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31 अगस्त: आज ही अंग्रेजों के बजाय उनके भारतीय गद्दार मुखबिर को जेल में घुस कर मारा था क्रांतिकारियों ने...एक ऐसा इतिहास जिसे निगल गए नकली कलमकार

धीनता प्राप्ति के प्रयत्न में लगे क्रांतिकारियों को जहां एक ओर अंग्रेजों से लड़ना पड़ता था

Sumant Kashyap
  • Aug 31 2024 7:29AM

स्वाधीनता प्राप्ति के प्रयत्न में लगे क्रांतिकारियों को जहां एक ओर अंग्रेजों ने लड़ना पड़ता था, वहां कभी-कभी उन्हें देशद्रोही भारतीय, यहां तक कि अपने गद्दार साथियों को भी दंड देना पड़ता था. बंगाल के प्रसिद्ध अलीपुर बम कांड में कन्हाईलाल दत्त जी, सत्येन्द्रनाथ बोस जी गिरफ्तार हुए थे.इसी मामले में नरेंद्र गोस्वामी नाम का एक मुखबिर पहले से ही इन सभी क्रांतिकारियों के साथ लगा था. जिसकी वफादारी पहले से ही संदिग्ध थी.

इन वीरों की गिरफ्तारी के बाद अन्य भी कई लोग इस कांड में शामिल थे, जो फरार हो गये. पुलिस ने इन तीन में से एक नरेंद्र को मुखबिर बना लिया. उसने कई साथियों के पते और ठिकाने बता दिए. इस चक्कर में कई निरपराध लोग भी पकड़ लिये गये. अतः कन्हाई और सत्येन्द्र ने उसे सजा देने का निश्चय किया और एक पिस्तौल जेल में मंगवा ली. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस ने नरेंद्र गोस्वामी को जेल में सामान्य वार्ड की बजाय एक सुविधाजनक यूरोपीय वार्ड में रख दिया था.

 एक दिन कन्हाई बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल पहुंच गया. कुछ दिन बाद सत्येन्द्र भी पेट दर्द के नाम पर वहां आ गया. अस्पताल उस यूरोपीय वार्ड के पास था, जहां नरेन्द्र रह रहा था. एक-दो दिन बाद सत्येन्द्र ने ऐसा प्रदर्शित किया, मानो वह इस जीवन से तंग आकर मुखबिर बनना चाहता है. उसने नरेंद्र से मिलने की इच्छा भी व्यक्त की. यह सुनकर नरेंद्र को बहुत प्रसन्नता हुई. 

 31 अगस्त, 1908 को नरेंद्र जेल के एक अधिकारी हिंगिस के साथ उससे मिलने अस्पताल चला गया. सत्येन्द्र अस्पताल की पहली मंजिल पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. वहां कन्हाई को देखकर एक बार नरेंद्र को शक हुआ, पर फिर वह सत्येन्द्र के संकेत पर हिंगिस को पीछे छोड़कर उनसे एकांत वार्ता करने के लिए कमरे से बाहर बरामदे में आ गया. कन्हाई और सत्येन्द्र तो इस अवसर की प्रतीक्षा में ही थे. मौका देखकर कन्हाई ने नरेंद्र गोस्वामी पर गोली दाग दी. वह चिल्लाते हुए नीचे की ओर भागा. इस पर सत्येन्द्र ने उसे पकड़ लिया. 

 गोली की आवाज सुनकर हिंगिस और एक अन्य जेल अधिकारी लिंटन आ गये. लिंटन ने सत्येन्द्र को गिराकर कन्हाई को जकड़ लिया. इस पर कन्हाई ने पिस्तौल की नाल उसके सिर में दे मारी. इस हाथापाई में कई गोलियां व्यर्थ हो गई. अब केवल एक गोली शेष थी. कन्हाई ने झटके से स्वयं को छुड़ाकर बची हुई गोली नरेंद्र पर दाग दी. इस बार निशाना ठीक लगा और देशद्रोही धरती पर लुढ़क गया.

 दोनों ने अपना उद्देश्य पूरा होने पर समर्पण कर दिया. मुकदमे में कन्हाई ने अपना अपराध स्वीकार कर किसी वकील की सहायता लेने से मना कर दिया. अतः उसे फांसी की सजा सुनाई गई. न्यायालय ने सत्येन्द्र को फांसी योग्य अपराधी नहीं माना. शासन ने इसकी अपील ऊपर के न्यायालय में की. वहां से सत्येन्द्र के लिए भी फांसी की सजा घोषित कर दी गई. अलीपुर केन्द्रीय कारागार में 10 नवम्बर, 1908 को कन्हाई को फांसी दी गई. 

 वह इतना मस्त थे कि फांसी वाले दिन तक उसका भार 16 पौंड बढ़ गया. फांसी वाली रात वह इतनी गहरी नींद में सोये कि उन्हें आवाज देकर जगाना पड़ा. उसके शव की विशाल शोभायात्रा निकालकर चंदन के ढेर पर उसका दाह संस्कार किया गया. अंत्यक्रिया पूरी होने तक हजारों लोग वहां डटे रहे. चिता शांत होने पर लोगों ने भस्म से तिलक किया. सैकड़ों लोगों ने भस्म के ताबीज बच्चों के हाथ पर बांधे. हजारों ने उसे पूजागृह में रख लिया. 

 21 नवम्बर, 1908 को सत्येन्द्र को भी फांसी दे दी गई. कन्हाई की शवयात्रा से घबराये शासन ने उसका शव परिवार वालों को न देकर जेल में ही उसका दाह संस्कार कर दिया. ऐसे महावीरों के चरणों में नमन करते हुए आज सुदर्शन न्यूज एक ब्रिटिश चाटुकार और क्रान्तिकारियो के द्रोही के वध को भारत के स्वर्णिम इतिहास के लिए परम आवश्यक मानता है.

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