देशभर में धूमधाम से गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। महाराष्ट्र में यह त्योहार सबसे ज़्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि कोरोना संकट के कारण इस साल गणेश चतुर्थी के मौके पर वैसी रौकन नहीं देखी जा सकेगी जो पहले देखी जाती थी।
शिवपुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी इतना महत्वपूर्ण क्यों है और विघ्नहर्ता के इस दिव्य उत्सव का शुभ-लाभ आपको कैसे मिल सकता है। गणपति के आगमन की दिव्य तिथि का महिमा क्या है और कब पधारने वाले हैं गणपति
शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 21 अगस्त दिन शुक्रवार को रात 11 बजकर 02 मिनट से हो रही है। यह तिथि 22 अगस्त दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। गणेश चतुर्थी पर गणेश चतुर्थी की पूजा दोपहर के मुहू्र्त में ही पूजा की जाती है क्योंकि गणेश जी का जन्म दोपहर में हुआ था। ऐसे में 22 अगस्त के दिन गणपति जी की पूजा के लिए दोपहर में 02 घंटे 36 मिनट का समय है। दिन में 11 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 42 मिनट के मध्य गणपति जी की पूजा कर लें।
गणेश चतुर्थी की महिमा
गणेश चतुर्थी का पर्व मुख्य रूप से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है।
माना जाता है कि इसी दिन प्रथम पूज्य श्री गणेश का प्राकट्य हुआ था।
मान्यता ये भी है कि इस दिन भगवान गणेश जी धरती पर आकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
गणेश चतुर्थी की पूजा की अवधि अनंत चतुर्दशी तक चलती है, इस दौरान गणपति धरती पर ही निवास करते हैं।
इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 22 अगस्त से 31 अगस्त तक मनाया जाएगा।
मान्यता है कि इस दौरान गणपति अपने भक्तों के सभी दुख और परेशानियों का अंत कर देते हैं। लेकिन इसके लिए गणपति को प्रसन्न करना जरूरी है।
तो आइए हम आपको गणेश चतुर्थी पर गणपति पूजन की विशेष विधि बताते हैं। इस विधि से पूजन करेंगे तो निश्चित ही प्रसन्न हो जाएंगे विघ्नहर्ता गणेश।
गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गणपति की पूजा
गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना दोपहर के समय करें , साथ में कलश भी स्थापित करें।
लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर मूर्ति की स्थापना करें।
इस मंत्र का उच्चारण करें - ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
दिन भर जलीय आहार ग्रहण करें या केवल फलाहार करें।
शाम के समय गणेश जी की यथा शक्ति पूजा-उपासना करें और उनके सामने घी का दीपक जलाएं।
गणपति को अपनी उम्र की संख्या के बराबर लड्डुओं का भोग लगाएं , साथ ही उन्हें दूब भी अर्पित करें।
फिर अपनी इच्छा के अनुसार गणपति के मन्त्रों का जाप करें।
चन्द्रमा को नीची दृष्टि से अर्घ्य दें , क्योंकि चंद्र दर्शन से आपको अपयश मिल सकता है।
अगर चन्द्र दर्शन हो ही गया है तो उसके दोष का तुरंत उपचार कर लें।
अंत में प्रसाद बांटें और अन्न-वस्त्र का दान करें।