राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया है। इस प्रस्ताव में बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ एकजुटता दिखाने और वहां के उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त करने का आह्वान किया गया है। इसके साथ ही, आरएसएस ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की है।
प्रतिनिधि सभा ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया गया है। प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि 1951 में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो अब घटकर केवल 7 प्रतिशत रह गई है, जो एक चिंताजनक स्थिति है।
प्रस्ताव में कहा गया, "अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हो रही सुनियोजित हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। यह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार हनन का गंभीर मामला है।" आरएसएस ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश में हो रहे हमले और हिंसा को केवल राजनीतिक कारणों से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि अधिकांश पीड़ित हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से ही हैं।
बांग्लादेश में हाल ही में मठ-मंदिरों, दुर्गा पूजा पंडालों और शिक्षण संस्थानों पर हमले हुए हैं। इसके साथ ही मूर्तियों का अनादर, हत्याएं, संपत्ति की लूट, महिलाओं का अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाएं लगातार सामने आई हैं। आरएसएस ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए कहा कि इन्हें केवल राजनीतिक घटनाएं मानना, सच्चाई से मुँह मोड़ने जैसा होगा।
इसके अलावा, प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां जानबूझकर भारत के पड़ोसी देशों में अविश्वास और टकराव का माहौल बना रही हैं। इस कारण बांग्लादेश की स्थिति और भी गंभीर हो गई है। आरएसएस ने संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक समुदाय से अपील की है कि वे बांग्लादेश में हो रहे इस अमानवीय व्यवहार का गंभीरता से संज्ञान लें और बांग्लादेश सरकार पर दबाव डालकर इन हिंसक गतिविधियों को रोकने की कोशिश करें।
आरएसएस का यह कदम बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के उत्पीड़न को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास है, ताकि उनकी सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा की जा सके।