इस्लाम कबूल कर निकाह करो, वरना होगा रेप... जामिया मिलिया इस्लामिया में विधवा हिंदू कर्मचारी को प्रोफेसर ने दी धमकी
जामिया में धर्मांतरण का दबाव, हिन्दू कर्मचारियों और विद्यार्थियों के साथ भेदभाव चरम पर। फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट आने के बाद हुए चौकाने वाले खुलासे।
दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की एक महिला शिक्षक ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि उन्हें अपनी M.ED डिग्री पूरी करने के लिए इस्लाम स्वीकार करने का दबाव डाला गया था। शिक्षिका ने बताया कि एक प्रोफेसर ने खुलेआम कहा था कि यदि उन्होंने इस्लाम नहीं अपनाया, तो वह अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाएंगी। यह घटना तब हुई जब वह अपनी M.ED की पढ़ाई कर रही थीं। पीड़िता के अनुसार, यह प्रोफेसर मौलाना आज़ाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति की पत्नी हैं।
धर्म परिवर्तन न करने पर बढ़ा काम
जब महिला शिक्षक ने इस्लाम कबूल करने से मना किया, तो उनके ऊपर अतिरिक्त कार्य का दबाव डाला गया। उन्हें हफ्ते में 24 पीरियड्स की जगह 38 पीरियड्स देने के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा, उन पर यह भी दबाव था कि वह मुस्लिम छात्रों को अच्छे अंक दें, जो एक और मानसिक उत्पीड़न का कारण बना।
हिंसा की धमकी
महिला शिक्षक ने यह भी आरोप लगाया कि एक प्रोफेसर, जिनका नाम अमुतुल हलीम था, ने उन्हें धमकी दी थी कि यदि उन्होंने इस्लाम नहीं अपनाया, तो उनके साथ बहुत बुरा हो सकता है। उसने कहा कि वह या तो तेजाब से जल सकती हैं, या उन्हें मार दिया जा सकता है, या शायद बलात्कार का शिकार भी हो सकती हैं।
पति के निधन के बाद धर्मांतरण का दबाव
महिला शिक्षक ने यह भी खुलासा किया कि जब उनके पति का निधन हुआ, तो उन्हें यह सलाह दी गई कि वह एक मुस्लिम सहकर्मी से निकाह करें और इसके साथ ही धर्म परिवर्तन कर लें। यह दबाव उनकी मानसिक स्थिति पर और अधिक असर डालने वाला था।
भेदभावपूर्ण नियुक्तियाँ और अनुकंपा प्रणाली
इसके अलावा, महिला शिक्षक ने यह भी बताया कि जामिया विश्वविद्यालय में कई ऐसे मुस्लिम शिक्षक और छात्रों को विशेष अवसर दिए जाते हैं, जिनके पास आवश्यक योग्यताएँ नहीं होतीं। उदाहरण के लिए, एमएस कुरैशी जैसे मौलवी, जिनके पास कोई पीएचडी डिग्री नहीं थी, उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया गया। वहीं, तबस्सुम नकी जैसे मुस्लिम छात्रों को, जिनके M.ED में खराब अंक थे, उन्हें पीएचडी में प्रवेश दे दिया गया।
जामिया विश्वविद्यालय में धर्म परिवर्तन और भेदभाव को लेकर उठे हुए सवाल गंभीर चिंता का विषय हैं। यह मामला न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि उच्च शिक्षा संस्थानों में समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर भी बडी बहस उत्पन्न करता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस प्रकार की घटनाओं के बारे में प्रशासन क्या कदम उठाता है और क्या इससे जुड़े मुद्दों को सुलझाया जाता है।
धर्मांतरण और भेदभाव के मामलों की गंभीर शिकायतें
2024 के अक्टूबर माह में भी एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई, जिसमें जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में एक दिव्यांग हिंदू छात्रा को इस्लाम अपनाने का दबाव डाला गया। छात्रा ने इसके विरोध में पुलिस से मदद मांगी और आरोप लगाया कि उसे रेप और हत्या की धमकियाँ दी जा रही हैं। यह घटना विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के कोर्स की छात्रा के साथ घटित हुई।
शिकायत में क्या आरोप हैं?
पीड़िता ने 19 अक्टूबर 2024 को एक लिखित शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें उसने इब्ने सऊद, प्रोफेसर दानिश इकबाल और मीर कासिम नामक व्यक्तियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए। पीड़िता के अनुसार, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के बाद उसे लगातार यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। उसे अश्लील टिप्पणियाँ और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा, और जब उसने इसका विरोध किया तो उसे इस्लाम अपनाने की धमकी दी गई।
धमकियाँ और मानसिक प्रताड़ना
पीड़िता ने पुलिस को बताया कि जब उसने इस्लाम अपनाने से मना किया, तो उसे न केवल शारीरिक नुकसान पहुँचाने की धमकियाँ मिलीं, बल्कि एक विशेष घटना का उल्लेख करते हुए कहा गया, "तुम कोलकाता कांड भूल गई हो?" इसके बाद पीड़िता को लगातार धमकियाँ मिल रही हैं। इन धमकियों से वह और उसके परिवारजन मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं।
मूल कारण क्या था?
