नववर्ष के दिन प्रत्येक इंसान चाहे कहीं भी हो अपने आपको को उत्साहित, प्रफुल्लित व नई उर्जा से ओतप्रोत महसूस करता है। अधिकतर देशवासी 1 जनवरी को ही नववर्ष की शुरुआत मानते हैं लेकिन अपनी संस्कृति व इतिहास के प्रति हमारी उदासीनता के चलते यह सत्य नहीं है। 1 जनवरी से शुरू होने वाला कैलेंडर तो ग्रिगोरियन कैलेंडर है। इसकी शुरूआत 15 अक्टूबर 1582 को इसाई समुदाय ने क्रिसमस की तारीख निश्चित करने के लिए की थी क्योंकि इससे पहले 10 महीनों वाले रूस के जूलियन कैलेंडर में बहुत सी कमियां होने के कारण हर साल क्रिसमस की तारीख निश्चित नहीं होती थी। इस उलझन को सुलझाने के लिए 1 जनवरी को ही इन लोगों ने नववर्ष मनाना शुरू कर दिया।
क्या हम भारतीयों ने भी यह सोचा की हमारा नववर्ष कबसे शुरू होता है? हमारा अपना क्या इतिहास है? ठीक है किसी को भी कोई भी उत्सव जब मर्ज़ी मनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए यह उसका अपना निजी अधिकार है लेकिन क्या हम अपनी संस्कृति व अपने संस्कारों की तिलांजलि दे कर उत्सव मनाएं? आज जिस भारतीय संस्कृति का अनुसरण विदेशी लोगों ने करना शुरू किया है उसी भारतीय संस्कृति व सभ्यता को हम तहस-नहस करने पर तुले हैं।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का आगाज 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर आरंभ होता है। हिंदू नववर्ष यानी संवत 2081 इस वर्ष 9 अप्रैल यानी मंगलवार से शुरू होने जा रहा है। दुनिया अभी 2024 में ही अटकी हुई है लेकिन भारत विक्रमी संवत के अनुसार 2081 में प्रवेश कर रहा है। शास्त्रों में कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं। मान्यता है कि नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी मानते हैं।
इसके साथ ही नवसंवत्सर का निवास कुम्हार का घर व समय का वाहन अश्व होगा। भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य की जीत के बाद जब उनका राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने अपनी प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने की घोषणा करने के साथ ही भारतीय कैलेंडर को जारी किया इसे विक्रम संवत नाम दिया गया।
विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। सभी 12 महीने राशियों के नाम पर हैं, इसका समय 365 दिन का होता है। बात करें चन्द्र वर्ष की तो इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं। इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं। ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसके 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है। सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है।
यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कैलेंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र भी प्रारंभ होते हैं। सबसे खास बात इसी दिन ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। ताज्जुब होता है जिस भारतीय कैलेंडर ने दुनिया भर के कैलेंडर को वैज्ञानिक राह दिखाई आज हम उसे ही भूलने लग गए हैं।
हम भारतीय हिंदू नववर्ष के दिन शुभकामनाएं देने से हिचकिचाते हैं शायद इसलिए की कहीं हम पर रूढ़ीवादी का टैग न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादीता नहीं। यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे एक तरफ पूरा विश्व सीख रहा है तो दूसरी ओर हम इस धरोहर को खोते जा रहें हैं। दुनिया को राह दिखाने वाली संस्कृति आज खुद राह से भटकने को मजबूर है। भले ही आज सोशल मीडिया पर हिंदू नववर्ष को मनाने के लिए हम सब संदेशों को प्रचारित प्रसारित कर रहे हों लेकिन हकीकत में उस दिन को भूल जाते हैं।
अपने धर्म व संस्कृति के उत्सवों को मनाने का सभी में लगाव होना चाहिए। हमारे महापुरुषों व वीर योद्धाओं ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत बलिदान दिया है क्या वह बलिदान इसलिए ही दिया था की एक दिन हम अपनी संस्कृति व धर्म को ही भूल जाएं। अभी भी समय है सभी को मिलजुलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे विश्व में हमारी संस्कृति का एक ऐसा संदेश जाए की हम 100 करोड़ से उपर भारतीय अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए एकजुट हों।