कई युगों से मनाया जा रहा दीपों का यह पर्व इस बार 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम अपने 14 वर्षों के वनवास के बाद पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे।
उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने दीप जलाए और पूरे नगर को दीपों की माला से सजाया। तब से हर साल कार्तिक मास की अमावस्या पर यह त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीराम के अयोध्या आगमन के साथ-साथ दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश की पूजा क्यों की जाती है? आइए जानें इसके पीछे का पौराणिक रहस्य।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन से पहले देवताओं और राक्षसों में अक्सर युद्ध होते थे। देवताओं के पास हमेशा मां लक्ष्मी का आशीर्वाद था, जो उन्हें शक्ति और समृद्धि प्रदान करता था। इस कारण देवता प्रायः विजयी रहते और अंहकार से भर जाते थे।
दुर्वासा ऋषि का श्राप
एक बार दुर्वासा ऋषि स्वर्ग की ओर जा रहे थे और रास्ते में उन्हें देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ मिले। ऋषि ने प्रसन्न होकर अपने गले की माला इंद्र को भेंट की। मगर इंद्र ने उसे संभालने में लापरवाही की, जिससे वह माला ऐरावत के सिर पर जा गिरी और ऐरावत ने उसे नीचे गिरा दिया।
इस अपमान पर क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को श्राप दे दिया कि उनका अंहकार उनके साथ ही उनके पास से चला जाएगा। इस श्राप के परिणामस्वरूप मां लक्ष्मी इंद्रलोक छोड़ पाताल लोक चली गईं।
क्यों हुआ समुंद्र मंथन?
लक्ष्मी के पाताल लोक जाने के कारण देवता कमजोर हो गए और राक्षसों ने इसका लाभ उठाकर स्वर्ग पर अधिकार की योजना बनाई। इंद्र और अन्य देवताओं ने समाधान के लिए ब्रह्माजी से सलाह ली, जिन्होंने लक्ष्मी को वापस लाने के लिए समुद्र मंथन का सुझाव दिया।
लक्ष्मी पूजा का महत्व
समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी का पुनः प्रकट होना कार्तिक मास की अमावस्या पर हुआ था। मां लक्ष्मी के आगमन से देवताओं को पुनः शक्ति मिली, और उन्होंने राक्षसों पर विजय प्राप्त की। तब से इस दिन को मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व दिया गया है।
धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग दीप जलाते हैं और उनके साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा करते हैं, जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।