ये भारत की तथाकथित सेकुलर राजनीति और नकली कलमकारों एवं चाटुकार इतिहासकारों द्वारा भारत के वीर वीरांगनाओं को भुला दी गई. अन्यथा वीर वीरांगनाओं ने अपना कर्तव्य निभा ही दिया था. नारियों के लिए जिस देश मे आदर्श बना कर टेरेसा को प्रस्तुत किया जाता रहा है. उसमें महारानी गायत्री देवी जी का नाम भी शामिल हो सकता था लेकिन चाटुकार इतिहासकार व नकली कलमकारों ने जो कुछ किया उसकी क्षमा शायद ही समय के पास हो.
महारानी गायत्री देवी जी दुनिया की सबसे सुंदर 10 महिलाओं में से एक चुनी गई थीं. 12 साल की उम्र में चीते का शिकार किया था. 16 साल की उम्र में एक बड़े राजघराने की महारानी बन गईं. सबसे महंगा फ्रेंच इत्र इस्तेमाल करती थीं. चुनाव मैदान में उतरीं तो गिनीज बुक में नाम दर्ज करवा लिया. उन्होंने दो-दो प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों से पंगा लिया और पांच महीने जेल में बिताए. जीवन के अंतिम दौर में अपना क़िला बचाने के लिए झुग्गी-झोपड़ी वालों के साथ सड़क पर बैठना पड़ा. वह चाहतीं तो आसानी से मुख्यमंत्री बन सकती थीं, लेकिन अपने महाराजा का मान रखा और इस बहाने अपनी प्रजा का भी.
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के राजघरानों की राजनीति की. बता दें कि 1962 के लोकसभा चुनावों की. राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे मोहनलाल सुखाड़िया. वह समझ रहे थे कि कांग्रेस की हालत पतली है और महारानी गायत्री देवी जी ही उबार सकती हैं. उस समय गायत्री देवी जी स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो चुकी थीं. विधानसभा चुनावों में 154 सीटों में से 36 सीटें स्वतंत्र पार्टी को दिलवा चुकी थीं महारानी.
वहीं, मोहनलाल सुखाड़िया ने गायत्री देवी जी से कांग्रेस में शामिल होने और जयपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया. गायत्री देवी जी ने अपने पति महाराजा सवाई मानसिंह जी से इस प्रस्ताव पर बात की. मानसिंह जी तो लगभग तैयार हो गए, लेकिन गायत्री देवी जी ने याद दिलाया कि किस तरह कांग्रेस ने 1956 में महाराजा सवाई मानसिंह जी को राजप्रमुख पद से हटाकर उनका अपमान किया था. हटाए जाने से दो साल पहले जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री ने कहा था कि राजप्रमुख क्या है? दस्तखत करने की मशीन ही तो है.
हालांकि तब सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने इस बयान पर नाराजगी जाहिर की थी. लेकिन, तीर कमान से निकल चुका था. महारानी गायत्री देवी जी को घायल कर चुका था. वह प्रण ले चुकी थीं कि कांग्रेस के ख़िलाफ़ देशभर में राजगोपालाचारी की पार्टी स्वतंत्र पार्टी के ज़रिए अलख जगानी है. अगर महारानी गायत्री देवी जी कांग्रेस में शामिल हो जातीं, तो तय था कि बाद में मुख्यमंत्री पद की सबसे तगड़ी दावेदार होतीं. लेकिन, उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के टिकट से जयपुर लोकसभा चुनाव लड़ा. कुल पड़े दो लाख 46 हज़ार मतों में से एक लाख 94 हज़ार वोट हासिल कर विश्व रिकॉर्ड बनाया. तब एक लोकगीत प्रचलित हुआ,
'कांगरेस नै छौड़ लागी थोरे ताणी ,
बंधो खोल दे, महाराणी जनता के ताणी'
बता दें कि इन दिनों हर नेता को आंधी बता दिया जाता है, लेकिन सबसे पहले यह नारा महारानी गायत्री देवी जी के लिए साठ के दशक में लगाया गया था. नारा था, 'चुनाव नहीं, यह तो गायत्री देवी की आंधी है.' चुनाव जीतने के बाद गायत्री देवी जी संसद पहुंचीं तो टिप्पणी की, पूरा जयपुर राजघराना ही संसद पहुंच गया है और अपना परचम फहरा रहा है. वह ख़ुद लोकसभा सदस्य, उनके पति सवाई मानसिंह जी राज्यसभा में निर्दलीय सदस्य, दौसा लोकसभा से पुत्र पृथ्वी सिंह जी सांसद और राष्ट्रपति के एडीसी ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी, जो गायत्री देवी जी के सौतेले बेटे थे.
ऐसा भी नहीं है कि गायत्री देवी जी को अपनी सुंदरता और महंगे शौक के लिए जाना जाता है. 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद संसद में वह प्रधानमंत्री नेहरू से उलझ गई थीं. उनका कहना था, 'अगर आपको किसी चीज़ के बारे में कुछ पता होता, तो आज हम इस झंझट में नहीं पड़ते.' 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने गायत्री देवी जी से कांग्रेस में शामिल होने का आग्रह किया था.
फिर पांच साल बाद 1967 में वह इंदिरा गांधी से उलझ गईं. दरअसल गायत्री देवी जी की माता का नाम भी इंदिरा राजे था. वह इंदिरा गांधी के साथ शांति निकेतन में पढ़ चुकी थीं. इंदिरा गांधी ने तब संसद में गायत्री देवी जी को किसी संदर्भ में कांच की गुड़िया कह डाला था. यह वो साल था, जब राजस्थान विधानसभा में स्वतंत्र पार्टी के 49 विधायक जीतकर आए और इंदिरा गांधी की कांग्रेस के विकल्प का दावा मजबूती से पेश किया.
बताया जाता है कि दोनों के बीच तल्खी तब और बढ़ी, जब इंदिरा गांधी ने राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स ख़त्म कर दिए. आपातकाल के समय गायत्री देवी जी को गिरफ्तार कर पांच महीने तिहाड़ जेल में रखा गया. तब कहा जाता है कि जयपुर राजघराने के जयगढ़ क़िले में इंदिरा गांधी के इशारे पर फ़ौज भेजी गई थी और वहां गड़ा हुआ ख़ज़ाना भी शायद हाथ लगा था. हालांकि जयपुर राजघराने ने बाद में कहा था कि सोने-चांदी के कुछ पुराने सिक्के ही खुदाई में मिले थे.
बताया जाता है कि इंदिरा गांधी को गायत्री देवी जी की संसद में मौजूदगी बर्दाश्त नहीं थी. खूबसूरत, बुद्धिमान, राजसी ठाठ-बाट और ज़िंदगी जीने का शाही अंदाज़- यह सब इंदिरा गांधी को अखरता था. उस पर स्वतंत्र पार्टी का लगातार विस्तार हो रहा था. महारानी गायत्री देवी जी स्वतंत्र पार्टी का सबसे चमकता दमकता सितारा थीं और पार्टी का चुनाव चिह्न था तारा. इंदिरा गांधी इसे चुनौती के रूप में देखने लगीं.