झारखंड के कोडरमा जिले के छातारा गांव में अब हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं। कभी एकजुटता और भाईचारे का प्रतीक रहा यह गांव आज धर्मांतरण की आग में झुलसता नजर आ रहा है। करीब 40 परिवारों वाले इस गांव में पहले सभी हिंदू धर्म से जुड़े एक ही जाति के लोग रहते थे। लेकिन अब, 9 परिवारों ने ईसाईयत अपना लिया है, जिससे गांव की सदियों पुरानी सामाजिक एकता खतरे में पड़ गई है। गांव के अन्य लोगों ने इन परिवारों से नाता तोड़ते हुए सामाजिक बहिष्कार का एलान कर दिया है।
गांव में हालात तब और बिगड़ गए जब अचानक 80% आबादी ने ईसाईयत अपनाना शुरू कर दिया। हालांकि गांव के कुछ जागरूक लोगों ने सामाजिक स्तर पर धर्मांतरण के खिलाफ मोर्चा खोला, जिसके चलते कई परिवारों ने फिर से हिंदू धर्म की ओर वापसी कर ली। बावजूद इसके, राजेश भुइंया के नेतृत्व में 9 परिवार आज भी ईसाईयत को अपनाए हुए हैं और गांव के बीच एक गहरी खाई बन गई है।
छतारा गांव बिहार सीमा के बेहद करीब है, जो चंदवारा ब्लॉक के तहत आता है। गांववाले साफ कह रहे हैं कि प्रशासन और सरकार की अनदेखी की वजह से गांव में बाहरी धर्म प्रचारकों की घुसपैठ बढ़ गई है। गांववाले आरोप लगा रहे हैं कि प्रचारकों ने लोगों के मन में अंधविश्वास और लालच का जहर घोलकर उन्हें बहला-फुसलाकर धर्म बदलवाया। जिन लोगों ने धर्म बदला, उनका दावा है कि उनके परिवार में लगातार बीमारियां थीं, लेकिन मजहब बदलते ही सब कुछ ठीक हो गया। सवाल उठता है- क्या ये महज संयोग है या प्रचारकों की स्क्रिप्टेड कहानी?
धर्मांतरण और सामाजिक बहिष्कार की खबर जंगल में आग की तरह फैली, जिसके बाद उपायुक्त मेघा भारद्वाज ने चंदवारा प्रखंड विकास पदाधिकारी को सख्त जांच के निर्देश दिए हैं। प्रशासन जानना चाहता है कि धर्मांतरण स्वेच्छा से हुआ या इसके पीछे कोई दबाव या षड्यंत्र है। साथ ही सामाजिक बहिष्कार की भी तह तक जाने की बात कही गई है।
वहीं दूसरी तरफ, कश्मीर के पहलगाम में धार्मिक पहचान पूछकर निर्दोष पर्यटकों की हत्या का मामला देशभर को झकझोर चुका है। इसी पृष्ठभूमि में छातारा जैसे गांवों में धर्म के नाम पर फूट पड़ना एक खतरनाक संकेत है। जहां कभी एक धर्म, एक सोच के साथ गांव के लोग रहते थे, वहां आज धर्मांतरण ने भाईचारे को टुकड़ों में बांट दिया है।