नवरात्र कल यानी 3अक्टूबर से शुरू होने वाली है और पूरे देश में इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. चारों ओर गरबा के लिए पंडाल लगाए जाने लगे हैं. गरबा की धूम अभी से ही देखने को मिलने लगी है. इसी बीच मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इंदौर में भी इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. नवरात्र में गरबा के लोगों को आमंत्रित किया जाने लगा है. इसी बीच गरबा के आयोजन को लेकर भाजपा नेताओं के सामने कुछ अड़चनें भी आ रही हैं. इनमें से जो सबसे बड़ा मुद्दा है वह ये कि गरबा पंडालों में गैर-हिंदुओं को पंडाल में प्रवेश करने से कैसे रोका जाए. लेकिन इस समस्या का समाधान बीजेपी के एक नेता ने ढूंढ भी लिया है. उन्होंने इसे रोकने के लिए गजब का तरीका निकाला है.
"हर व्यक्ति को पिलाया जाएगा गौमूत्र"
इंदौर बीजेपी जिला अध्यक्ष चिंटू वर्मा ने नवरात्रि पर्व पर आयोजित होने वाले गरबा महोत्सव में गैर हिंदुओं को रोकने के लिए अपना अनूठा आइडिया पेश किया है. जिसमें उन्होंने कहा कि गरबा पंडाल में आने वाले हर व्यक्ति को गौमूत्र पिलाया जाएगा. इससे कौन हिंदू है और कौन गैर-हिंदू है, यह पता चल जाएगा. उन्होंने कहा कि ऐसे में इस तरीके से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. जिसमें केवल 'वराह' पूजने वालों को प्रवेश की अनुमति दी जाएगी.
इस नए नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गरबा समारोह में भाग लेने वाले सभी श्रद्धालु और भक्त केवल हिंदू धर्म के अनुयायी हों. आयोजकों का मानना है कि इससे गरबा के पवित्र माहौल को बनाए रखा जा सकेगा. आयोजकों ने इस नीति को लागू करने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे कि पंडाल के बाहर एक विशेष काउंटर स्थापित किया जाएगा, जहां आने वाले भक्तों से 'वराह' की पूजा करने का प्रमाण मांगा जाएगा.
यह नीति कई लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गई है. कुछ लोग इसे धर्म आधारित भेदभाव मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक परंपराओं की रक्षा के रूप में देख रहे हैं. कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस नियम का विरोध करते हुए कहा है कि यह एकता और भाईचारे को कमजोर करेगा. उन्होंने यह भी बताया कि गरबा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम सभी समुदायों के लिए खुलें होने चाहिए, जिससे विभिन्न संस्कृतियों के बीच आपसी समझ और प्रेम बढ़े.
दूसरी ओर, कुछ भक्त इस नियम का समर्थन कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस प्रकार की नीतियों से धार्मिक स्थलों और समारोहों की पवित्रता बनी रहती है. उनका मानना है कि यह उन लोगों के लिए है जो वास्तव में गरबा के धार्मिक महत्व को समझते हैं और इसका सम्मान करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के नियमों से सांस्कृतिक विविधता में कमी आ सकती है और यह सभी समुदायों के लिए चिंता का विषय बन सकता है. समय के साथ, यह देखना होगा कि क्या इस नीति से गरबा समारोह में वास्तव में कोई बदलाव आता है या नहीं. इस पर अब समाज के विभिन्न वर्गों की प्रतिक्रियाएँ आना बाकी है.