लोक आस्था का महापर्व छठ आज, 5 नवंबर से शुरू हो गया है, और इसकी तैयारी में चारों ओर उत्साह का माहौल है। यह पर्व खासतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और नेपाल के कुछ इलाकों में दीपावली के बाद बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
छठ पूजा इन क्षेत्रों में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में सूर्य देव की उपासना की जाती है, जो हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है।
छठ पूजा का इतिहास और शुरुआत
माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत आदि काल से चली आ रही है। ग्रंथों में वर्णित इतिहास बताते हैं कि बिहार के मुंगेर क्षेत्र में जगजननी मां जानकी ने भी आकर सुर्य उपासना का यह महान व्रत रखा था। ऐसी मान्यता है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ मुंगेर में रुके थे। यहीं पर माता सीता ने छठ का व्रत और अनुष्ठान किया। इस घटना का वर्णन वाल्मीकि और आनंद रामायण में भी मिलता है, और इसी स्थान पर आज भी माता सीता के पवित्र चरण चिह्न देखे जा सकते हैं, जिसे "सीताचरण" कहा जाता है। 1974 में यहां एक मंदिर का निर्माण भी किया गया।
ऋषि मुद्गल का आश्रम और छठ का महत्व
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, वनवास के समय भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने मुद्गल ऋषि के आश्रम का दौरा किया था। वहां माता सीता ने गंगा से वनवास के सकुशल समाप्त होने की प्रार्थना की। लंका विजय के बाद पुनः मुंगेर लौटने पर ऋषि मुद्गल ने माता सीता को सूर्य उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद माता सीता ने गंगा नदी के किनारे एक टीले पर छठ का व्रत रखा और सीताकुंड नामक स्थान पर स्नान किया, जो अब भी श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय स्थान है।
सीताकुंड: एक पवित्र पर्यटन स्थल
वह कुंड जिसमें माता सीता ने स्नान किया था, आज "सीताकुंड" के नाम से प्रसिद्ध है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, और यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु छठ महापर्व और अन्य अवसरों पर पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यहां स्नान करने के बाद भक्त मंदिर में पूजा करते हैं और इसका धार्मिक महत्व मानते हैं। हर साल माघी मेला भी यहां आयोजित किया जाता है, जहां दूर-दूर से व्यापारी आकर लकड़ी की वस्तुएं बेचते हैं।
धार्मिक मान्यता और श्रद्धा का केंद्र
सीताकुंड धार्मिक मान्यता से जुड़ा होने के कारण श्रद्धालुओं का केंद्र बना हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु गंगा के पवित्र जल में स्नान करके अपने मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।