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Kishor Kunal: कैसी रही IPS से आचार्य बनाने की यात्रा? महान समाज सेवी और हनुमान जी के अनन्य भक्त किशोर कुणाल के निधन से धर्म जगत में शोक

नहीं रहे महावीर मंदिर न्यास के सचिव व श्रीराम मन्दिर ट्रस्ट के संस्थापक सदस्य और पूर्व IPS अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल। दिल का दौरा पड़ने से निधन, समाज सेवा में था अभूतपूर्व योगदान।

Ravi Rohan
  • Dec 29 2024 1:40PM

2024 के अंतिम दिनों में फिर एक दुखद खबर आई है। बिहार की राजधानी पटना के महावीर मंदिर न्यास के सचिव और पूर्व आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल का आज यानी रविवार सुबह निधन हो गया। जानकारी के अनुसार, उन्हें कार्डियक अरेस्ट के बाद महावीर वात्सल्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनके निधन से पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई है। देशभर के राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक नेता आचार्य किशोर कुणाल के प्रति शोक व्यक्त कर रहे हैं।

किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और संस्कृत की पढ़ाई की। वे समाजिक और धार्मिक कार्यों के प्रति अपनी निष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। आचार्य किशोर कुणाल का संबंध जेडीयू नेता अशोक चौधरी से था, और वे समस्तीपुर सांसद शांभवी चौधरी के ससुर भी थे। इसके अलावा, वे अयोध्या मंदिर ट्रस्ट के संस्थापकों में से एक थे। 

IPS की सेवा से दिया इस्तीफा 

किशोर कुणाल ने 1972 में गुजरात कैडर में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल होकर अपने करियर की शुरुआत की। उनकी पहली पोस्टिंग आनंद जिले में पुलिस अधीक्षक के रूप में हुई। बाद में, वे 1978 तक अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त रहे। 1983 में, मास्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें पटना में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। 2001 में, उन्होंने अपनी स्वेच्छा से आईपीएस की सेवा से इस्तीफा दे दिया। 

समाज सेवा और धार्मिक योगदान

आईपीएस से रिटायर होने के बाद आचार्य किशोर कुणाल ने सामाजिक कार्यों में अपनी भूमिका को और बढ़ाया। वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष और पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर न्यास के सचिव रहे। उनके नेतृत्व में महावीर मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जिसकी शुरुआत 30 अक्टूबर 1983 को हुई थी और इसका उद्घाटन 4 मार्च 1985 को हुआ। उन्होंने महावीर आरोग्य संस्थान के सचिव के रूप में जरूरतमंदों को वित्तीय सहायता प्रदान की और महावीर न्यास के सचिव रहते हुए गरीबों के इलाज के लिए चार बड़े अस्पतालों की स्थापना की। उनकी समाज सेवा और धार्मिक योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

मुजफ्फरपुर से इंटर, पटना विवि. से स्नातक

किशोर कुणाल ने मुजफ्फरपुर के एक छोटे से गांव से अपनी यात्रा शुरू की और ना केवल आईपीएस बने, बल्कि धर्म और समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 10 अगस्त 1950 को मुजफ्फरपुर के बरुराज गांव के एक भूमिहार परिवार में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र शाही एक किसान और समाजसेवी थे, जबकि उनकी मां रूपमती देवी गृहिणी थीं। किशोर की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई, और बाद में उन्होंने बरुराज हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इंटर की पढ़ाई उन्होंने एलएस कॉजेल स्कूल, मुजफ्फरपुर से की और इसके बाद पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक किया।

श्रीराम जन्मभूमि विवाद का समाधान

किशोर कुणाल ने 1972 में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में अपनी कैरियर की शुरुआत की और गुजरात कैडर में पहले एसपी के तौर पर कार्य किया। इसके बाद, वे अहमदाबाद में पुलिस उपायुक्त बने और 1983 में पटना के एसएसपी के रूप में कार्यरत रहे। 2001 में, उन्होंने अपने IPS करियर से इस्तीफा दे दिया और धर्म एवं समाज सेवा में पूरी तरह से समर्पित हो गए।

किशोर कुणाल ने बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कई सुधार कार्य किए। उन्होंने प्रमुख मंदिरों को धार्मिक न्यास से जोड़ा और दलित समुदाय के लिए मंदिरों में पुजारी नियुक्त किए। इसके अलावा, उन्होंने अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि विवाद के समाधान में भी अहम भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में कई प्रमुख धर्मार्थ अस्पतालों और संस्थानों की स्थापना की गई, जैसे महावीर कैंसर संस्थान और महावीर नेत्रालय।

"दलित देवो भव"

उनकी समाजसेवा में दलित समुदाय का उत्थान भी शामिल है, जहां उन्होंने दलित पुजारियों की नियुक्ति की और मंदिरों में उनके योगदान को बढ़ावा दिया। किशोर कुणाल के प्रयासों से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक प्रार्थना और भोजन की परंपराएं शुरू हुईं, जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिला। 

