सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

24 दिसंबर : आज ही के दिन भोपाल की युद्ध में निजाम, मुग़ल और नवाब पर अकेले भारी पड़े थे मराठा... 70 हजार फौज को चटाई थी धूल

भोपाल की पृष्ठभूमि राजा भोज से जुड़ी हुई है, जिन्होंने यहां दुनिया का सबसे बड़ा तालाब बनावाया था.

Sumant Kashyap
  • Dec 24 2024 7:52AM

भाग्यनगर जो वर्तमान में हैदराबाद के नाम से जाना जाता है. भाग्यनगर से मध्य प्रदेश के राज्यधानी भोपाल की दूरी लगभग 850 किलोमीटर है. 24 दिसंबर 1737 को  285 साल पहले वह दिन है जब पेशवा बाजीराव जी की सेना ने निजाम, मुगल और नबाव को संयुक्त फौज को धूल चटा दी थी. भाग्यनगर के निजाम के सामने मराठा ऐसी दीवार बनकर खड़े हुए कि इतिहास में शौर्य का एक नया अध्याय जुड़ गया था. 

जानकारी के लिए बता दें कि 24 दिसंबर 1737 को हुए इस युद्ध में निजाम के साथ मुगल, नवाबों की ताकत भी जुड़ी थी. लेकिन मराठा वीर अकेले ही सब पर भारी पड़े थे. कहते हैं कि यदि इस युद्ध में मराठा पराजित हो जाते तो न केवल भोपाल भाग्यनगर (हैदराबाद) का हिस्सा बनता, बल्कि मुगलों का भी कभी अंत नहीं होता. 

भोपाल की पृष्ठभूमि राजा भोज से जुड़ी हुई है, जिन्होंने यहां दुनिया का सबसे बड़ा तालाब बनावाया था. बता दें कि सालों बाद यहां निजाम शाह का शासन आया. निजाम की पत्नी कमलापति थीं, जिनके नाम के चलते लोग धीरे-धीरे इसे रानी कमलापति का भोपाल कहने लगे थे. बाद में रानी कमलापति का भोपाल, दोस्त मोहम्मद खान का हो गया. उसने रानी के बेटे को मारकर खुद को यहा. नवाब घोषित कर दिया. दोस्त खान ने यहा. 1723 से 1728 तक राज किया. फिर भाग्यनग (हैदराबाद) के निजाम ने भोपाल पर हमला कर उसे (दोस्त मोहम्मद खान) अपने अधीन कर लिया. उसकी मौत के बाद निजाम का बेटा यहा. का नवाब बनाया गया था. 

दरअसल, भाग्यनगर (हैदराबाद) का निजाम हमेशा भोपाल पर काबिज रहना चाहता था. वहीं, दूसरी ओर मार्च 1737 में मराठाओं से हार कर मुगल बिलबिलाए हुए थे. वे कैसे भी मराठाओं की बढ़ती ताकत को रोकना चाहते थे. यही वजह थी कि उन्होंने भाग्यनगर के निजाम के कंधे पर बंदूक रखकर मराठाओं को खत्म करने की साजिश रची.

इस साजिश में भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम के साथ केवल मुगल ही नहीं, बल्कि जय सिंह द्वितीयव अवध और बंगाल के नवाब भी थे. सभी एकजुट हुए और मराठाओं पर हमला बोलने की साजिश रची. मगर वे भूल गए थे कि वर्तमान देश के राज्यधानी दिल्ली में घेरकर मुगलों को मारने वाले पेशवा बाजीराव जी अब भी मराठाओं का नेतृत्व कर रहे थे.

