भारत को एकता और अखंडता के सूत्र में पिरोते संघ को अपने कार्यकाल में पिरोने का कार्य किया था श्री के एस सुदर्शन जी ने . तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आंधी में एक चट्टान की तरह उन्होंने हिन्दू और हिंदुत्व के सिद्धांतो को जीवित रखा और सदा संदेश देते रहे अपने राष्ट्र और धर्म के लिए अपने जीवन को समर्पित करने का . आज उन महान व्यक्तित्व का जन्मदिवस है जिन्होंने पांचवे सरसंघचालक के रूप में अपने दायित्वों का तब निर्वाहन किया जब देश कई मोर्चो पर तमाम समस्याओं से जूझ रहा था. उस समय संयम , धैर्य , चातुर्य और राष्ट्रवाद का ऐसा अनूठा संगम बने थे पूर्व के एस सुदर्शन जी जो आज भी राष्ट्रवादियों को प्रेरणा देता रहता है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक वंदनीय कुप्पहल्ली सीतारामय्या सुदर्शन को संघ क्षेत्र में मानव एकात्मवाद का प्रतीक माना जाता था। स्वर्गीय श्री सुदर्शन मूलत: तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) गांव के निवासी थे। कन्नड़ परंपरा में सबसे पहले गांव फिर पिता और बाद में स्वयं का नाम होने के कारण उनका नाम कुप्पहल्ली सीतारमय्या सुदर्शन पडा था। उनके पिता सीतारमय्या वन विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय अविभाजित मध्यप्रदेश में ही रहे और यहीं रायपुर में 18 जून 1931 को वंदनीय सुदर्शन जी का जन्म हुआ था।
तीन भाई और एक बहन वाले परिवार में श्री सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। उन्होंने रायपुर, दमोह, मंडला तथा चंद्रपुर में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में जबलपुर से 1954 में दूरसंचार विषय में बीई की उपाधि ली तथा इसके साथ ही वे संघ प्रचारक के नाते आरएसएस में शामिल हो गए। संघ प्रचारक के रूप में श्री सुदर्शन जी को सबसे पहले रायगढ़ भेजा गया।
प्रारंभिक जिला, विभाग प्रचारक आदि की जिम्मेदारियों के बाद सुदर्शन वर्ष 1964 में मध्यभारत के प्रांत प्रचारक बने। सुदर्शन को संघ में जो भी दायित्व मिला उन्होंने उसमें नवीन सोच के आधार पर नए नए प्रयोग किए । वर्ष 1969 से 1971 तक उन पर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व था। इस दौरान ही खड्ग, शूल, छूरिका आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुध्द, आसन, तथा खेल को संघ शिक्षा वर्गों के शारीरिक पाठ्यक्रम में स्थान मिला। पूज्य्नीय सुदर्शन जी अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते रहे हैं ।
पंजाब के बारे में उनकी यह सोच थी कि प्रत्येक केशधारी हिंदू है और प्रत्येक हिंदू दसों गुरुओं व उनकी पवित्र वाणी के प्रति आस्था रखने के कारण सिख है। वह वर्ष 1979 में अखिल भारतीय बौध्दिक प्रमुख बने। इस दौरान भी उन्होंने नए प्रयोग किए तथा शाखा पर होने वाले प्रात:स्मरण के स्थान पर नए एकात्मता स्तोत्र और एकात्मता मंत्र को भी प्रचलित कराया। आज एकात्मता स्तोत्र करने के बाद ही उनका निधन हुआ। सुदर्शन को वर्ष 1990 में संघ में सहसरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गई। श्री सुदर्शन जी 10 मार्च वर्ष 2000 को पांचवे सरसंघचालक बने।
नागपुर में हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के उद्घाटन सत्र में रज्जू भैया ने उन्हें यह दायित्व सौंपा था। नौ वर्ष तक इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाने के बाद पूज्य श्री सुदर्शन जी ने अपने पूर्ववर्ती सरसंघचालकों का अनुसरण करते हुए 21 मार्च 2009 को सरकार्यवाहक आदरणीय श्री मोहन भागवत को छठवें सरसंघचालक का कार्यभार सौंपा।
संजीव जागृति मंडल के अधिकारियों ने बताया कि आज प्रात:कालीन दिनचर्या में नियमित 40 मिनट की पदयात्रा संपन्न करने और एकात्मता स्तोत्रम करने के बाद सुदर्शन अपने कक्ष में गए तथा नियमित योगासन के दौरान शनिवार सुबह लगभग सात बजे वो देवलोक को प्रस्थान कर गए थे .. आज 18 जून को उनके पावन जन्मदिवस पर संसार के सभी राष्ट्र और धर्मभक्तो द्वारा उन्हें याद किया जा रहा है .. सुदर्शन परिवार की तरफ से उन्हें बारम्बार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प है ..