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22 मई : बलिदान दिवस महायोद्धा मुरारबाजी देशपांडे जी... 6 हजार धर्मरक्षक हिंदुओ को लेकर 10 हजार अधर्मी मुगलों का वध किया और पाई वीरगति

आज वीरता के उस चरम बिंदु मुराबाजी देशपांडे जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन और वन्दन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है

Sumant Kashyap
  • May 22 2024 8:05AM

इनका नाम लेना व लिखना झोलाछाप इतिहासकार और नकली कलमकारों को पसंद नही था. मुख्य कारण यह था कि ये लड़े थे क्रूर, लुटेरे, हत्यारे दिलेर खान नामक विधर्मी से इसलिए इनकी तारीफ करने से उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाती..उसी सेक्युलरिज़्म के नकली आवरण से बने सिद्धांत के चलते वो आज भी राष्ट्र के सैनिको की गौरवगाथा लिखने के बजाय पत्थरबाज़ों की गोद मे बैठ कर अपनी बिकी कलम से उन नापाक पत्थरबाजों की मासूमियत बता रहे हैं.

ये घटना तब की है जब हत्यारे, लुटेरे दिलेर खान द्वारा संचालित मुगल सेना ने पुरंदर किले को घेर लिया. वह निकटवर्ती गांवों में लूटपाट कर आतंक फैलाने लगी. पुरंदर किला दो चोटियों पर बना था. मुख्य किला 2,500 फुट ऊंची चोटी पर था, जबकि 2,100 फुट वाली चोटी पर वज्रगढ़ बना था. जब कई दिन के बाद भी मुगलों को किले को हथियाने में सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने वज्रगढ़ की ओर से तोपें चढ़ानी प्रारम्भ कर दीं. मराठा वीरों ने कई बार उन्हें पीछे धकेला पर अन्ततः मुगल वहां तोप चढ़ाने में सफल हो गए. इस युद्ध में हजारों मराठा सैनिक बलिदान हो गए.

पुरंदर किले में मराठा सेना का नेतृत्व मुरारबाजी  देशपांडे जी कर रहे थे. उनके पास 6,000 सैनिक थे, जबकि मुगल सेना 10,000 की संख्या में थी और फिर उनके पास तोपें भी थीं. अधिकांश हिंदू सैनिक मारे जा चुके थे. शिवाजी ने समाचार पाते ही नेताजी पालकर को किले में गोला-बारूद पहुंचाने को कहा. उन्होंने पिछले भाग में हल्ला बोलकर इस काम में सफलता पाई पर वे स्वयं किले में नहीं पहुंच सके. इससे किले पर दबाव तो कुछ कम हुआ पर किला अब भी पूरी तरह असुरक्षित था.

किले के मराठा सैनिकों को अब आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी. मुरारबाजी  देशपांडे जी को भी कुछ सूझ नहीं रहा था. अन्ततः उन्होंने आत्माहुति का मार्ग अपनाते हुए निर्णायक युद्ध लड़ने का निर्णय लिया. किले का मुख्य द्वार खोल दिया गया. बचे हुए 700 सैनिक हाथ में तलवार लेकर मुगलों पर टूट पड़े. इस आत्म बलिदानी दल का नेतृत्व स्वयं मुरारबाजी  देशपांडे जी कर रहे थे. उनके पीछे 200 घुड़सवार सैनिक भी थे. भयानक मारकाट प्रारम्भ हो गई.

यह ऐतिहासिक युद्ध 22 मई, 1665 को हुआ था. मुरारबाजी  देशपांडे जी ने जीवित रहते मुगलों को किले में घुसने नहीं दिया. ऐसे वीरों के बल पर ही छत्रपति शिवाजी महाराज क्रूर विदेशी और विधर्मी मुगल शासन की जड़ें हिलाकर हिंदू साम्राज्य की स्थापना कर सके. आज वीरता के उस चरम बिंदु मुराबाजी  देशपांडे जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन और वन्दन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है ..मुरारबाजी  देशपांडे जी अमर रहें …

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