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सरदार पटेल की लौह इच्छाशक्ति से लेकर आज के संघर्ष तक... किसान, मजदूर, एकता और संविधान की रक्षा में कांग्रेस का संकल्प

संघर्षों की विरासत से प्रेरणा लेकर आजादी के नायकों के सिद्धांतों पर आज की चुनौतियों से लड़ने का कांग्रेस का संकल्प.

Ravi Rohan
  • Apr 8 2025 5:52PM

भारत की आजादी के आंदोलन की कोख से जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरदार वल्लभभाई पटेल के 150 वें जन्मजयंती वर्ष के उपलक्ष्य में गांधी और पटेल की भूमि गुजरात के कर्णावती (अहमदाबाद) में एक बार फिर भारत के भविष्य को दिशा देने के लिए एकत्रित हुई है। साबरमती का तट फिर इस वैचारिक संग्राम का साक्षी बना है। इस संग्राम के प्रेरणा पुरुष हैं सरदार पटेल और इसकी वैचारिक बुनियाद में महात्मा गांधी पंडित जवाहर लाल नेहरु के सिद्धांत हैं।

'वैचारिक संग्राम' द्वारा देश को नई दिशा कल भी और आज भी!

1. साल 1918 में संघर्ष की धरती, गुजरात के खेड़ा में अंग्रेज सरकार द्वारा किसानों से कर वसूली के विरोध में गांधी जी की प्रेरणा से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आजादी के रण में कदम रखा। फिर वल्लभ भाई पटेल ने साल 1928 में अंग्रेज सरकार द्वारा किसानों से लगान वसूली के खिलाफ बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उनके ऊर्जावान और प्रभावशाली नेतृत्व के चलते, वो बारदोली आंदोलन से 'सरदार कहलाए।

आज की भाजपा सरकार भी अंग्रेजों की तरह किसानों की भूमि के उचित मुआवजा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाती है. कृषि के तीन क्रूर काले कानून बनाती है. किसानों की राहों में कील और कॉटे बिछाती है. किसानों को आय दोगुनी तथा एमएसपी गारंटी का वादा कर साफ मुकर जाती है और न्याय मांगने पर लखीमपुर खीरी में भाजपा नेताओं की जीपों से किसानों को कुचलवाती है। इसीलिए, एक बार फिर सरदार पटेल की राह पर कांग्रेस किसान के अधिकारों के लिए निर्णायक संघर्ष को तैयार है।

2. अंग्रेजों ने रियासतों के साथ मनमानी संधि से सत्ता हथियाई, देश की संपत्ति तथा प्राकृतिक संपदाओं का बेतहाशा दोहन किया और देश में तानाशाही शासन चलाया।

सरदार पटेल के सशक्त नेतृत्व एवं पंडित नेहरु की दूरदर्शिता ने 560 से अधिक खंड-खंड रियासतों का एकीकरण कर लोकतांत्रिक गणराज्य की नींव रखी। आज की भाजपा सरकार फिर देश को क्षेत्रवाद, उत्तर बनाम दक्षिण व पूर्व बनाम पश्चिम विवाद तथा भाषाई और सांस्कृतिक बँटवारे के नाम पर खंडित करने की साजिश कर रही है। इसीलिए एक बार फिर, सरदार पटेल के पथ पर चलकर कांग्रेस नफरत छोड़ो भारत जोड़ों की डगर पर बढ़ते जाने को तैयार है।

3. अंग्रेजों ने भारत के मजदूरों और कामगारों के अधिकारों का दमन करने की षडयंत्रकारी नीति अपनाई थी। कांग्रेस के कराची अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के खिलाफ मजदूरों और कामगारों के अधिकारों की प्रबल आवाज उठाई थी। यही नहीं, धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव न करने के मौलिक अधिकारों की संरचना को इसी अधिवेशन में आकार दिया गया।

आज की भाजपा सरकार ने मेहनतकश मज़दूरों और कामगारों के अधिकारों पर लगातार प्रहार किया है, चाहे वो महात्मा गांधी नरेगा को कमजोर करना हो. या फिर श्रम कानूनों व मजदूर अधिकारों पर हमला हो। यहाँ तक कि मौलिक अधिकारों को बुलडोजर से रौंदने की कोशिश की जा रही है। भेदभाव इसीलिए एक बार फिर सरदार पटेल के मार्ग का अनुसरण कर,

