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9 जनवरी: बलिदान दिवस राजा नाहर सिंह जी,1857 के इस क्रांतिवीर ने अंतिम इच्छा में "अंग्रेजों का नाश" मांगा था. गिरफ्तारी में गद्दारी थी इलाहीबख्स की

आज आज़ादी के उस महान शक्तिपुंज को उनके बलिदान दिवस पर बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Sumant Kashyap
  • Jan 9 2025 8:01AM

आजादी के गौरवशाली इतिहास के असल पन्ने वो नहीं जो हमें पढ़ाये या कहा जाय तो रटाये जा रहे हैं. स्वतंत्रता के वो पन्ने भी हैं जिन्हें हम जानते भी नही है. बहुत कम लोगो को पता होगा राजा नाहर सिंह जी के इतिहास के बारे में जिनका आज बलिदान दिवस है.

1857 की क्रांति का ये महान योद्धा आज तक अपने शौर्य के चलते अजर और अमर है. आगे भी रहेंगे क्योंकि इनके परिजनों को इनके बलिदान का ढोल पीट कर कुछ लोगो की तरह आज़ादी की ठेकेदारी नही लेनी थी और साथ ही किसी भी प्रकार का लोभ या लालच भी नही था.

ये तो बस स्वतंत्रता के दीवाने थे जिन्हें परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माँ को मुक्त करवाना था. इन्होंने इस मार्ग पर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और आखिरकार इन्ही के प्रयास अंत मे रंग लाये. महान क्रांतिकारी बलिदान महाराजा नाहर सिंह तेवतिया जी को आज याद करने का दिन है.

आज 9 जनवरी बलिदान दिवस के अवसर पर उनको सुदर्शन परिवार की भावभीनी श्रद्धांजलि. फरीदाबाद-हरियाणा एक बहुत ही शक्तिशाली रियासत थी जिसका नाम बल्लभगढ़ था, इसके स्थापक हिन्दू वीर महाराजा बलराम सिंह जी थे।वल्लभगढ़ और भरतपुर रियासतों ने मिलकर जिहादियों से धर्म की रक्षा की थी. 

महाराजा बलराम सिंह की 7 वीं पीढ़ी में 6 अप्रैल 1821 को इस महान प्रतापी राजा नाहर सिंह ने जन्म लिया था. उस समय देश पर अंग्रेजो का अवैध शासन था. नाहर सिंह के बचपन का नाम नरसिंह था इनके ऊपर शिकार करते वक्त एक शेर ने हमला कर दिया था.

तब नर सिंह और इनके अंगरक्षक ने शेर से टक्कर ली पर अंगरक्षक मृत्यु हो गयी फिर नरसिंह ने शेर को मार गिराया. उस समय ये मात्र 16 साल के ही थे. तब इनका नाम नर सिंह से नाहर सिंह हुआ. उसके बाद उनका विवाह कपूरथला रियासत के राजा की पुत्री से कर दिया गया. 

20 जनवरी 1839 को छोटी सी उम्र में उनका राजतिलक हुआ. राजा बनते ही उन्होंने सेना को मजबूत करना शुरू कर दिया. बल्लभगढ़ रियासत का उस समय नाम बलरामगढ़ था जो इसके संस्थापक महाराजा बलराम सिंह जी के नाम पर पड़ा था. इस रियासत की ओर आँख उठाने की अंग्रेजों हिम्मत भी नही पड़ती थी. 

महाराजा नाहर सिंह जी के नाम से अंग्रेज थर थर कांपते थे. उन्होंने अंग्रेजो के अपनी रियासत में आने पर भी प्रतिबंध का फरमान जारी कर दिया था जो उस समय बड़े बड़े राजाओं के भी बस की बात नही थी. इसी बीच 1857 की क्रांति की योजना शुरू हुई उन्होंने गुड़गांव रेवाड़ी ग्वालियर फरुखनगर के राजाओं को एक ध्वज तले लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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