सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर सुखबीर सिंह मलिक ने आज अपने 1971 के भारत-पाक युद्ध के वीर साथी, बलिदानी सेकेंड लेफ्टिनेंट अशोक प्रहलादराव मुतगीकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। यह श्रद्धांजलि जम्मू जिले के मरह तहसील स्थित गजंसू गांव में बने उनके स्मारक पर दी गई। इस दौरान वे हरियाणा से अपनी पत्नी श्रीमती मधु मलिक और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पहुंचे।
युद्ध की यादें: भावुक हुए ब्रिगेडियर मलिक
स्मारक पर पुष्पचक्र अर्पित करने और दो मिनट का मौन रखने के बाद ब्रिगेडियर मलिक ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि यह क्षण उनके लिए बेहद भावुक और यादगार है। उन्होंने बताया कि 1971 के युद्ध के दौरान वे और सेकेंड लेफ्टिनेंट अशोक, 7 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में साथ थे। उस समय लेफ्टिनेंट अशोक महज 22 वर्ष के थे और उन्हें कमीशन मिले केवल तीन महीने हुए थे, जबकि ब्रिगेडियर मलिक तब कैप्टन के पद पर थे और तीन साल की सेवा पूरी कर चुके थे।
युद्ध का वो ऐतिहासिक दिन
ब्रिगेडियर मलिक ने बताया कि 3 दिसंबर 1971 को युद्ध की शुरुआत हुई और 6 दिसंबर को उनकी यूनिट को पाकिस्तान में आगे बढ़ने का आदेश मिला। उनकी यूनिट इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (बीएमपी) के जरिए आगे बढ़ रही थी। जब वे पाकिस्तान के चन्नी बाजुआं इलाके में पहुंचे, तो दुश्मन की वायुसेना और जमीनी बलों ने भीषण हमला किया। इस दौरान सेकेंड लेफ्टिनेंट अशोक को गोली लगी, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर कोई डर नहीं दिखाया। वे मुस्कुराते हुए अपनी मशीनगन से दुश्मन के विमानों पर लगातार फायरिंग करते रहे। उनका यह साहस और निडरता काबिले-तारीफ थी, लेकिन अंततः उन्होंने मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य की वेदी पर प्राण न्योछावर कर दिए।
परिवार के साथ युद्ध स्थल की यात्रा
इसके बाद ब्रिगेडियर मलिक ने उस स्थान पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की, जहां लेफ्टिनेंट अशोक का अंतिम संस्कार किया गया था। उन्होंने अपने परिवार को ‘तल्ली वाली माता’ मंदिर भी ले जाया, जो भारत-पाक सीमा से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। यह वही मार्ग है जिससे होकर लेफ्टिनेंट अशोक 6 दिसंबर 1971 को रणभूमि में गए थे।
ब्रिगेडियर मलिक ने अपने इस दौरे को एक तीर्थयात्रा की संज्ञा दी और कहा कि यह उनके लिए सम्मान और गर्व का अवसर है। इस यात्रा में उनके पुत्र कर्नल संदीप मलिक और बहू नमिता मलिक भी साथ थे।