मलेशिया में हिंदू समुदाय के अस्तित्व पर एक बार फिर चोट पहुंचाने की कोशिश की गई है। कुआलालंपुर में 130 वर्षों से खड़ा देवी श्री पथराकालीअम्मन मंदिर मिटा दिया गया, और उसी स्थान पर अब एक मस्जिद की नींव रख दी गई है। इससे पहले कि हिंदू समुदाय इस अपमान को पचा पाता, अब एक और झकझोर देने वाली सच्चाई सामने आयी है। दो मासूम हिंदू बच्चों को उनकी मां की बिना अनुमति के जबरन इस्लाम में धर्मांतरित कर दिया गया था।
लेकिन शुक्र है कि मलेशिया की सर्वोच्च अदालत ने इस्लामी कट्टरता को करारा जवाब दिया। फेडरल कोर्ट ने पर्लिस राज्य सरकार की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें इस जबरन धर्मांतरण को वैध ठहराने की कोशिश की गई थी। कोर्ट ने दो टूक कहा, "बिना माता-पिता दोनों की सहमति के, किसी बच्चे का मजहब बदलना पूरी तरह असंवैधानिक है।"
हिंदू महिला लोह सिउ होंग ने अपने बच्चों की कस्टडी और जबरन किए गए धर्मांतरण के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 2022 में निचली अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन होंग ने हार नहीं मानी। आखिरकार 2024 में फेडरल कोर्ट ने हिंदू मां के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, और राज्य सरकार की अपील भी रद्द कर दी गई।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर इस तरह की याचिकाएं मानी जाती रहीं, तो यह मलेशिया में ‘एकतरफा धर्मांतरण’ को संस्थागत रूप से बढ़ावा देने जैसा होगा। कोर्ट ने साफ कहा कि यह लोकतंत्र और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।
बता दें कि मलेशिया में तकरीबन 20 लाख हिंदू रहते हैं, जो अल्पसंख्यक हैं। जबकि मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है और सरकार पर इस्लामी विचारधारा का भारी असर देखा जाता है। मंदिरों को तोड़ना, जबरन धर्मांतरण और प्रशासनिक समर्थन इन घटनाओं को और खतरनाक बना देता है।