किशोर कुणाल को उनकी सामाजिक और धार्मिक सेवाओं के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें 2009 में 'बिहार रत्न' और 2008 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा महावीर पुरस्कार शामिल हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन भी किया, जिनमें "दलित देवो भव" और "अयोध्या रिविजिटेड" प्रमुख हैं। उनके प्रवचन भारत और अमेरिका में आयोजित किए गए, जहां उन्होंने भारतीय इतिहास और संस्कृत साहित्य पर अपनी गहरी समझ साझा की।

इसके अलावा, उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी कई महत्वपूर्ण संस्कृत सम्मेलनों में भाग लिया और भारतीय प्राच्य विद्या को बढ़ावा दिया। उनका जीवन यह दर्शाता है कि सेवा और समर्पण के साथ किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है।

बॉबी हत्याकांड: एक मर्डर मिस्ट्री और सियासी भूचाल

1980 के दशक में किशोर कुणाल पटना के एसपी बने थे, और इसी दौरान बिहार में एक ऐसी हत्या का मामला सामने आया, जिसने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी। यह था 'बॉबी हत्याकांड', जिसमें स्पष्ट सबूत और सुराग थे, फिर भी दोषी को पकड़ना असंभव सा दिख रहा था। इस मामले का जिक्र किशोर कुणाल ने अपनी किताब "दमन तक्षकों" में किया है। यह हत्याकांड बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के लिए एक बड़ा संकट साबित हुआ, और उनके सिंहासन को हिलाने में अहम भूमिका निभाई। 

मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा पर आरोप था कि इस मामले में कुछ कद्दावर नेताओं का हाथ था। इसलिए उन्होंने अपनी सरकार को बचाने के लिए इस केस को सीबीआई को सौंपने का फैसला लिया। लेकिन आज तक सीबीआई भी बॉबी के हत्यारे का पता नहीं लगा पाई। किशोर कुणाल ने अपनी किताब में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा, "समरथ को नहीं दोष गुसाईं" - जो दर्शाता है कि इस केस में जिस व्यक्ति की ताकत थी, वही बच निकला।

बॉबी की लाश कब्र से निकाली गई

यह मर्डर केस एक ऐसी महिला की हत्या से जुड़ा था, जिसमें अवैध संबंध, अपराध और राजनीति की घुंघरालियाँ थीं। किशोर कुणाल जब पटना के एसपी बने, तो यह मामला कुछ ही दिन में मीडिया की प्रमुख खबर बन गया। किशोर कुणाल ने इस खबर को आधार बना कर एक यूडी केस दर्ज किया और फौरन ही बॉबी की लाश को कब्र से बाहर निकाला। पोस्टमार्टम भी कराया गया, जिससे यह पुष्टि हुई कि यह हत्या थी, न कि दुर्घटना या आत्महत्या। यह घटना इस बात का प्रमाण बनी कि अगर जांच की दिशा सही हो, तो परिणाम जल्दी निकल सकते हैं। 

किशोर कुणाल की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि श्वेतानिशा उर्फ बॉबी की हत्या में कई बड़े नेता शामिल थे। इसके बाद, राज्य की राजनीति में खलबली मच गई। बताया जाता है कि जब इस मामले का खुलासा हुआ, तो मुख्यमंत्री पर सीबीआई जांच का दबाव बढ़ा। कुछ विधायकों और मंत्रियों ने खुलकर सीबीआई जांच की मांग की, और राज्य की सरकार गिराने की धमकी भी दी। अंततः, इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया, लेकिन सीबीआई ने किसी को दोषी ठहराने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया। 

आचार्य जी की अंतिम सार्वजनिक उपस्थित

22 दिसंबर को पटना स्थित महावीर आरोग्य संस्थान में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें डायलिसिस सेंटर का विस्तार किया गया। इस अवसर पर आचार्य किशोर कुणाल ने संस्थान में तीन नई डायलिसिस मशीनों का उद्घाटन किया। यह उनका अंतिम सार्वजनिक उपस्थित था। इस कार्यक्रम में आचार्य किशोर कुणाल ने महावीर आरोग्य संस्थान के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि यह संस्थान महावीर मन्दिर न्यास का पहला अस्पताल है और साथ ही उत्तर भारत में किसी मन्दिर द्वारा खोला गया पहला मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल भी है।

आचार्य किशोर कुणाल की अंतिम इच्छा

 कार्यक्रम के दौरान कई प्रतिष्ठित व्यक्ति मौजूद थे, जो किडनी रोगियों के लिए डायलिसिस की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। जब सबकी बात समाप्त हुई, तो महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि किडनी रोगियों के लिए डायलिसिस एक बड़ी आवश्यकता है और इसे आर्थिक बोझ से मुक्त रखने के लिए महावीर आरोग्य संस्थान में एक नई नेफ्रोलॉजी और डायलिसिस की सुपर स्पेशियलिटी यूनिट स्थापित की जाएगी। यह विशेष यूनिट महावीर आरोग्य संस्थान के परिसर में ही बनायी जाएगी।

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