आज जिस बलिदानी का जन्म दिवस है उस वीर के महानतम कार्य उस गाने को गाली के समान सिद्ध करते हैं जो कईयों को बचपन से रटाया जाता है. जिस गाने में आज़ादी का हकदार बिना खड्ग बिना ढाल को बता कर केवल सूत , कपास को ही मान लिया गया.
उधम सिंह जी थे वो पराक्रमी जिनके शौर्य और गौरव को छिपाने के लिए ही सोची समझी रणनीति बना कर पिछली सरकारें केवल कुछ ख़ास नामों पर ही लाखों रुपये बहाती है, लेकिन कभी भी देश के सच्चे सपूतों को याद नहीं करती.
पिछले वर्ष आर टी आई से पता चला कि सैकड़ों करोड़ रुपये केवल कुछ गिने चुने नामों की जयंती पर ही फूंके गये थे, जबकि सच्चे क्रन्तिकारी रानी लक्ष्मी बाई से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक किसी को भी आज तक याद नहीं किया गया, आइये हम परम बलिदानी उधम सिंह को सुदर्शन न्यूज की तरफ से नमन व स्मरण करते है.
वही वीर जिन्होंने भारत माता के अपमान का बदला लेने के लिए अपनी संकल्प की अग्नि को २० साल तक दबाये रखा और..जलियावाला कांड का बदला लिया..ऐसे ही पंजाब के वीर उधम सिंह को आज उनके बलिदान दिवस पर हम नमन करते है.
पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने गोरों की मांद में घुसकर 21 साल बाद पूरा कर दिखाया.
पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांति के साथ सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों को अंधाधुंध फायरिंग करा मौत के घाट उतार दिया था. क्रांतिकारियों पर कई पुस्तकें लिख चुके जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार जलियांवाला बाग की इस घटना ने ऊधम सिंह के मन पर गहरा असर डाला था और इसीलिए उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली थी.
उधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे, लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाई। उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग-ए-आजादी के मैदान में कूद पड़े. तथाकथित देशभक्त जिनके वंशज आज सत्ताओ के शीर्ष पर में है.
उनका द्वारा लूटा हुआ धन स्विस बांको में पड़ा है, देश के 84 करोड़ लोग भूखे मर रहे है. आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर, सुनाम स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रिन्तिकारी का घर है.
आज तक सचे क्रन्तिकारी का इस देश के गदारो ने जिन्होंने 70 सालो तक शासन किया कोई स्मारक नहीं बनाया, लेकिन यहाँ पर एक परिवार की और से 400 से
अधिक योजनाये चल रही है. बलिदानी उधम सिंह का स्मारक देखकर आंसू आते है.
आज तक नेताजी का कोई स्मारक , पंडित बिस्मिल का, चंदेर्शेखर आजाद का, राजिंदर लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह का कोई भी स्मारक नहीं है, (अगर कोई है तो वह सरकार का नहीं बल्कि देशभक्त लोगो का बनवाया हुआ है). भारत के महान क्रांतिकारियों में ऊधम सिंह का विशेष स्थान है।
उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल ओडायर को गोली से उड़ा दिया था. जाने माने नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी, जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे.
पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग करा दी. अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई. बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए, वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली.
जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी. बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए. सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई.
स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी. अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी. उधम सिंह के मन पर इस घटना ने इतना गहरा प्रभाव डाला था कि उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर ओडायर को मारने की सौगंध खाई थी.
अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के मकसद से वह 1934 में लंदन पहुंच गए और सही वक्त का इंतजार करने लगे. ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया.
भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए. चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं.
सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया.
अमर बलिदानी उधम सिंह के माता पिता उनको अनाथ छोड़कर बचपन में चल बसे थे, जब वह 8 वर्ष के थे, कुछ समय बाद 2-3 साल बाद ही उनके बड़े भाई भी उनको सदा सदा के लिए छोड़कर चले गए. वीरता, शौर्य के प्रतीक महा बलिदानी और सदा सदा के लिए अमर हो गए उधम सिंह जी को आज उनके जन्म दिवस पर सुदर्शन न्यूज का बारम्बार नमन, वन्दन और अभिनंदन करते है और ऐसे वीरों को उनके वास्तविक सम्मान दिलाने का संकल्प भी लेते है.