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Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के छठे दिन होगी मां कात्यायनी की उपासना, जानिए पूजन विधि, मंत्र, कथा यहां

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर यानी गुरुवार से हो चुकी है। नवरात्रि का छठे दिन मां कात्यायनी को समर्पित होता है।

Rashmi Singh
  • Oct 8 2024 9:53AM

शारदीय नवरात्रि शुरुआत 3 अक्टूबर यानी गुरुवार से हो चुकी है। इस बार नवरात्रि 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक चलेगी। प्रतिपदा तिथि पर कलशस्थापना के साथ ही नवरात्रि का महापर्व शुरू हो चुका है। इस वर्ष देवी मां पालकी पर सवार होकर पृथ्वी पर आ रही हैं। देवी दुर्गा विश्व की माता हैं, मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करने से सभी कष्ट, रोग, दोष, दुख और दरिद्रता का नाश हो जाता है। नवरात्रि का छठे दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। ऐसे में आइए जानते है कि नवदुर्गा के छठे स्वरुप मां कात्यायनी की क्या मान्यता है और माता रानी की उपासना विधि से क्या लाभ होता है। 

कैसे करें मां कात्यायनी की पूजा?

गोधूलि बेला में पीले या लाल वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले फूल और पीली मिठाई अर्पित करें। देवी मां के इस स्वरूप को शहद का भोग लगाना विशेष शुभ होता है। मां को सुगंधित फूल चढ़ाने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे और प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर होंगी। इसके बाद मां के सामने उनके मंत्रों का जाप करें। 

मां कात्यायनी का भोग 

नवरात्रि के छठे दिन देवी मां को शहद का भोग लगाएं। देवी को शहद का भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांट दें। इससे आपको मनचाहा परिणाम मिलेगा। 

मां कात्यायनी का प्रार्थना मंत्र है

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

षष्ठी तिथि

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, नवरात्रि के छठे दिन यानी षष्ठी तिथि को देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। षष्ठी तिथि मंगलवार, 8 अक्टूबर को सुबह 11.17 बजे से बुधवार, 9 अक्टूबर को दोपहर 12.14 बजे तक रहेगी। 

मां कात्यायनी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक जंगल में कत नाम के एक ऋषि रहते थे। उनका कात्या नाम का एक बेटा था। इसके बाद कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ। उनकी कोई संतान नहीं थी। माँ भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने की इच्छा से उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया. कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया. कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। 

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