दुनिया में हर देश के अपना-अपना राष्ट्रीय ध्वज है. राष्ट्रीय ध्वज ही उसकी मर्यादा और अस्मिता से जुड़ा होता है लेकिन इस मायने में हमारा राष्ट्र ध्वज ‘तिरंगा’ अन्य राष्ट्र ध्वजों के तुलना में कई विशेषताएं धारण किए हुए है. दरअसल, ब्रिटिश हुकूमत से भारत की मिली स्वाधीनता के कुल दिन पहले ही 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान भारतीय तिरंगे को देश के आधिकारिक ध्वज के रूप में अपनाया था. भारत में हर साल 22 जुलाई को राष्ट्रीय झंडा दिवस मनाया जाता है.
वर्तमान ध्वज के सबसे करीब का संस्करण 1923 में अस्तित्व में आया. इसे पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था और इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की धारियां थीं और सफेद हिस्से में चरखा रखा गया था. इसे 13 अप्रैल, 1923 को नागपुर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान फहराया गया था. इसे स्वराज ध्वज नाम दिया गया और यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में स्वशासन की भारत की मांग का प्रतीक बन गया.
राष्ट्रीय ध्वज दिवस भारत की सम्प्रभु राष्ट्र बनने की यात्रा का स्मरण कराता है. तिरंगा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, स्वतंत्रता के लिए इसके कठिन संघर्ष और एकजुट एवं समृद्ध राष्ट्र के लिए अपने लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक है. बता दें कि हमारा राष्ट्र ध्वज न केवल राष्ट्र की एकता, अखंडता, गरिमा, गौरव, शक्ति, आदर्श और आकांक्षाओं का प्रतीक है बल्कि समूचे विश्व को त्याग की भावना एवं शाति का संदेश भी देता है.
यह हमारी स्वतंत्रता का भी प्रतीक है क्योंकि स्वाधीनता की लड़ाई में क्रांतिकारियों को एकजुट करने में इसकी बहुत अहम भूमिका रही. तिरंगे ने ही भारतवासियों को एकता और भाईचारे का संदेश देकर उन्हें एक सूत्र में पिरोकर ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने को प्रेरित किया था. तब क्रांतिकारियों के लिए राष्ट्र ध्वज का सम्मान अपने प्राणों से भी बढ़कर होता था, इसीलिए अंग्रेजों की लाठियां व गोलियां खाते हुए भी उन्होंने इसे कभी झुकने नहीं दिया.
तीन रंगों की पट्टियों वाले राष्ट्रीय ध्वज की सबसे ऊपर की केसरिया रंग की पट्टी त्याग, बल और पौरूष की प्रतीक है जबकि बीच वाली सफेद पट्टी शांति और सत्य की प्रतीक है और सबसे नीचे की हरे रंग की पट्टी हरियाली, समृद्धि एवं सम्पन्नता की प्रतीक है. झंडे के बीचों-बीच सफेद पट्टी में स्थित गहरे नीले रंग का अशोक चक्र आत्मनिर्भरता का प्रतीक है. 24 तीलियों वाला अशोक चक्र देश की प्रगति, राष्ट्र के कानून और धर्म के पहिये का प्रतीक है.
डा. सर्वपल्ली राधकृष्णन के शब्दों में कहें तो जो लोग इस ध्वज के नीचे कार्य करेंगे, उन्हें सत्य और सदाचार के सिद्धांतों का पालन करना होगा. राष्ट्र ध्वज के नीचे कार्य करने वालों से उनका तात्पर्य सरकारों और नौकरशाहों से था. राष्ट्र कोकिला सरोजिनी नायडू ने भी राष्ट्र ध्वज की महत्ता का उल्लेख करते हुए संविधान सभा में राष्ट्र ध्वज का प्रस्ताव पेश करते समय 22 जुलाई 1947 को कहा था कि नए भारत के सभी नागरिकों को इस राष्ट्र ध्वज को प्रणाम करना होगा और इसके नीचे कोई छोटा-बड़ा नहीं होगा.