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छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य पर लिखी आठ पुस्तकों का हुआ विमोचन... दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा- शिवाजी महाराज भारत वर्ष में हमेशा चिरंजीवी रहेंगे

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य पर लिखी चार हिंदी तथा चार अंग्रेजी पुस्तकों के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे

Sumant Kashyap
  • Aug 1 2024 9:52AM

नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में बुधवार यानी 31 जुलाई 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य पर लिखी चार हिंदी तथा चार अंग्रेजी पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम का आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द थे। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि भारत के गौरवशाली इतिहास के विकृत करने का काम किया गया मगर भारतीय जनमानस के हृदय में रचे-बसे छत्रपति शिवाजी महाराज के गौरवशाली इतिहास को कोई नहीं हटा पाया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि हिंदवी स्वराज और राष्ट्रप्रेम के लिए अपने को समर्पित करने वाले छत्रपति शिवाजी हमेशा भारत वर्ष के हृदय में बसे रहेंगे। शिवाजी महाराज ने अपने कार्यों से राष्ट्र में स्वप्रेम की भावना का विकास किया और अपने काल खंड में मुगलों को पछाड़ कर हिंदवी स्वराज की स्थापना की। अपने जीवित काल खंड में ही शिवाजी लीजेंड बन चुके थे जो उनकी प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने कभी मराठा गौरव की बात नहीं कहीं बल्कि हमेशा हिंदवी स्वराज की बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने जो मार्ग दिखाया था उसके कारण ही अटक से कटक तक मराठों ने भगवा ध्वज लहराकर भारतीय संस्कृति के गौरव को बढ़ाने का काम किया। सरकार्यवाह ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम सारे देश में होने चाहिए। ताकि हिंदवी स्वराज के सुशासन का फैलाव हो सके।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द जी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ शासक थे। वह भारत के भाग्य विधाता थे। अगर छत्रपति शिवाजी जैसे महायोद्धा का कालखंड भारत में न होता को भारतीय संस्कृति की पताका इतनी प्रगाढ़ न होती। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि छत्रपति शिवाजी ने हमारे भीतर राष्ट्रीय दायित्वों के बोध को पैदा किया उस दायित्व बोध का हमें हमेशा पालन करना चाहिए। मुगल साम्राज्य को जिस सैन्य कुशलता और रणनीति से मात दी वह हमारे लिए आज भी प्रेरणा बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि यही कारण हैं कि छत्रपति शिवाजी की कुशल रणनीति और चरित्र पर आज भी शोध हो रहे हैं। उनकी शासन प्रणाली में जनहित सर्वोच्च प्राथमिकता थी। उन्होंने सदैव धर्म और संस्कृति को सम्मान दिया यहीं कारण हैं कि वह हिंदवी स्वराज की अवधारणा करने में सफल रहे। यही भारत की एकता और अखंड़ता को प्रदर्शित करती हैं। हिंदवी स्वराज स्थापना महोत्सव आयोजन समिति, दिल्ली, शिवाजी रायगड़ स्मारक मंडल, पुणे; एवं भारती प्रकाशन, नागपुर के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में आठ पुस्तकों का एक साथ विमोचन किया गया।

पहली पुस्तक ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ (हिंदवी स्वराज : शिवाजी की अखिल भारतीय संकल्पना, मुगलों से मुकाबला और उनके पतन की कहानी) के लेखक डॉ. केदार फालके जी है। दूसरी पुस्तक ‘स्वराज संरक्षण का संघर्ष’ (भारतवर्ष का पुनर्जागरण एवं सफलता की कहानी) को पांडुरंग बलकवडे जी, सुधीर थोरात जी एवं मोहन शेटे जी ने लिखा है। तीसरी पुस्तक ‘अठारहवीं शताब्दी का हिंदवी साम्राज्य’ (हिंदवी स्वराज से साम्राज्य : सफलता की कहानी) के लेखक पांडुरंग बलकवडे जी एवं सुधीर थोरात जी है। चौथी पुस्तक ‘छत्रपति शिवाजी न होते तो ...’ को गजानन मेहेंदले जी ने लिखा है।पांचवी पुस्तक में Chhatrapati Shivaji Maharaj (अंग्रेजी अनुवाद) छठी पुस्तक में The Fight For Defending The Swaraj (अंग्रेजी अनुवाद) सातवीं पुस्तक Maratha Empire (Hindavi Samrajya) During the Eighteenth Century (अंग्रेजी अनुवाद) आठवीं पुस्तक Chhatrapati Shivaji : Savior of Hindu India (अंग्रेजी अनुवाद) लिखा  गया है। 

ये आठों पुस्तकें छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य से जुड़े अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालती है। इन पुस्तकों के अध्ययन से पता चलता है कि कैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू समाज को संगठित किया और स्वतंत्रता की भावना को जगाया। उन्होंने मुगलों को देश से निकाल बाहर करने और दिल्ली का सिंहासन जीतने का विशाल ध्येय अपने अंतःकरण में सहेज कर रखा हुआ था।

स्वराज संरक्षण का संघर्ष, जो 17वीं और 18वीं शताब्दी में हिंदुस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस संघर्ष में मराठों ने देश की रक्षा और मूल संस्कृति के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। अठारहवीं शताब्दी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन हुआ और मराठों ने अपना साम्राज्य विस्तार किया। 

छत्रपति शाहू महाराज के नेतृत्व में मराठों ने हिंदू संस्कृति के उत्थान के कार्य किए, मंदिरों का जीर्णोद्धार किया, विद्वानों को आश्रय दिया, और कृषि उत्पादन बढ़ाया। मराठा राज्य की व्यवस्था संतुलित थी और हिंदू जीवन मूल्यों पर आधारित थी। शिवाजी महाराज एक महान हिंदू राजा थे जिन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और हिंदवी स्वराज की स्थापना की।

 

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