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'वक्फ बोर्ड की मलाई मौलवियों ने खाई'; अब पसमांदा मुसलमानों ने खोला मोर्चा... कहा- हमें नहीं चाहिए झूठा एजेंडा

कट्टरपंथियों की राजनीति को पसमांदा मुसलमानों की खुली चुनौती... मोदी सरकार के समर्थन में लगे नारे, वक्फ संपत्तियों पर मौलवियों का राज खत्म!

Ravi Rohan
  • Apr 19 2025 10:45AM

वक्फ बोर्ड पर पसमांदा मुसलमानों की बगावत देखने को मिल रही है। वक्फ कानून आने के बाद पहली बार अंदर से वक्फ बोर्ड को लेकर विरोध के स्वर निकलते हुए देखा जा रहा है। बता दें कि पसमांदा मुसलमान, गरीब मुस्लिम वर्ग को कहा जाता है। अब वे सवाल उठा रहे हैं कि, वक्फ बोर्ड से हमें क्या मिला? मौलवियों ने मलाई खायी और हमें धोखा मिला। पसमांदा मुसलमानों ने मोदी सरकार की इस ऐतिहासिक पहल का समर्थन में नारे लगा रहे हैं। 

पहली बार कट्टरपंथी मजहबी नेटवर्क और वक्फ बोर्ड की राजनीति को चुनौती देते हुए गरीब मुसलमान के बगावत के सुर तेज हुए हैं। वे सभा आयोजित कर अब इंसाफ की मांग कर रहे हैं और साजिश को नकार रहे हैं। उनका कहना है कि, हमें अपने हिन्दू पड़ोसियों से लड़ना नहीं है।

उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष और बड़े मुस्लिम नेता मुफ्ती शमून कासमी बोले, "देश के गरीब मुसलमानों के लिए जिस संपत्ति को दान किया गया था, उनका वक्फ बोर्ड के नाम पर कांग्रेस के शासनकाल से दुरुपयोग किया जा रहा था। मोदी सरकार द्वारा लाए वक्फ संशोधन अधिनियम गरीब मुसलमानों को वक्फ संपत्तियों का लाभ दिलाने में मदद करेगा। अब मुसलमान समझ रहे हैं कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उन्हें वोट बैंक बना दिया है। अब गरीब मुसलमान मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं।"

पसमांदा मुसलमानों को न्याय की ओर बढ़ता एक और कदम

केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन को सामाजिक समानता की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल बताया है। सरकार का दावा है कि इस बदलाव से वक्फ संपत्तियों की निगरानी में पारदर्शिता आएगी और लंबे समय से उपेक्षित पसमांदा मुसलमानों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सकेगा। हालांकि, इस कदम को लेकर कुछ लोगों में संदेह की स्थिति बनी हुई है। समाजसेवी फैयाज अहमद फैजी का मानना है कि कानून लागू होने के बाद ही इसके असली असर को समझा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि इसे केवल एक राजनीतिक स्टंट मानने के बजाय इसके क्रियान्वयन पर नजर रखना अधिक जरूरी है- खासकर उन राज्यों में जो NDA के दायरे से बाहर हैं।

BJP सांसद राजेश वर्मा ने इस संशोधन को पसमांदा समाज के लिए 'विश्वास बहाली' की प्रक्रिया का हिस्सा बताया। उनका कहना है कि जैसे-जैसे पिछड़े मुस्लिम समुदाय को इस संशोधन से वास्तविक लाभ दिखेगा, वैसे-वैसे उनके मन में फैली गलतफहमियां भी खुद-ब-खुद दूर हो जाएंगी। वर्मा ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का उदाहरण देते हुए कहा, “शुरुआत में CAA का भी भारी विरोध हुआ था, लेकिन वक्त के साथ लोगों को सच्चाई समझ में आई कि इससे किसी की नागरिकता छीनी नहीं जा रही है।”



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