दिवाली के त्यौहार के बाद भाई दूज का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, भाई दूज का त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर उसके जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस साल भाई दूज का त्योहार 3 नवंबर यानी कल मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 11.39 बजे तक सौभाग्य योग रहेगा।
इसके बाद शोभन योग प्रारंभ हो जाएगा। भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को घर बुलाकर खाना खिलाती हैं और उन्हें तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनके सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
भाई दूज के त्यौहार को भाई दूज, भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया जैसे कई नामों से जाना जाता है। इसे यम द्वितीया, भाऊ बीज, भातृ द्वितीया आदि नामों से जाना जाता है। इस साल भाई दूज का त्योहार 3 नवंबर को है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को घर बुलाकर उन्हें तिलक लगाती हैं और खाना खिलाती हैं। बदले में भाई बहनों को उपहार देते हैं।
पांच दिवसीय दिवाली उत्सव भाई दूज के साथ समाप्त होता है। भाई दूज का त्योहार बहन और भाई के प्रति विश्वास और प्यार का है। हर साल भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भाई दूज के त्यौहार को देशभर में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। यह दिन भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह के रिश्ते का प्रतीक है।
भाई दूज
कार्तिक मास द्वितीया तिथि 2 नवंबर को रात 8:22 बजे शुरू होगी और कार्तिक द्वितीया तिथि 3 नवंबर को रात 10:06 बजे तक रहेगी। ऐसे में जन्मतिथि के अनुसार भाई दूज का त्योहार 3 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन सुबह 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। इसलिए भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11:45 मिनट तक रहेगा।
भाई दूज पूजा विधि
भाई दूज के दिन शाम को शुभ मुहूर्त में भाई-बहनों को यमराज चित्रगुप्त और यम के दूतों की पूजा करनी चाहिए और सभी को अर्घ्य देना चाहिए। बहनों को यम की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए और अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद बहन-भाई को खाना खिलाएं और तिलक लगाएं। इसके बाद भाई को अपनी बहन को अपनी इच्छानुसार उपहार देना चाहिए। इस दिन अगर सभी बहनें अपने भाई को अपने हाथों से खाना खिलाएं तो उसकी उम्र बढ़ती है। साथ ही उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
यमुना और यमराज की पूजा का महत्व
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पृथ्वी पर आए। वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी। अपने भाई को आता देख यमुना ने उन्हें भोजन कराया और तिलक लगाकर उनका आदर-सत्कार किया। अपनी बहन के प्रेम को देखकर यमराज ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस तिथि पर यमुना में स्नान करेगा और यम की पूजा करेगा, उसे मृत्यु के बाद यमलोक की यातना नहीं सहनी पड़ेगी। तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना नदी में स्नान कर यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण में लिखा है कि यमराज को प्रसन्न कर, पूजन करने वाले की हर कामना पूरी होती है।