कनाडा में हुए 2025 के आम चुनाव ने खालिस्तान के सपनों पर तगड़ा प्रहार किया है। खालिस्तानी एजेंडे के सबसे मुखर पैरोकार और अलगाववादियों के रहनुमा माने जाने वाले जगमीत सिंह की इस चुनाव में बुरी तरह से पराजय हुई है। सिर्फ सीट ही नहीं गई—उनकी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) भी रसातल में चली गई। हार स्वीकार कर जगमीत ने संसद सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया, और यह माना जा रहा है कि उनका राजनीतिक करियर अब लगभग खत्म हो गया है।
NDP के लिए यह चुनाव किसी राजनीतिक जनाजे से कम नहीं रहा। पार्टी 12 सीटों के न्यूनतम मानक को भी पार नहीं कर सकी, जिससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने की नौबत आ गई है। एक समय जिसे "किंगमेकर" कहकर प्रचारित किया जा रहा था, वह आज खुद अपनी पहचान बचाने में असफल हो गया है।
अपनी सीट तक नहीं बचा सके 'खालिस्तान समर्थक' नेता
ब्रिटिश कोलंबिया की बर्नेबी सेंट्रल सीट से चुनाव लड़ रहे जगमीत सिंह को लिबरल पार्टी के वेड चांग ने करारी शिकस्त दी। जगमीत को सिर्फ 27% वोट मिले, जबकि विरोधी उम्मीदवार 40% से ज्यादा वोट लेकर विजयी रहे। यानी खालिस्तानी एजेंडे का जनता ने सीधा और सख्त जवाब दे दिया।
ट्रूडो भी गिरे, लेकिन मार्क कार्नी ने संभाली कमान
पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को भी करारा झटका लगा। हालांकि, पार्टी ने नया चेहरा मार्क कार्नी को आगे बढ़ाया, जिनकी अगुवाई में लिबरल पार्टी ने सत्ता में वापसी कर ली है। अब कनाडा की बागडोर कार्नी के हाथों में रहेगी।
‘अमेरिका का 51वां राज्य’ कहने पर भड़की कनाडाई जनता!
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों—जिनमें उन्होंने कनाडा को “अमेरिका का 51वां राज्य” और ट्रूडो को “गवर्नर” कहकर तंज कसा—ने कनाडा में राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का दिया। यह बयानबाजी लिबरल पार्टी के लिए वरदान साबित हुई, और जनता ने नया नेतृत्व कार्नी के रूप में स्वीकार किया।
खालिस्तान का चेहरा बन चुका जगमीत सिंह अब जनता की अदालत से पूरी तरह खारिज हो चुका है। यह चुनाव कनाडा के इतिहास में न सिर्फ सियासी बदलाव का प्रतीक बना, बल्कि यह भी संदेश दे गया कि देशद्रोही एजेंडे को अब कोई ठिकाना नहीं मिलेगा- न भारत में, न कनाडा में।