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18 नवंबर : जन्मजयंती पर नमन कीजिए क्रांतिवीर बटुकेश्वर दत्त जी को...भारत को स्वतंत्र करवाने वाले इस वीर को दर- दर भटकना पड़ा था और करनी पड़ी थी मजदूरी

आज उनके जन्मदिवस पर सुदर्शन न्यूज बारम्बार नमन, वंदन और अभिनंदन करता है.

Sumant Kashyap
  • Nov 18 2024 7:44AM

बिना खड्ग बिना ढाल के इतने शोर में वो बारूद के धमाके भी खो गए जो केवल और केवल हमारे सम्मान और हमारी स्वतंत्रता के लिए किये गए थे .. क्या उन वीरों की गलती केवल इतनी थी की वो चीखे नहीं,चिल्लाये नहीं और हंस कर अपनी छाती पर लगे हर घाव को झेल गए. अफ़सोस और दुर्भाग्य है हमारा जो हम ऐसी थाती को सहेज कर नहीं रख पाए. ऐसे वीरों के चरणों की धूल भी यदि आज के भारत में बची होती तो चीन और पाकिस्तान की हिम्मत सेना से नहीं बल्कि यहां के नागरिको के डर से ना पड़ती कभी युद्ध तो दूर चेतावनी भी देने की.पर हमने बकरी वाली रस्सी तो बचा ली पर फांसी के फंदे खो दिए.

वीरता की अंतिम पराकष्ठा रहे क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त जी का आज जन्मदिवस है. आज ही के दिन अंग्रेजों से ज्यादा भारत के तत्कालीन सत्ताधीशों से प्रताड़ित हुआ ये महावीर भारतवर्ष की धरा पर अवतरित हुआ था.परम बलिदानी भगत सिंह जी और चंद्रशेखर आज़ाद जी के साये की तरह साथी रहे इस वीर को आज़ादी के बाद भी गुमनाम जीवन जीने के लिए उन्होंने छोड़ दिया जिनके बारे में अफवाह उड़ाई जाती है की उन्होंने भारत को आज़ादी दिलवाई थी. असेम्बली में बम फेंकने वाले इस महावीर को एक अपराधी जैसा बर्ताव उसी भारत में झेलना पड़ा जिस भारत के लिए उसने अपने जीवन को दांव पर लगा दिया था.

इस महान क्रांतिवीर का जन्म 18 नवम्बर, 1908 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था. उनका पैत्रिक गांव बंगाल के ‘बर्दवान ज़िले’ में था, पर पिता ‘गोष्ठ बिहारी दत्त जी’ कानपुर में नौकरी करते थे. बटुकेश्वर जी ने 1925 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया. इसी समय वे सरदार भगत सिंह जी और चन्द्रशेखर आज़ाद जी के सम्पर्क में आए और क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सदस्य बन गए. सुखदेव जी और राजगुरु जी के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया. प्रतिशोध की भावना विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रांतिकारियों ने अनेक काम किए. ‘काकोरी’ ट्रेन की लूट और लाहौर के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई. तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया.

क्रांतिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा.असेम्बली बम धमाका 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया. बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए. बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियां भी फेंकी गई. जिनमें बम फेंकने का क्रांतिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था. दोनों ने बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे. साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रांतिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है. इसके बाद भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया.

6 जुलाई, 1929 को भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा. इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई. बाद में लाहौर षड़यंत्र केस में भी दोनों अभियुक्त बनाए गए. इससे भगत सिंह को फ़ांसी की सज़ा हुई, पर बटुकेश्वर दत्त जी के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई. उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए अण्डमान भेज दिया गया. इसके पूर्व राजबन्दियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार के लिए भूख हड़ताल में बटुकेश्वर दत्त जी भी सम्मिलित थे. यही प्रश्न जब उन्होंने अण्डमान में उठाया तो, उन्हें बहुत सताया गया.

स्वतंत्रता बाद वे पटना में रहने लगे थे. एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में बटुकेश्वर दत्त जी का देहान्त हो गया. बलिदान उपरान्त बटुकेश्वर दत्त जी की समाधि आज फिरोजपुर में हैं और उन्ही के साथी भगत सिंह जी की ही समाधि पर उन्हें मुखाग्नि दी गई. पटना की सडको पर ये वीर अकेले चला और जैसे तैसे कमा कर खाया , इनके ऊपर उनकी नजर नहीं गई जो ऐसे ही वीरों के दम पर सत्ता के सुख भोग रहे थे. पल पल कष्ट झेल कर भारत मां को हंसा कर चले गए इस महावीर को आज उनके जन्मदिवस पर सुदर्शन न्यूज बारम्बार नमन , वंदन और अभिनंदन करता है और आज़ादी के सच्चे परवानो को समाज के सामने ला कर उस भ्रम को तोड़ने का संकल्प लेता है जिसमे आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल से आने का दावा किया गया है .

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