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9 मार्च: पुण्यतिथि वीरांगना सरस्वती ताई आप्टे जी... इनके वो कार्य सदा अमर रहेंगे जब गांधी की हत्या के बाद निर्दोष हिंदूवादियों पर कहर ढा रहे थे नेहरू

Saraswati Tai Apte: आज वीरांगना और त्याग की उस देवी को उनकी पुण्यतिथि पर बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Ravi Rohan/Sumant Kashyap
  • Mar 9 2025 6:49AM
कल अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस ( International Women's Day ) था. शायद ही किसी को इस दिन एक नाम याद आया रहा हो. भारत की महिला शक्तियों के रूप में आज के समय भले ही जिसको कुप्रचारित किया जा रहा हो और माय चॉइस से ले कर विदेशो से आयातित नामो को भले ही चमकाने की कोशिश की जा रही हो पर उन तमाम नामो में एक नाम ऐसा भी है. जो लाख दबाने की कोशिश करने के बाद भी आज भी अमर है. 

ये वो नाम है जिसने उस समय खुद से आगे बढ़कर हिंदूवादियों की मदद की थी जब उनके ऊपर कहर गिर रहा था नेहरू की सरकार का. भारत की वर्तमान सेकुलरिज्म परम्परा की रीढ़ थे गांधी और उनकी हत्या के तमाम कारण नाथूराम गोडसे ने अदालत के अपने बयान में बताये थे. यद्यपि उनके बयानों को जानबूझ कर दबा दिया गया था और आज तक एक ऐसा इतिहास पढ़ाया जा रहा है. जिसको अध्ययन करने के बाद तमाम तरह के सवाल अपने आप ही पैदा होने लगते हैं जिसका जवाब खुद उस इतिहास को लिखने वालों के पास भी नहीं है. 

वो समय था नेहरू की सरकार का जब गांधी की हत्या के बाद कहर गिर रहा था. हिंदूवादी नेताओं पर 1925 में हिन्दू संगठन के लिए डा. हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रारम्भ किया. संघ की शाखा में पुरुष वर्ग के लोग ही आते थे. उन स्वयंसेवक परिवारों की महिलाएं एवं लड़कियां डा. हेडगेवार जी से कहती थीं कि हिन्दू संगठन के लिए नारी वर्ग का भी योगदान लिया जाना चाहिए. 

डा. हेडगेवार जी भी यह चाहते तो थे; पर शाखा में लड़के एवं लड़कियां एक साथ खेलें, यह उन्हें व्यावहारिक नहीं लगता था. इसलिए वे चाहते थे कि यदि कोई महिला आगे बढ़कर नारी वर्ग के लिए अलग संगठन चलाये, तभी ठीक होगा. उनकी इच्छा पूरी हुई और 1936 में श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर (मौसी जी) ने 'राष्ट्र सेविका समिति' के नाम से अलग संगठन बनाया.

इस संगठन की कार्यप्रणाली लगभग संघ जैसी ही थी. आगे चलकर श्रीमती लक्ष्मीबाई जी केलकर समिति की प्रमुख संचालिका बनीं. 1938 में पहली बार ताई आप्टे जी की भेंट श्रीमती केलकर से हुई थी. इस भेंट में दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया. मौसी जी से मिलकर ताई आप्टे जी के जीवन का लक्ष्य निश्चित हो गया. दोनों ने मिलकर राष्ट्र सेविका समिति के काम को व्यापकता एवं एक मजबूत आधार प्रदान किया. अगले 4-5 साल में ही महाराष्ट्र के प्रायः प्रत्येक जिले में समिति की शाखा खुल गई. 1945 में समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ. ताई आप्टे जी की सादगी, संगठन क्षमता, कार्यशैली एवं वक्तृत्व कौशल को देखकर मौसी जी ने इस सम्मेलन में उन्हें प्रमुख कार्यवाहिका की जिम्मेदारी दी. 

जब तक शरीर में शक्ति रही, ताई आप्टे जी ने इसे भरपूर निभाया. उन दिनों देश की स्थिति बहुत खतरनाक थी. कांग्रेस के नेता विभाजन के लिए मन बना चुके थे. वे जैसे भी हो सत्ता प्राप्त करना चाहते थे. देश में हर ओर इस्लामिक चरमपंथ की शिकार प्रायः हिंदू युवतियां ही होती थीं. 

देश का पश्चिमी एवं पूर्वी भाग इनसे सर्वाधिक प्रभावित था आगे चलकर यही भाग पश्चिमी एवं पूर्वी पाकिस्तान बना.. आजादी एवं विभाजन की वेला से कुछ समय पूर्व सिन्ध के हैदराबाद नगर से एक सेविका जेठी देवानी का मार्मिक पत्र मौसी जी को मिला. वह इस कठिन परिस्थिति में उनसे सहयोग चाहती थी. 

वह समय बहुत खतरनाक था. महिलाओं के लिए प्रवास करना बहुत ही कठिन था; पर सेविका की पुकार पर मौसी जी चुप न रह सकीं. वे सारा कार्य ताई आप्टे जी को सौंपकर चल दीं. वहां उन्होंने सेविकाओं को अन्तिम समय तक डटे रहने और किसी भी कीमत पर अपने सतीत्व की रक्षा का सन्देश दिया.

1948 में गांधी की हत्या के झूठे आरोप में संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. हजारों कार्यकर्ता जेलों में ठूंस दिये गए. ऐसे में उन परिवारों में महिलाओं को धैर्य बंधाने का काम राष्ट्र सेविका समिति ने किया. यद्दपि आज के परिवेश में कश्मीरी आतंकियों के परिवार वालों तक को हीरो बना कर पेश करने वालों जैसी मानसिकता रखने वालों ने एक तरफ से अभियान चलाया था ऐसे दमनचक्र का कि हिंदुवादियो ने वो कहर झेला था जो शायद अंग्रेजो और मुगलों के समय में न हुआ रहा हो . 

ये समय था कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री काल का जो आज भी कांग्रेस के मूल आधारों में से एक हैं . वर्ष 1962 में चीन के आक्रमण के समय समिति ने घर-घर जाकर पैसा एकत्र किया और उसे रक्षा मंत्री श्री चह्नाण को दिया ..यद्दपि उस समय भी अहिंसा के कथित नियमों को खुद के ही देश में लागू करने वाले कुछ नेता उदासीन थे सैनिको के बलिदान के बाद भी और बाद में दुनिया ने स्वीकार किया कि शक्ति बिना कुछ भी सम्भव नहीं.

सिवाय उन नेताओं के 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण के समय अनेक रेल स्टेशनों पर फौजी जवानों के लिए चाय एवं भोजन की व्यवस्था की. सरस्वती ताई आप्टे जी इन सब कार्यों की सूत्रधार थीं. उन्होंने संगठन की लाखों सेविकाओं को यह सिखाया कि गृहस्थी के साथ भी देशसेवा कैसे की जा सकती है. 

1909 में जन्मी ताई आप्टे जी ने सक्रिय जीवन बिताते हुए आज ही अर्थात 9 मार्च, 1994 को प्रातः 4.30 बजे अन्तिम सांस ली. आज वीरांगना और त्याग की उस देवी को उनकी पुण्यतिथि पर बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है .

 

 

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