देश आज कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर सैनिकों के परिवार अपने प्रियजनों की बहादुरी और समर्पण को याद कर रहे हैं, जिन्होंने 1999 में बर्फीले ऊंचाइयों पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान अपना बलिदान दिया था.
इसी कड़ी में आज हम आपको भारतीय फाइटर पॉयलट की बहादुरी की दास्तां बताने जा रहे हैं. जिन्हें पाकिस्तान ने बंधक बना लिया था. और उन्हें कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया था. करीब 8 दिन के बाद भारत को सौपा गया था.
भारतीय फाइटर पॉयलट के नचिकेता भी कारगिल युद्ध में थे. वो अपनी कहानी खुद बताते हुए कहते हैं कि, एक रोज़ जब वो फाइटर प्लेन मिग-27 उड़ा रहे थे और दुश्मनों को अपना निशाना बना रहे थे. लेकिन दुश्मनों को अपना निशाना बनाने के दौरान नचिकेता के विमान का इंजन फेल हो गया और उन्हें विमान से निकलना पड़ा था.
एक निजी मीडिया संस्थान से बातचीत में नचिकेता आगे बताते हैं कि, जैसे ही जमीन पर लैंड हुए, उन्हें पाकिस्तानी आर्मी के सैनिकों ने घेर लिया था. उस दिन हमारे साथ तीन अन्य लड़ाकू पायलटों ने उड़ान भरी थी. हमारे निशाने पर मुन्थो ढालो नाम की जगह थी. ये पाकिस्तान लॉजिस्टिक बेस का सेंटर था.
उन्होंने आगे बताया कि, हम लगातार अपने निशानों को तबाह कर रहे थे, तभी मेरा इंजन खराब हो गया. मेरे पास विमान से निकलने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. जब मैं विमान से बाहर निकल गया तो मैंने देखा पहाड़ों में विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.
उन्होंने आगे बताया कि कुछ ही देर में मैंने देखना कि पाकिस्तानी सैनिकों ने मुझे घेर रखा है. इसी बीच ने एक सैनिक ने मेरे मुंह में एके-47 की बैरल घुसेड़ दी थी. मैं उसके ट्रिगर को देख रहा था. मैं यही सोच रहा था कि ये ट्रिगर पुल करेगा या नहीं, शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था.
नचिकेता आगे बताते हैं कि, इसी बीच एक युवा सैनिक को ट्रिगर दबाने से रोक दिया. उसने समझाया कि वो भी सैनिक के रूप में अपनी ड्यूटी कर रहा है. इसके बाद मुझे बंदी बनाकर शिविर स्थल पर ले जाया गया. शिविर में उन्हें काफी ज्यादा टॉर्चर किया था. इजेक्शन की वजह से मुझे बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था. मुझे C130 विमान से मुझे इस्लामाबाद और फिर रावलपिंडी ले जाया गया. इसके एक दिन बाद मुझे ISI के स्पेशल सेल को सौंप दिया था.
नचिकेता राव ने कहा, मुझे सेल में अकेला रहना पड़ता था. ये मेरे लिए कठिन था क्योंकि वो मुझे मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक रूप से तोड़ना चाहते थे, ताकि मैं उन्हें सब बता दूं. लेकिन मैं भाग्यशाली था क्योंकि उसे बाद थर्ड डिग्री शुरू होती है और इसमें शरीर पर निशान पड़ जाते हैं. वो इसमें ये कह कर बच सकते हैं कि मैं सहयोग नहीं कर रहा था और भागने की कोशिश कर रहा था. लेकिन उसे पहले मुझे भारत वापस लाने का फैसला किया गया था.
बता दें कि कारगिल विजय दिवस के आज 25 साल पूरे हो गए हैं. आज के ही दिन इंडियन आर्मी ने कारगिल की जंग में पाकिस्तान को धूल चटाई थी.