शारदीय नवरात्रि, जो इस साल 3 अक्टूबर 2024 से शुरू हो रही है, भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दौरान देवी दुर्गा की आराधना की जाती है और भक्तजन 9 दिनों तक उपवास रखते हैं। नवरात्रि में दुर्गा की घटस्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी मां की चौकी स्थापित की जाती है तथा 9 दिनों तक इन देवियों की पूजन-अर्चन की जाती है। नवरात्रि के इस पर्व में जौ बोने की परंपरा का विशेष महत्व है।
जानिए इससे पीछे जुड़ी मान्यता
मान्यता के अनुसार, जौ बोना एक प्राचीन धार्मिक रिवाज है, जिसे माता दुर्गा की उपासना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। भक्तजन जौ के बीज को मिट्टी में बोते हैं और इसे 9 दिनों तक जल और सूरज की रोशनी देते हैं। जैसे-जैसे जौ उगता है, इसे 'गोधूलि' या 'नवरात्रि घास' कहा जाता है। यह हर दिन देवी के स्वरूप का प्रतीक माना जाता है और इस घास को नवरात्रि के आखिरी दिन विशेष पूजा में देवी को अर्पित किया जाता है।
जौ बोने का एक और पहलू यह है कि यह कृषि से जुड़ी परंपरा का हिस्सा है। भारत में नवरात्रि का त्योहार फसल की कटाई के समय के आसपास आता है। जौ बोने से यह दर्शाया जाता है कि हम भूमि और प्रकृति के प्रति अपने कृतज्ञता का भाव रखते हैं। इसके अलावा, जौ का अंकुरित होना जीवन और प्रगति का प्रतीक है, जो भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि की अनुभूति कराता है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, नवरात्रि के दौरान जौ बोने की परंपरा सामाजिक एकता और परिवार के साथ मिलकर पूजा करने का एक साधन भी है। इसे लेकर विशेष उत्साह देखा जाता है, जहाँ परिवार के सभी सदस्य मिलकर इस कार्य में शामिल होते हैं। यह न केवल धार्मिक भावनाओं को मजबूत करता है, बल्कि आपसी संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाता है।
अंत में, शारदीय नवरात्रि में जौ बोने की परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। यह एकता, समृद्धि, और प्रकृति के प्रति आदर को दर्शाता है। इस नवरात्रि, जब आप जौ बोते हैं, तो इसे केवल एक रिवाज के रूप में नहीं, बल्कि एक सकारात्मक सोच और उन्नति के प्रतीक के रूप में देखें।