पीड़िता ने बताया कि 10 जुलाई 2023 से उसकी परेशानी शुरू हुई, जब उसे अज्ञात नंबरों से अश्लील कॉल्स आने लगीं। उसने बाद में जाना कि एक लड़के ने उसका नंबर पूरे जामिया नगर में फैला दिया था। इसके बाद उसे हिंदू होने की वजह से बार-बार अपमानित किया गया, और जामिया के कुछ छात्रों ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
यूनिवर्सिटी प्रशासन का रवैया
पीड़िता ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से भी मदद माँगी थी, लेकिन जामिया प्रशासन ने उसकी शिकायतों को नज़रअंदाज़ किया। पीड़िता ने 10 जून 2024 को एक पत्र भेजा, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। बाद में, 26 जुलाई 2024 से इब्ने सऊद उसे लगातार परेशान करने लगा और उसका पीछा करने लगा। इसी तरह की परेशानियों का सामना उसे विश्वविद्यालय में हाजिरी और फीस को लेकर भी किया।
आगामी कदम
जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में हो रहे भेदभाव और धर्म परिवर्तन के दबाव के मामलों ने न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में इस तरह की घटनाएँ गंभीर चिंता का विषय बन चुकी हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन इन मामलों में किस तरह की कार्रवाई करता है और छात्रों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट का उद्देश्य और संक्षिप्त विवरण
बात दें कि जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और धर्मांतरण के दबाव को लेकर एक 65 पेज की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट सामने आई है। यह रिपोर्ट 'कॉल फॉर जस्टिस' ट्रस्ट की एक छह सदस्यीय टीम द्वारा तैयार की गई, जिसमें गैर-मुस्लिम फैकल्टी, छात्र, पूर्व छात्र और कर्मचारी से बातचीत करके निष्कर्षों तक पहुँचा गया। इस रिपोर्ट को तैयार करने में तीन महीने से अधिक का समय लगा। रिपोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा और दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव समेत अन्य सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रिपोर्ट के निष्कर्ष के बाद गृह मंत्रालय को इसकी सूचना दी गई है, और इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की योजना बनाई जा रही है।
सर्वेक्षण के दौरान सामने आई घटनाएँ
रिपोर्ट के अनुसार, एक महिला सहायक प्रोफेसर ने बताया कि विश्वविद्यालय में शुरू से ही उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। मुस्लिम कर्मचारियों द्वारा गैर-मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। उन्होंने यह भी बताया कि जब वे अपनी पीएचडी थीसिस प्रस्तुत कर रही थीं, तब एक मुस्लिम क्लर्क ने उन्हें अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं और कहा कि वह कभी सफलता नहीं पा सकतीं।
इसके अतिरिक्त, एक दलित फैकल्टी सदस्य ने साझा किया कि जब उन्हें कॉलेज में अपना केबिन आवंटित किया गया, तो मुस्लिम कर्मचारियों ने टिप्पणी की कि प्रशासन ने एक 'काफिर' को केबिन दे दिया।
धर्मांतरण को लेकर दबाव की घटनाएँ
रिपोर्ट में एक अन्य मामले का जिक्र किया गया है जिसमें एक अनुसूचित जनजाति का पूर्व छात्र बताता है कि कैसे एक मुस्लिम शिक्षक ने उसे अपनी MED को पूरा करने के लिए इस्लाम अपनाने का दबाव डाला। शिक्षक ने यह भी कहा कि ऐसे छात्रों को अच्छा व्यवहार तब मिलता है जब वे इस्लाम में दीक्षित होते हैं।
टीम का गठन
इस रिपोर्ट को तैयार करने में तीन महीने से ज्यादा का समय लगा। यह फैक्ट फाइंडिंग टीम दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में काम कर रही थी, और इसमें दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे। रिपोर्ट पूरी होने के बाद, टीम ने गृह मंत्री (राज्य) नित्यानंद राय को इसके निष्कर्षों की सूचना दी।
इस रिपोर्ट में जामिया मिलिया इस्लामिया में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिसके तहत छात्रों और कर्मचारियों को शैक्षिक और पेशेवर जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस प्रकार के भेदभाव और धर्मांतरण के दबाव को लेकर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, जिससे विश्वविद्यालय में समानता और न्याय की स्थिति सुनिश्चित की जा सके।
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