इनपुट- रवि शर्मा, लखनऊ
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर आज भी बिजली कर्मियों ने प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजना मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन जारी रखा। राजधानी लखनऊ में मध्यांचल मुख्यालय पर और शक्ति भवन पर बड़ी विरोधी सभा हुई । संघर्ष समिति ने कहा है कि निजीकरण के लिए आगे बढ़ने के पहले ग्रेटर नोएडा और आगरा के निजीकरण का श्वेत पत्र जारी किया जाए।
संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण पूरे देश में एक विफल प्रयोग है। यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 1993 में ग्रेटर नोएडा का निजीकरण किया गया था और 2010 में आगरा शहर का निजीकरण किया गयाथा। इन दोनों शहरों के निजीकरण से पावर कारपोरेशन को कितना घाटा हुआ और आम जनता को कितनी तकलीफ हुई इसका खुलासा श्वेत पत्र द्वारा पावर कारपोरेशन को आम जनता के सामने जारी करना चाहिए।
संघर्ष समिति ने कहा की आगरा में वर्ष 2023 -24 में पावर कॉरपोरेशन ने 5 रुपए 55 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर आगरा में टोरेंट कंपनी को 04 रुपए 36 पैसे में बेचा। इससे वर्ष 2023-24 में पॉवर कारपोरेशन को 275 करोड रुपए का नुकसान हुआ। विगत 14 वर्षों में पॉवर कारपोरेशन को आगरा के निजीकरण से 2434 करोड रुपए का नुकसान हो चुका है। संघर्ष समिति ने कहा कि यह नुकसान महंगी दर पर बिजली खरीद कर निजी कंपनी टोरेंट को सस्ती दर पर बचने के कारण हो रहा है। असली घाटा कई हजार करोड रुपए का है । आगरा में बिजली का औसत टैरिफ 07 रुपए 98 पैसे प्रति यूनिट है। टोरेंट कंपनी रुपए 4. 36 प्रति यूनिट पर पावर कारपोरेशन से बिजली खरीद कर रुपए 07.98 प्रति यूनिट में बेंच रहा है । इस प्रकार से उसको लगभग 800 करोड रुपए का प्रति वर्ष का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण ना होता तो यह मुनाफा पावर कारपोरेशन को मिलता। इस प्रकार पावर कारपोरेशन को आगरा के निजीकरण से प्रतिवर्ष 1000 करोड रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है।
1993 में जब ग्रेटर नोएडा का विद्युत वितरण निजी कंपनी को दिया गया था तो यह एक बड़ी शर्त थी कि निजी कंपनी 54 महीने में अपना बिजली उत्पादन घर लगाएगी। नोएडा पावर कंपनी ने आज तक एक मेगा वाट का भी बिजली घर नहीं लगाया। कई साल तक पावर कॉरपोरेशन महंगी दर पर बिजली खरीद कर नोएडा पावर कंपनी को सस्ती दर पर बेचती रही । ग्रेटर नोएडा पूरी तरह से औद्योगिक क्षेत्र है। इस प्रकार इस निजीकरण से पॉवर कॉरपोरेशन घाटा उठाता रहा और निजी कम्पनी मुनाफा कमाती रही।
संघर्ष समिति ने कहा की बिजली कर्मचारी और आम जनता यह जानना चाहते हैं कि निजीकरण का विफल प्रयोग उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रांत में 42 जनपदों पर एक साथ क्यों थोपा जा रहा है ? निजीकरण के पहले ग्रेटर नोएडा और आगरा की सच्चाई आम जनता के सामने आनी ही चाहिए। आज वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, जवाहरपुर, पनकी, हरदुआगंज, ओबरा, पिपरी और अनपरा में विरोध प्रदर्शन किया गया।