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9 अगस्त : क्रांतिकारियों ने आज ही काकोरी में पराक्रम दिखाते हुए अंग्रेजो से वापस ले लिया था लूटा हुआ खज़ाना...पर वामपंथियों ने इसे "काकोरी क्रांति" नहीं बल्कि "काकोरी कांड" कहा

ऐसा पराक्रम जिस से हिल गई थी क्रूर, अत्याचारी व तानाशाही ब्रिटिश सत्ता.

Sumant Kashyap
  • Aug 9 2024 8:22AM

वो पैसा भारत का ही था. भारत के ही गरीबों से लूटा गया, उनके रक्त को निचोड़ कर वसूला गया और उन पर दुनिया भर के अत्याचार करके डाका जैसा डाला गया. अपने ही देश के पैसे को अपने ही देश में प्रयोग करने के लिए कुछ शूरवीर आगे आए और उन्होंने भारत माता को आजाद कराने का स्वप्न लेकर क्रूर विदेशी सत्ता पर हमला कर दिया. लेकिन उनकी यश गाथा को वामपंथी कलमकारों ने जिस प्रकार से तोड़ मरोड़ कर पेश किया, इतिहास का उससे बड़ा विकृतिकरण संसार में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. 

जिस प्रकार आज देश के अंदर ही रह कर देश की मूल आत्मा भगवान श्री राम का विरोध करते हुए विदेशी लुटेरे बाबर का महिमामंडन किया जा रहा है ठीक उसी प्रकार उस समय भी इन्हीं वामपंथियों के वंशज हुआ करते थे जिनकी नजर में क्रांतिकारी श्रीराम के मार्गी थे और अंग्रेज बाबर जैसे प्रिय. वह इतिहास में भी वैसे थे और वर्तमान में भी वैसे ही है, उनका भविष्य भी यकीनन वैसा ही रहेगा. तब वह भारत के अंदर रह कर ब्रिटिश परस्ती किया करते थे और अब वही भारत में रहकर चीन और पाकिस्तान की तरफदारी सीना ठोक ठोक कर करते हैं और खुद को टुकड़े टुकड़े गैंग कहला कर गौरवान्वित होते हैं..

भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने के लिए वीर और अहिंसा नाम के अभियान से दूर कुछ गिने चुने क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत थी.. उसी जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान बलिदानी राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का वो खजाना वापस लेने की योजना बनायी गई थी जिसे उन्होंने देश की जनता से लूटा था. इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी “आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन” को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, कि चन्द्रशेखर आज़ाद व 6 अन्य वीर सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना वापस ले लिया था..

बाद में गद्दारो के दम पर चल रही ब्रिटिश हुकूमत ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर अंग्रेजी और अत्याचारी सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने,सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। कुछ क्रांतिकारियों के नाम कुछ राष्ट्रभक्त इतिहासकारों के चलते सामने आ गए लेकिन कई फिर भी रह गए गुमनाम .. आज उस शौर्यमय दिवस पर उन सभी ज्ञात अज्ञात वीरों को बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है ..

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