जब मलेच्छ मुग़ल आक्रान्ता हिंदुस्थान में जिहादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे, उस महाराष्ट्र की धरती पर एक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिनका नाम सुनते ही प्रत्येक हिन्दू गर्व महसूस करता है और उस वीर योद्धा का नाम है – छत्रपति शिवाजी महाराज. छत्रपति शिवाजी महाराज मुग़ल आक्रान्ताओं के लिए काल साबित हुए तथा उन्होंने मुगलों द्वारा कब्जाए गए काफी इलाके वापस ले लिए.
1659 ईस्वी में बीजापुर की गद्दी पर मुगल आक्रान्ता आदिलशाह द्वितीय बैठा हुआ था. शिवाजी महाराज उसके लिए संकट बन गए थे. आदिलशाह को समझ आ गया कि शिवाजी महाराज को समाप्त नहीं किया तो खतरा बन जाएगा. इससे पहले भी शिवाजी महाराज को मारने की योजना कई बार बनाई लेकिन सफलता नहीं मिली.
अंततः शिवाजी महाराज का वध करने के लिए अफजल खान को एक नवम्बर, 1659 को भेजा गया. वह अत्यंत दुष्ट व क्रूर स्वभाव का था. अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का बेहतरीन योद्धा था, जो हर तरह की रणनीति अपनाने में माहिर था. वह विशाल सेना के साथ मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ प्रतापगढ़ के निकट पहुंचा. प्रतापगढ़ के किले में ही शिवाजी महाराज थे. यहां तक किसी सेना का पहुंचना नामुमकिन था.
अफजल खान ने शिवाजी महाराज को मिलने का संदेश भेजा. शिवाजी महाराज उसकी चालाकी को जानते थे. फिर दोनों में मुलाकात तय हुई. शिवाजी महाराज ने शर्त रखी कि किसी के पास कोई शस्त्र नहीं होगा, सेना नहीं होगी, साथ में सिर्फ एक अंगरक्षक होगा. अफजल खान अपने हाथ में कटारी छिपाकर लाया. शिवाजी भी कम होशियार नहीं थे.
उन्होंने यह बात विचार कर ली थी कि अफजल खान कोई न कोई षड्यंत्र कर सकता है. शिवाजी महाराज ने अंगरखा के अंदर कवच पहना. दाएं हाथ में बघनखा छिपा लिया. योजनानुसार, 10 नवम्बर 1659 को निश्चित समय प्रतापगढ़ दुर्ग के नीचे ढालू जमीन पर शिवाजी महाराज और अफजल खां की भेंट हुई. अफजल खां ने शिवाजी महाराज को गले लगाया. अफजल खां लम्बा था. शिवाजी महाराज छोटे कद के थे.
शिवाजी महाराज उसके सीने तक ही आ पाए और उसने पीठ में कटारी मारी. कवच पहना होने के कारण वार का कोई प्रभाव नहीं हुआ. इसी दौरान शिवाजी महाराज ने अफजल खान के पेट में बघनखा घुसेड़ दिया. अफजल खां वहीं पर ढेर हो गया. उसकी सेना पर भी हमला कर दिया. इतिहास में इस लड़ाई को प्रतापगढ़ युद्ध के नाम से जाना जाता है.