कहा जाता है कि मरते हुए इंसान की अंतिम इच्छा का सम्मान करना चाहिए, लेकिन बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपनी जान देने से पहले एक अनोखी ख्वाहिश दुनिया के सामने रखी। वह अपनी अस्थियों के बारे में एक स्पष्ट संदेश छोड़ गए, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी अस्थियों को तब तक विसर्जित न किया जाए जब तक उन्हें इंसाफ न मिल जाए। अगर अदालत इंसाफ नहीं देती, तो उनकी अस्थियों को गटर में बहा दिया जाए। उनकी यह ख्वाहिश अब उनके भाई के हाथों में कलश में बंद अस्थियों के रूप में मौजूद है।
परिवार की प्रतिक्रिया
अतुल की ख्वाहिश को लेकर उनके परिवार का स्पष्ट रुख सामने आया है। उनके छोटे भाई विकास मोदी ने कहा कि जब तक इंसाफ नहीं मिलता, वे अतुल की अस्थियों को सुरक्षित रखेंगे। यह ख्वाहिश अब अदालत पर निर्भर करती है, क्योंकि अंततः इंसाफ का सवाल अदालत के निर्णय पर है। अतुल ने न केवल इंसाफ की उम्मीद जताई थी, बल्कि उन्होंने यह भी कह दिया था कि अगर अदालत उन्हें न्याय नहीं देती, तो उनकी अस्थियों को गटर में बहा दिया जाए।
अदालत का निर्णय और धारा 306
अतुल ने अपनी मौत के लिए जिन लोगों को जिम्मेदार ठहराया है, उनके खिलाफ धारा 306 के तहत मामला बनता है। यह धारा खुदकुशी के लिए उकसाने से संबंधित है, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल की सजा हो सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने ऐसे मामलों में एक नई जटिलता उत्पन्न की है।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश
10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए कहा कि किसी को खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी तब तक नहीं ठहराया जा सकता, जब तक यह साबित न हो जाए कि आरोपी का उस व्यक्ति की मौत से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध था। यह फैसला गुजरात में एक पत्नी की खुदकुशी के मामले में आया था, जिसमें उसके पति और ससुराल वालों पर खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें बरी कर दिया।
IPC धारा 306 और सजा
आईपीसी की धारा 306 के तहत किसी को खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी तब माना जा सकता है, जब यह साबित हो कि आरोपी ने सीधे तौर पर किसी व्यक्ति को खुदकुशी के लिए उकसाया और वह उकसाने वाला उसके मरने के समय भी मौत से जुड़ा हुआ था। अतुल के मामले में, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि अतुल के ससुराल वालों पर इस धारा के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता।
इस प्रकार, अतुल की आखिरी ख्वाहिश का पालन और इंसाफ का मुद्दा अब अदालत और उनके परिवार के हाथ में है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मामले को और जटिल बना दिया है।