वहीं, इतिहासकार ने बताता है कि 1737 के दिसंबर में भाग्यनगर के निजाम और अन्य नवाबों के साथ साठ-गांठ कर मराठाओं को हराने के लिए मुगलों ने हमला बोला. भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम का उद्देश्य साफ था वे भोपाल पर कब्जा चाहते थे और मुगल किसी भी तरह मराठाओं को हराकर अपना अस्तित्व बचाना चाहते थे. बता दें कि वह दिल्ली की हार से तिलमिलाए थे. उनको पता चल रहा था कि औरंगजेब की मौत उन्हें लगातार कमजोर कर रही है. वहीं पेशवा बाजीराव जी के नेतृत्व में मराठा सेना हर दिन मजबूत हो रही थी.

बता दें कि यही वजह थी कि 1737 में मुगल शासक मोहम्मद शाह ने खुद भाग्यनगर (हैदराबाद) निजाम से मदद मांगी. इसके बाद निजाम ने भोपाल को अपने कब्जे में रखने के लिए लगभग 70000 फौजी मराठाओं से लड़ने के लिए लगाए. लेकिन पेशवा बाजीराव जी की सूझबूझ का उनके पास कोई जवाब नहीं था. निजाम ने जहां भोपाल की लालच में किले में डेरा जमाकर अपनी रक्षात्मक रणनीति तैयार करनी शुरू की. वहीं पेशवा जी ने समझदारी के साथ आक्रमण का निर्णय लिया.

उन्होंने निजाम को किले सहित चारों ओर से घेरा और फिर उनके खाने-पीने के सामानों पर रोक लगा दी. पेशवा जानते थे कि सेना कितनी ही बड़ी क्यों न हो, लेकिन अगर उन्होंने पानी जैसी मूलभूत जरूरत पर गाज गिरा दी तो आधी जीत उनकी वहीं हो जाएगी और निजाम को अपनी सेना सहित घुटने टेकने ही पड़ेंगे. पेशवा ने अपनी इसी रणनीति पर काम किया.

 बता दें कि युद्ध से पहले उन्होंने अपने भाई चिमाजी को 10 हजार सैनिकों के साथ अलग भेज दिया. जब निजाम की सेना के साथ मराठाओं की सेना के आमने-सामने आने का समय आया तब तक निजाम की सेना प्यास से तड़प चुकी थी, क्योंकि चिमाजी की मदद से पेशवा जी ने पानी के हर स्रोत में जहर मिलवा दिया था. न सैनिक उस पानी को पी सकते थे और न ही लड़ सकते थे. अंतत: निजाम की वो भारी-भरकम 70 हजार की फौज पस्त पड़ गई थी.

जानकारी के लिए बता दें कि निजाम की फ़ौज के कमजोर पड़ते ही बाजीराव जी ने मराठा सेना के साथ हमला बोला और ऐसी मारकाट मचाई कि भाग्यनगर (हैदराबाद) के निजाम ने कसम खा ली कि वह दोबारा मराठा से युद्ध नहीं करेंगे. हालात देख निजाम ने न केवल भोपाल पर कब्जे का सपना छोड़ा, बल्कि उलटा 50 लाख रुपए मराठाओं को देकर अपनी और मुगलों के सरदार मुहम्मद खान बहादुर की जान बचाई थी.

वहीं,  7 जनवरी 1738 को यानी इस युद्ध के चंद दिनों बाद ही भोपाल के दोराहा में पेशवा बाजीराव जी और जय सिंह द्वितीय के बीच शांति संधि हुई थी. इसके बाद मराठा ने मालवा प्रांत पर आधिपत्य जमाया और भोपाल में स्वराज्य की स्थापना हुई थी.

सहयोग करें

हम देशहित के मुद्दों को आप लोगों के सामने मजबूती से रखते हैं। जिसके कारण विरोधी और देश द्रोही ताकत हमें और हमारे संस्थान को आर्थिक हानी पहुँचाने में लगे रहते हैं। देश विरोधी ताकतों से लड़ने के लिए हमारे हाथ को मजबूत करें। ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग करें।
Pay

ताज़ा खबरों की अपडेट अपने मोबाइल पर पाने के लिए डाउनलोड करे सुदर्शन न्यूज़ का मोबाइल एप्प

Comments

ताजा समाचार