महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम आ रहे हैं, जिनके अनुसार महायुति (भाजपा-शिवसेना (शिंदे)-एनसीपी (अजित पवार) को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) महज 55 सीटों तक ही सीमित रह गया है।
इस चुनाव में महायुति ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है, और अब महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में सरकार बनने की पूरी संभावना है। बधाइयों का सिलसिला शिंदे और फडणवीस के घर तक पहुंचने लगा है।
इस शानदार जीत के पीछे कई महत्वपूर्ण फैक्टर रहे हैं, जिनके कारण महाविकास अघाड़ी को करारी हार का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं, महायुति की सफलता के क्या-क्या कारण रहे:
1. लाडकी बहिन योजना और टोल फ्री नीति
महायुति की सरकार द्वारा लागू की गई लाडकी बहिन योजना ने खासतौर पर महिलाओं के बीच भारी समर्थन जुटाया। इस योजना के तहत महिलाओं के बैंक खातों में प्रतिमाह धनराशि जमा होती रही, जो एमवीए के कोर वोटर्स तक भी पहुंची। इसके अलावा, महायुति ने राज्य की कई टोल प्लाजा को टोल फ्री कर दिया, जिससे पुरुष मतदाताओं में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
इस प्रकार, महाविकास अघाड़ी के कोर वोटर्स, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल थीं, ने महायुति को वोट दिया क्योंकि उन्हें सीधा फायदा नजर आ रहा था।
2. एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना
भाजपा द्वारा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला रणनीतिक दृष्टि से बेहद प्रभावी साबित हुआ। शिंदे मराठा समुदाय से आते हैं, और भाजपा ने उनकी मुख्यमंत्री के तौर पर छवि को मराठा सम्मान से जोड़ते हुए, इसे राजनीतिक लाभ में बदल दिया। इस फैसले से न केवल भाजपा की छवि को मजबूती मिली, बल्कि शिवसेना (उद्धव गुट) को भी कमजोर किया गया। मराठी जनता ने शिंदे को मराठा गौरव का प्रतीक माना और ठाकरे परिवार को बाहरी दिखाया।
3. BJP और शिवसेना का ऐतिहासिक गठबंधन
महाराष्ट्र की राजनीति में भा.ज.पा. और शिवसेना का गठबंधन एक मजबूत हिंदुत्व विचारधारा पर आधारित है। 1989 में जब दोनों दलों ने साथ आकर कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था, तो यह गठबंधन एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरा। हालांकि, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा, लेकिन इस चुनाव में शिवसेना के असली समर्थकों ने शिंदे गुट को प्राथमिकता दी।
4. राज्य में सत्ता संघर्ष से परहेज
महाविकास अघाड़ी के भीतर विभिन्न दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर आंतरिक संघर्ष दिखा। एनसीपी और कांग्रेस के बीच विवादों के चलते यह मैसेज गया कि अगर एमवीए जीतता है तो राज्य में सत्ता के बंटवारे को लेकर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके विपरीत, महायुति ने एकजुटता और स्थिरता का संदेश दिया, जिससे मतदाता महायुति की ओर आकर्षित हुए।
5. स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता
भा.ज.पा. ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेताओं को प्राथमिकता दी और बड़े स्तर पर प्रचार में उनका उपयोग किया। डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने रैलियों और सभाओं का आयोजन किया, जिससे स्थानीय स्तर पर महायुति के समर्थन को मजबूत किया।
6. हिंदू और मुस्लिम दोनों को साधने की रणनीति
महायुति ने चुनाव के दौरान हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए कुछ जुझारू नारों का सहारा लिया, जैसे "बंटेंगे तो कटेंगे, एक हैं तो सेफ हैं", वहीं दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं को भी यह संदेश दिया कि वे किसी खास समुदाय के विरोधी नहीं हैं। शिंदे सरकार ने मदरसों के शिक्षकों की सैलरी बढ़ाकर मुस्लिम समुदाय को भी अपना समर्थन देने की कोशिश की, जिससे दोनों समुदायों से समर्थन मिला।
7. RSS का समर्थन
विपक्ष के तर्कों के बावजूद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भा.ज.पा. को अपने पूरे समर्थन के साथ खड़ा किया। संघ के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर भाजपा के पक्ष में प्रचार किया और लोगों को हिंदू राष्ट्र और अन्य सांस्कृतिक मुद्दों के प्रति जागरूक किया। इस समर्थन ने महायुति की स्थिति को और मजबूत किया, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां संघ का प्रभाव मजबूत है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की जीत के कई कारण रहे हैं, जिनमें रणनीतिक फैसले, प्रभावशाली योजनाएं, और मजबूत नेतृत्व का प्रमुख योगदान था। एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की जोड़ी ने न केवल अपने गठबंधन को मजबूत किया, बल्कि महाराष्ट्र के मतदाताओं को एक स्थिर और विकास की ओर बढ़ते राज्य का विश्वास दिलाया।