हिमालय में होती है।
कहा जाता है कि ये साधु कुंभ के दौरान गंगा स्नान करने आते हैं और फिर अंतर्धान हो जाते हैं।

कपालिक संप्रदाय – तंत्र मार्ग के ज्ञाता
यह संप्रदाय शैव तंत्र साधना से जुड़ा है।
इनके अनुयायी अब लगभग विलुप्त माने जाते हैं, लेकिन कुछ का मानना है कि वे गुप्त रूप से मौजूद हैं।

पंच अग्नि साधक अखाड़ा – अग्नि के बीच तपस्या करने वाले योगी
ये साधु पाँच अग्नियों के बीच बैठकर कठोर तपस्या करते हैं।
यह साधना आज भी होती है, लेकिन इन साधुओं तक पहुँचना कठिन है।

गोरखनाथी योगी संप्रदाय – महासिद्ध परंपरा
गोरखनाथ के अनुयायी योग सिद्धियों में निपुण होते हैं।
क्या उनके कुछ साधु गुप्त साधना में लीन रहते हैं और कुंभ में कभी-कभी ही प्रकट होते हैं?

4. गुप्त अखाड़ों की भूमिका: मुगल और ब्रिटिश शासन में संघर्ष से धर्म व संस्कृति बचाने की रही है। 

मुगलों के शासन में कुछ अखाड़े गुप्त हो गए क्योंकि वे हिंदू धर्म की रक्षा कर रहे थे।
अंग्रेजों ने इन्हें खत्म करने की योजना बनाई, क्योंकि वे सनातन धर्म के संरक्षक थे। उनके पास अंग्रेजों से ज्यादा सैनिक और हथियार थे। वह मर मिटने के लिए सदैव तैयार रहते थे। 
क्या ये अखाड़े आज भी धर्म की रक्षा के लिए गुप्त रूप से काम कर रहे हैं?

5. क्या आज भी ये गुप्त अखाड़े कुंभ में भाग लेते हैं?

कुछ संतों और शोधकर्ताओं ने कहा है कि हर कुंभ में कुछ साधु आते हैं, जो मेले की समाप्ति के बाद अदृश्य हो जाते हैं।
क्या ये विशेष उद्देश्यों से कुंभ में आते हैं?
क्या इनका कार्य सनातन धर्म की रक्षा से जुड़ा हुआ है?

6. निष्कर्ष: कुंभ का रहस्य गहरा है

कुंभ मेला केवल 13 अखाड़ों का संगम नहीं, बल्कि अन्य गुप्त संप्रदायों और साधुओं की उपस्थिति का भी केंद्र है।
इतिहास, धर्मशास्त्र और लोककथाएँ इस बात का संकेत देती हैं कि कुछ गुप्त अखाड़े आज भी अस्तित्व में हैं, लेकिन वे आम लोगों के सामने नहीं आते।
क्या अगला कुंभ इन गुप्त अखाड़ों के अस्तित्व का कोई नया प्रमाण देगा?

यह विषय एक रहस्यमयी सत्य को खोजने का प्रयास है, लेकिन यह रहस्य शायद आज भी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ है।
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