कांग्रेस संविधान सम्मत मौलिक अधिकारों तथा देश के मेहनतकश मजदूरों और कामगार के अधिकारों की लडाई लड़ने को तैयार है।

4. अंग्रेज सरकार ने भारत के खजाने को लूटकर देश में गरीबी व आर्थिक असमानता को चरम पर पहुँचा दिया था। सरदार पटेल का विचार था कि भरपूर उत्पादन, संसाधनों का समान वितरण तथा उत्पादकों के साथ न्यायसंगत व्यवहार ही दूरगामी आर्थिक नीति का हिस्सा है। वहीं आज की भाजपा सरकार ने जहाँ तीन दशकों से गुजरात को लूटा, वहीं देश के खजाने का मुँह मुट्ठीभर दोस्तों की तरफ मोडकर "आर्थिक असमानता को गुलामी के स्तर तक पहुँचा दिया है। इसीलिए, एक बार फिर, देश को आर्थिक गुलामी की तरफ धकेलने वाले चंद दौलतमंदों के सिक्कों की खनक के खिलाफ सरदार पटेल की तर्ज पर संसाधनों के न्यायपूर्ण वित्तरण के लिए काग्रेस नए संघर्ष को तैयार है।

5. आजादी के संग्राम में जिन ताकतों ने सत्य-अहिंसा के सिद्धांतों के विरुद्ध दुष्प्रचार किया तथा आजादी के आंदोलन का विरोध किया, उसी हिंसावादी विचारधारा ने महात्मा गांधी की हत्या की थी। गोडसे उसी विकृत विचारधारा से ग्रसित था। दूसरी ओर, देश के उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री, सरदार पटेल हिंसा व सांप्रदायिक विचारधारा को राष्ट्रहित का दुश्मन मानते थे। वो सरदार पटेल ही थे. जिन्होंने गांधी की हत्या के बाद. 04 फरवरी, 1948 को संघ पर प्रतिबंध लगाया था।

उसी समय, ऐसी ही हिंसक विचारधारा ने सरदार पटेल और पडित नेहरू तक पर हमला बोलते हुए. दोनों को सार्वजनिक रूप से फाँसी पर चढ़ाने की बात कही थी, जिसका जिक्र खुद सरदार पटेल ने 08 फरवरी, 1948 को अपने पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से किया था।

आज फिर, हिंसा और सांप्रदायिकता की यह विचारधारा धर्म का बंटवारा कर देश को नफरत की आंधी में झोंकने की साजिश कर रही है। इसीलिए, एक बार फिर, सांप्रदायिकता के उन्माद को रोकने वाले लौहपुरुष सरदार पटेल के मजबूत इरादों पर कांग्रेस संघर्ष को तैयार है।

6. टकराव और विभाजन की इसी विचारधारा ने झूठ, छल और प्रपंच का जाल फैलाया तथा षडयंत्र के तहत सरदार पटेल और पंडित नेहरु के परस्पर विरोधी होने का भ्रम फैलाया। फैलाया गया यह भ्रम असल में हमला था, आजादी की लड़ाई पर भी तथा गांधी-नेहरु-पटेल की अगुवाई पर भी।

झूठ का यह मकड़जाल टिक नहीं पाया क्योंकि सरदार पटेल ने स्वयं 03 अगस्त, 1947 को पंडित नेहरु को पत्र लिखा कि, 'एक दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता का हम दोनों के बीच कोई स्थान नहीं है... हमारी जोड़ी अटूट व अखंड है तथा यही हमारी शक्ति है।

आज प्रेम, मिलन और जुड़ाव की इस विचारधारा को सत्ताधारी ताकतें विभाजन और वैमनस्य में बदलने को आतुर हैं। इसीलिए, एक बार फिर, सरदार पटेल के इन्हीं जीवन सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए कांग्रेस वैमनस्य और विभाजन को हराने की लड़ाई के लिए तैयार है।

7. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एवं राहुल गांधी सहित कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता भारत के प्रजातंत्र और संविधान की आजादी की इस लडाई को धारदार बनाने के लिए न्याय पथ पर चलने के लिए संकल्पबद्ध है। यही सरदार पटेल के आदर्श और सिद्धांतों का मार्ग भी है. तथा इस प्रेरणादायी सोच के पथ पर चलने को कांग्रेस का हर सिपाही कटिबद्ध है। (PR)

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