आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे क्रांतिवीर लहुजी राघोजी साल्वे जी. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर लहुजी राघोजी साल्वे जी का सच दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता.आज क्रांतिवीर लहुजी राघोजी साल्वे जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
क्रांतिवीर लहुजी राघोजी साल्वे जी का जन्म 14 नवंबर 1794 को महाराष्ट्र के पुरंदर किले के नजदीक पेठ गांव में हुआ था. लहुजी राघोजी साल्वे जी के पिता राघोजी साल्वे, पेशवाओं की शिकार दल के प्रमुख थे और पुरंदर किले की सुरक्षा में उनका बड़ा योगदान था. छत्रपति शिवाजी महाराज ने साल्वे परिवार की सेवाओं को मान्यता देते हुए उन्हें "राऊत" की उपाधि से सम्मानित किया था. लेकिन 1818 में पेशवाओं के पतन के दौरान राघोजी साल्वे वीरगति को प्राप्त हुए. उनके निधन के बाद लहुजी राघोजी साल्वे जी ने शनिवारवाड़ा पर दोबारा भगवा फहराने की प्रतिज्ञा की थी.
जब क्रांतिकारी उमाजीराजे नाईक ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, तो लहुजी राघोजी साल्वे जी ने उनका भरपूर समर्थन किया. इसके साथ ही, उन्होंने वासुदेव बलवंत फडके जी के सशस्त्र विद्रोह में भी अपनी भूमिका निभाई. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उनके समर्थक और प्रशिक्षित कार्यकर्ता पूरी तरह सक्रिय थे. इसके अलावा, उन्होंने समाज सुधारकों ज्योतिबा फुले जी और सावित्रीबाई फुले जी के शैक्षणिक कार्यों में भी उनकी सहायता की और सुरक्षा प्रदान की.
लहुजी राघोजी साल्वे जी ने ब्रिटिश विरोधी स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान दिया. पुणे में गंज पेठ की प्रशिक्षण में वे तलवारबाजी, दांडपट्टा, लाठी और कुश्ती का प्रशिक्षण देते थे. उनके नेतृत्व में वासुदेव बलवंत फडके जी, महात्मा ज्योतिबा फुले जी, लोकमान्य तिलक जी, सदाशिवराव परांजपे जी और मोरो विठ्ठल वालवेकर जी जैसे देशभक्तों ने युद्धकला का प्रशिक्षण लिया, जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले प्रमुख नेता बने थे.
लहुजी राघोजी साल्वे जी , जिन्हें सम्मान से "वस्ताद" (गुरु) कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे. उनके शिष्यों में बाल गंगाधर तिलक जी, वासुदेव बलवंत फड़के जी, महात्मा ज्योतिबा फुले जी, गोपाल गणेश आगरकर जी, चापेकर बंधु जी, क्रांतिवीर उमाजी नाईक जी और रावबहादुर सदाशिवराव गोवंडे जी जैसे महापुरुष शामिल थे. लहुजी राघोजी साल्वे जी स्वयं दलित (मातंग) जाति से थे, लेकिन उनके शिष्य विभिन्न जातियों से थे, जो उस समय की सामाजिक एकता का उत्कृष्ट उदाहरण है.
लहुजी राघोजी साल्वे जी के पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में सेवाएं देते थे. साल्वे परिवार सशस्त्र प्रशिक्षण में निपुण था, जिस कारण शिवाजी महाराज ने उन्हें पुरंदर किले की सुरक्षा का दायित्व सौंपा. उनके पराक्रम और वीरता के कारण छत्रपति शिवाजी महाराज ने साल्वे परिवार को "राउत" की उपाधि से सम्मानित किया. पुरंदर किले की रक्षा में साल्वे परिवार के कई सदस्य बलिदान हुए थे, जो उनके देशप्रेम और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाता है.
1818 से 1881 तक लहुजी राघोजी साल्वे जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के लिए कई क्रांतिकारियों का निर्माण किया. इस महान कार्य के लिए उन्हें "आद्य क्रांतिगुरु" की उपाधि दी गई. 17 फरवरी 1881 को उन्होंने अंतिम श्वास ली. उनके अद्वितीय योगदान को आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.
क्रांतिवीर लहुजी वस्ताद साल्वे जी का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्वितीय योगदान को अमर कर देता है. आज क्रांतिवीर लहुजी राघोजी साल्वे जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.