पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने बीएचयू के आयुर्वेद विभाग के राष्ट्रीय सेमिनार में कहा कि इस समय तिरुमला तिरूपति प्रसादम् की खबर आ रही है। प्रसाद के प्रति लोगों में श्रद्धा है, लेकिन ऐसे मामले संदेह पैदा करते हैं। इस बार तो मुझे बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने का सौभाग्य नहीं मिल सका लेकिन मेरे कुछ सहयोगी मंदिर गये थे।
जब वे प्रसाद लेकर आए तो मेरे मन में तिरुपति प्रसादम् का विचार आया। हर मंदिर और तीर्थ स्थल की एक ही कहानी हो सकती है। हिंदू धर्मग्रंथों में मिलावट को पाप बताया गया है। रामनाथ कोविन्द आज यानी शनिवार को शताब्दी कृषि प्रेक्षागृह में भारतीय गाय, जैविक खेती और पंचगव्य चिकित्सा विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने खाद्य पदार्थों में मिलावट को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
उन्होंने कहा कि किसान यह भी सोचता है कि अगर उसके पास 100 बीघे जमीन है तो वह उसमें से 10 बीघे में बिना रासायनिक पदार्थ के खेती करना चाहता है। किसान गौ आधारित खेती यह सुनिश्चित करने के लिए कर रहा है कि उसे या उसके परिवार को भोजन का कुछ हिस्सा चाहिए, लेकिन किसान यह भूल जाता है कि वह इसी तरह गेहूं और धान की खेती भी कर सकता है। मसालों और अन्य अनाजों की खेती के लिए हमें बाजार पर निर्भर रहना पड़ेगा। वह आइसोलेट होकर कैसे सोच सकता है? ऐसे में पशु वैज्ञानिकों को देश को इसका समाधान बताना चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसान यह भी सोचता है कि अगर उसके पास 100 बीघे जमीन है तो वह उसमें से 10 बीघे में बिना रासायनिक पदार्थ के खेती करना चाहता है। किसान गौ आधारित खेती यह सुनिश्चित करने के लिए कर रहा है कि उसे या उसके परिवार को भोजन का कुछ हिस्सा चाहिए, लेकिन किसान यह भूल जाता है कि वह इसी तरह गेहूं और धान की खेती भी कर सकता है। मसालों और अन्य अनाजों की खेती के लिए हमें बाजार पर निर्भर रहना पड़ेगा। वह आइसोलेट होकर कैसे सोच सकता है? ऐसे में पशु वैज्ञानिकों को देश को इसका समाधान बताना चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसान यह भी सोचता है कि अगर उसके पास 100 बीघे जमीन है तो वह उसमें से 10 बीघे में बिना रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किये खेती करना चाहता है। किसान गाय आधारित खेती इसलिए कर रहा है ताकि उसे या उसके परिवार को उनकी जरूरत के भोजन का कुछ हिस्सा मिल सके, लेकिन किसान यह भूल जाता है कि वह गेहूं और धान की खेती भी इसी तरह कर सकता है। हमें मसालों और अन्य अनाजों की खेती के लिए बाजार पर निर्भर रहना पड़ेगा। किसान अकेला कैसे सोच सकता है? ऐसे स्थिति में पशु वैज्ञानिकों को इसका समाधान बताना चाहिए।