दिल्ली शराब नीति मामले में मनीष सिसोदिया को एक बार फिर से बड़ा झटका लगा है. बता दें कि, दिल्ली हाई कोर्ट से मनीष सिसोदिया को जमानत नहीं मिली है. वहीं इससे पहले पहले निचली अदालत ने उनकी हिरासत बढ़ा दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने आदेश पढ़ते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ट्रायल कोर्ट के अधिकार पर अंतर नहीं पड़ता. उसे मेरिट के आधार पर ही फैसला लेना था. सिर्फ मुकदमे में देरी ज़मानत का आधार नहीं हो सकती थी.
बेंच की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि जब सिसोदिया ज़मानत याचिका दाखिल करें, तब ट्रायल कोर्ट उसकी टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना फैसला करे. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि मेरा मानना है कि प्रॉसिक्यूशन के चलते मुकदमे में देरी नहीं हुई है.
आदेश पढ़ते हुए कोर्ट मे कहा कि आरोपी हजारों पन्नों के दस्तावेज देखने की मांग कर रहे हैं. इससे देर होती है. उन्होंने कहा कि यह केस सत्ता के दुरुपयोग का है. आरोपी जो दिल्ली का उपमुख्यमंत्री था, उसने पहले से तय लक्ष्य के लिए नीति बनाई. नीति बनाने से पहले जनता से भी सुझाव मांगे गए, लेकिन जनता के विश्वास की उपेक्षा कर पहले से तय नीति जारी कर दी गई.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि कहा कि ऐसा दिखाया गया जैसे यह नीति जनता के सुझाव से बनी है. यह धोखा है. जनतांत्रिक मूल्यों पर भी चोट है. हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि मनीष सिसोदिया को भ्रष्टाचार निरोधक कानून और PMLA के प्रावधानों के मुताबिक खुद को जमानत का हकदार दिखाना होगा.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इन्होंने इलेक्ट्रॉनिक सबूत नष्ट किए. अपने 2 फोन उपलब्ध नहीं करवाए. यह बहुत प्रभावशाली हैं. इस आशंका से इनकार नहीं कर सकते कि जमानत मिलने पर यह सबूतों और गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं.
दिल्ली हाई कोर्ट ने आगे कहा कि बिना किसी उचित कारण के शराब वितरकों का मुनाफा 5 से बढ़ा कर 12 फीसदी किया गया और किकबैक के पैसे गोवा भेजे गए. याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जमानत का केस साबित करने में नाकाम रहा. कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया को ट्रायल कोर्ट से तय शर्तों के मुताबिक नियमित अंतराल पर पत्नी से मिलने की इजाजत होगी.