हमारे देश में ऐसे अनेकों महान महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. हमारे देश में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने इस देश में रह कर भी भारत के इतिहास से इन वीरों को मिटाने की कई कोशिशें की. इन लोगों ने उन सभी क्रांतिकारियों और महापुरुषों के नाम को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन लाखों महान क्रांतिकारियों में से एक थे क्रांतिकारी तारकनाथ दास जी. वहीं, आज क्रांतिकारी तारकनाथ दास जी के पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
क्रांतिकारी तारकनाथ दास जी का जन्म पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कंचरापुरा के करीब मजूपारा में हुआ. उनका संबंध एक मध्यम-वर्गीय परिवार से रहा, जहां उनके पिता काली मोहन जी कलकत्ता के केन्द्रीय टेलीग्राफ ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करते थे. अपने मेधावी छात्र के पढ़ने-लिखने की विशिष्ट योग्यता को देखकर उनके प्रधानाध्यापक ने उन्हें देशभक्ति के विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया.
बता दें कि सोलह साल के इस छात्र द्वारा लिखे निबंध की गुणवत्ता से प्रभावित हो कर उपस्थित जजों में से एक बैरिस्टर पी. मिटर जो अनुशीलन समिति के संस्थापक थे, ने सहयोगी सतीश चंद्र बसु से इन्हें भर्ती करने के लिए कहा. 1901 में प्रवेश परीक्षा में उच्च नम्बर के साथ पास होने के बाद तारक कलकत्ता के लिए रवाना हुए और विश्वविद्यालय अध्ययन के लिए प्रसिद्ध जेनरल असेम्बली के संस्थान (वर्तमान में स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में भर्ती हुए. अपनी गुप्त देशभक्ति गतिविधि में उन्हें बड़ी बहन गिरिजा से पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त हुआ था.
क्रांतिकारी तारकनाथ दास जी एक ब्रिटिश-विरोधी भारतीय बंगाली क्रांतिकारी और अंतर्राष्ट्रवादी विद्वान थे. वे उत्तरी अमेरिका के पश्चमी तट में एक अग्रणी आप्रवासी थे और टॉल्स्टॉय के साथ अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा किया करते थे, जबकि वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में एशियाई भारतीय आप्रवासियों को सुनियोजित कर रहे थे. वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे और साथ ही कई अन्य विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत थे.
बता दें कि बंगाली उत्साह को बढ़ावा देने के क्रम में शिवाजी के अलावा एक महानतम बंगाली नायक राजा सीताराम राय जी के उपलब्धियों की स्मृति में एक त्योहार की शुरूआत की गई. दरअसल, 1906 के प्रारंभिक महीनों में, बंगाल की पूर्व राजधानी जेसोर के मोहम्मदपुर में सीताराम जी उत्सव की अध्यक्षता करने के लिए जब बाघा जतिन या जतिंद्र नाथ मुखर्जी जी को आमंत्रित किया गया तो उनके साथ तारक भी इसमें शामिल हुए.
इस अवसर पर, एक गुप्त बैठक का आयोजन किया गया जिसमें तारक, श्रीश चंद्र सेन जी, सत्येन्द्र सेन जी और अधर चन्द्र लस्कर सहित जतिन भी उपस्थित थे. सभी को एक के बाद एक विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाना था. 1952 तक उस गुप्त बैठक के उद्देश्य के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी, जब बातचीत के दौरान तारक ने इसके बारे में बताया. विशिष्ट उच्च शिक्षा के साथ, उन्हें सैन्य प्रशिक्षण और विस्फोटकों का ज्ञान प्राप्त करना था. उन्होंने विशेष रूप से भारत की स्वतंत्रता के फैसले के पक्ष में स्वतन्त्र पश्चिमी देशों के लोगों के बीच सहानुभूति का वातावरण बनाने का आग्रह किया.
क्रांतिकारी तारकनाथ दास जी को ब्रह्मचारी के नाम से, वे एक साधु के भेष में व्याख्यान दौरे के लिए मद्रास गए. बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी और बिपिन चंद्र पाल जी के बाद वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने भाषणों द्वारा देशभक्ति जुनून को पैदा किया था. युवा क्रांतिकारियों के बीच वे विशेष रूप से नीलकंठ ब्रह्मचारी, सुब्रह्मनिया शिवा और चिदम्बरम पिल्लै से प्रेरित हुए. 16 जुलाई 1907 को जापान के माध्यम से तारक सिएटल पहुंचे. खेत-मजदूर के रूप में अपनी आजीविका चलाने के बाद, वह छात्र के रूप में प्रवेश करने से पहले वे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के प्रयोगशाला में उनकी नियुक्त हुई.
तारकनाथ दास जी अमेरिकी सिविल प्रशासन के लिए अनुवादक और दुभाषिए के रूप में योग्यता हासिल की और वे जनवरी 1908 में आव्रजन, वैंकूवर विभाग में प्रवेश हुए. वहां उनकी मौजूदगी में कलकत्ता पुलिस सूचना सेवा के विलियम सी. होप्किंसन (1878-1914) का आगमन हुआ, उनकी नियुक्ति आव्रजन इंस्पेक्टर और हिन्दी, पंजाबी और गुरुमुखी के दुभाषिया के रूप में हुई थी. सात वर्षों के लंबे समय के दौरान, गुप्तघात तक (एक सिख द्वारा) होप्किंसन को तारकनाथ दास जी जैसे उग्र सुधारवादी छात्रों की उपस्थिति के बारे में भारत सरकार को उनके बारे में विस्तृत और नियमित रिपोर्ट भेजने की आवश्यकता थी और बेला सिंह के नेतृत्व में मुखबिर-ब्रिटिश सिख समूहों की निगरानी करनी थी.
जानकारी के लिए बता दें कि 22 दिसंबार 1958 को संयुक्त राज्य अमेरिका में लौटने पर तारकनाथ दास जी 74 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी. आज राजा तारकनाथ दास जी के पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.